जय पलासणियां
Wednesday, 14 December 2011
गुनाहों से परे रखना , लालच से परे रखना ,
खुदा मेरे बन्दे को तू , करीब रखना तो खुद के करीब रखना !!
मैं अपना चेहरा छुपा लेता हूँ , कभी हास्य और कभी क्रंदन ,कभी क्रोध कभी आश्चर्य से !
मेरा रूप जो असली है ,सदा ढका रहता है आवरण से ,
पर न जाने क्यों और कैसे ये जगत सब जान लेता है ,
और मैं ठगा ठगा सा मौन स्वीकृति में सर हिलाता हूँ !!
मैं कतरा कतरा रिसता हूँ , अन्दर ही अन्दर ,
और दृष्ट होता है जब तक ,
जगत सब खोखला बन उभर के आता है !!
वो खुल के हँसना , ठहाके लगाना , और जीना जी भर के , जीवन को ,
सिखादे मुझको भी ओ नंगे मुंगे , गलियों के राजा ,
तन के कपड़े मैं सभी , तुम्हें दान करता हूँ !!
खून के लालच में उसने जिस्म सारा निचोड़ा ,
और मैं उसे महज मच्छर समझ ,
अनदेखा किया , और करता रहा !!
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment