मेरी चमड़ी बिके बिन मोल , चमड़ी है पर तू बड़ी अनमोल ,
तेरे कारण रंग भेद है , तेरे कारण कृष्ण श्वेत है ,
तेरे कारण जग में लड़ाईयां , हुयी हैं बड़ी घनघोर ,
चमड़ी तू है बड़ी अनमोल , और मेरी चमड़ी बिके बिन मोल !
जो मैं होती सिंह का चमड़ा , या मैं होती मृग का चमड़ा ,
शोभती या तो राज महल में , या होती सन्यासी की बगल में ,
या फिर बनता कोट फ़र का , या फिर बनता पर्स किसी का , या जूता अनमोल ,
चमड़ी है तू बड़ी अनमोल , पर चमड़ी मेरी बिके बिन मोल ,
तू ही करती शरीर की रक्षा , तेरे बिना कोई अंग न बचता ,
सब विषों को तू सह सकती है , आग बरफ से तू खेल सकती है ,
तेरे ही कारण रूप कुरूप है , तेरे ही कारण नर नारी रूप है ,
तेरे की कारण बजे नगाड़े और ढोल , चमड़ी है तू बड़ी अनमोल ,
सबकी चमड़ी बिके किसी मोल , पर मेरी चमड़ी न बिके किसी मोल !!
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