Sunday, 4 December 2011

समंदर  किनारे  किनारे  निकल  गया  ,  और  मैं  रोती  रही  रात भर  ,
चाहतों  का  पंछी  सवेरे  सवेरे  उड़  गया ,  और  घूँघट  था के  बहलाता  रहा !!



मैं  समझता  था  इक  दोस्त  बाकी है ,
रात  ने  सब  परदे  फाश  किये  और  कहा  कोई  नहीं  है !





इक  जहाँ  बाकी  है  आजमाने  के लिए , 
बोल  तेरा  नाम  लेदूं  अजमानें  के  लिए ?
शायद  तू  घबरा  गयी , परदे  सब  फाश  हुए  जाते  हैं ,
और  तैने   मेरा  नाम भेज  दिया  ,  अफ़साने सुनाने  में !! 

No comments:

Post a Comment