Thursday, 22 December 2011


मेरी   चमड़ी   बिके   बिन   मोल   ,   चमड़ी   है  पर    तू   बड़ी   अनमोल  ,
तेरे   कारण   रंग   भेद   है  ,  तेरे   कारण   कृष्ण   श्वेत   है  ,
तेरे   कारण   जग   में   लड़ाईयां  ,  हुयी   हैं   बड़ी   घनघोर ,
चमड़ी   तू   है   बड़ी   अनमोल  ,  और   मेरी  चमड़ी   बिके   बिन   मोल  !
जो   मैं   होती   सिंह   का   चमड़ा  , या   मैं   होती   मृग   का   चमड़ा  ,
शोभती   या   तो   राज   महल   में  ,  या   होती   सन्यासी   की   बगल   में  ,
या   फिर   बनता   कोट   फ़र  का  , या   फिर   बनता   पर्स   किसी   का  , या  जूता   अनमोल ,
चमड़ी   है   तू   बड़ी   अनमोल  ,  पर   चमड़ी   मेरी   बिके   बिन   मोल  ,
तू   ही   करती   शरीर   की   रक्षा  ,  तेरे   बिना   कोई   अंग   न   बचता  ,
सब   विषों   को   तू   सह   सकती   है  ,  आग   बरफ   से   तू   खेल   सकती   है  ,
तेरे   ही   कारण   रूप  कुरूप   है  ,  तेरे   ही   कारण   नर   नारी   रूप   है ,
तेरे   की   कारण   बजे   नगाड़े   और   ढोल  ,  चमड़ी   है   तू   बड़ी   अनमोल  ,
सबकी   चमड़ी   बिके   किसी   मोल   ,  पर   मेरी   चमड़ी  न  बिके  किसी   मोल  !!

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