Wednesday, 21 December 2011

उजड़ना  क्या  है  तुम  क्या  जानों ,
मैंने  घरबार  शहर  इक  उजड़ते  देखा  है ,
जहाँ  जनम  लिया  खेला  कूदा ,
ननिहाल मेरा  ,  पास  पड़ोस , बुआ  फूफा का  घर ,
सब  डूबा  पानी  में ,  और  डूबा  स्कूल  मेरा ,
महल  राजा  का ,  सांडू  का  मैदान  बड़ा ,
जहाँ हवाई  जहाज़ तक  उतर  जाता  था ,
वो  कचहरी  राजा  की  ,  जिसमें  सुनाई  गयी  थी  सजा  मोहन को ,
और  इतिहास  कि जहाँ फांसी  हुई  मोहन  को भाई  के  बदले , 
वो  लोक  गीत  मोहना का  दर्द  भरा  ,  सब  डूबा ,
और  डूब  गया  मेरा  बचपन , और  डूबी  जवानी  कईयों  की ,
किसी  का  तो  जीवन  ही  रीत  गया  ,
वो  नाल्याँ  का  नौण ,  शंमुखेश्वर  का मंदिर ,
गोहर ,रंगनाथ  का  मंदिर   पोखर  ,  मेले  सब  डूबे  ,
और डूबा  तबत्तन , लुह्णु  , पारला  बाजार , 
और   डूब  गया  इक  संसार ,
और  भेंट  चढ़ा  भाखड़ा  बाँध  के  नाम ,
और  मेरे  नाम  इक  शहर  रह  गया  उजड़ा  सा  ,
जो  हर  बार  निकल आता  है  झील  से  बाहर  ,
मेरे  उजड़े  शहर  के  नासूर  लिए  ,
पर  तुम  क्या  जानों ,  उजड़ना  क्या  होता  है  !!

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