जय पलासणियां
Tuesday, 13 December 2011
जिन्होंने लुटाया हम पर मुस्तकबिल सारा ,
#
हम उनपर पहली तारीख को घर खर्चे का एहसान जताते हैं !!
हदों में रहना क्या है ? या तू जाने या मैं जानू !
जिन्होंने उजाड़ने हैं खेत , उनका है जहां सारा !!
तारीफ़ के काबिल था तो वो , और हमने तारीफ की भी थी ,
पर पडोसी की गाली का असर उनपर जयादा हुआ !
अब जब जब भी मिलते पडोसी को वो , झट गले लेते लगा ,
और हम निगोड़े पास बैठे ,बैठे रहते अनजाने से !!
नाकामी पे चुप हूँ मैं ,
ज़मानें से नाराज़ नहीं मैं ,
मैंने उम्मीदों के कटते हुए पर देखे हैं !!
जानें क्यों अजब सी मुस्कराहट है उनके चेहरे पर ,
मैंने वहम में ,खुद को झाँका परदे में ,कई कई बार !!
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