Wednesday, 21 December 2011

और  वो  मेरा  हाल  चाल  पूछने चले  आते  हैं ,
क्या  हुआ ? क्या  बीमारी  है  ?
ओह  ये  तो  तुम्हारा  रंग  ही  उतर  गया ,
दिखाया  किसी  डाक्टर  को  ?
हैं !  चेहरे  पर  भी  सोजिश  आ  गयी  है  ?
बेचारे  रामनाथ  को  भी  ऐसा  ही  हुआ  था ,
दो  हफ्ते  में  ही  चल  बसा  था ,
कहीं  कैंसर  तो  नहीं ? बड़ी  खतरनाक  बीमारी  है ,
किसी  जंतर  मंतर  झाड़  फूंक  वाले  को  भी  दिखाया ?
है  मेरा  एक  जानने  वाला  बुलाऊँ क्या  ?
चेहरा  पीला  पड़  गया  है  ,  पीलिया  तो  नहीं ?
मैं  इक  दवाई  लिखाता  हूँ  बहुत  बढ़िया  है ,
बच  जाओगे  ,  फायदा  नहीं  होगा  तो  नुक्सान  भी  नहीं  होगा ,
और  मैं  यह  सब  कान  लगाये  सुनता  हूँ ,
और  सोचता  हूँ  कब  जाएगा  ये  ,
और कब मुझे  सांस  आयेंगे और  कब  मेरे  प्राण  बचेंगे ?

   

No comments:

Post a Comment