Thursday, 1 December 2011


  • दागों  को  मेरे  सहलाओ  , ज़ख्मों  की  फिर  याद  आई  है  !

  • वो  घड़ी  फिर  आई  है  , और  संग  मेरे  तन्हाई  है  !!


  • दागों  में  हल्का  सा  रंग  जो  बाकी  है  ,

  • ज़ख्मों  की  गहराई  की  पैमाईश  है  वो  !

  • और  दिल  के  ज़ख्मों  की  बात  ही  अलग  है  ,

  • धुवां  सा  निकलता  है  अब  भी  वहां  से  !!

    ज़ख्म  जो  रिसते हैं  फूल  खिलायेंगे  , ज़हर  की  जगह  यादों  का  मरहम  लगाया  है  !!


  • जब  भी  मैं  अपने  से  थोड़ा  सा  अलग  होता  हूँ  ,

  • न  जाने  क्यों  फिर  से  , मैं  बीच  में  आती  है  ?


  • पधारो  मेरी  साँसों  के  संगी  , मेरे  जीवन  में  पधारो  , बड़ी  देर  से  अनजाने  शहर  में  पड़ा  हूँ  !

  • उखड़ी  हुई  सांसें  कहीं  बंद  न  हो  जाएँ  , मेरी  साँसों  में  बस  के  इन्हें  थोड़ा  संभालो  !!




  • No comments:

    Post a Comment