Thursday, 1 December 2011

शर्मो  हया पे  कायम तो  हूँ ,  पर  इशारा  समझ ,  नादान  न  बन ,
शामिल  तो हैं  मेरी  दुनिया  में  सब ,पर  तेरा  सा  इदारा नहीं  है !!





मैं   समझूँ   अगर  मैंने  किया  नेक  काम  , तू  तो  ज़मानें  को  पढ़ना  ,  लिखा  आएगा ,
वक्त  दोनों  को  रख  के  तराजू  में  तोलेगा  , सही  को  लिखेगा न  मिटने  वाली  स्याही  में !!



यूँ  ही  फसूं  मैं विवादों  के  घेरे  में , इससे  तो  अच्छा  है , काम  ही  कोई  हो  जाये ,
किसी  का  मनोरंजन बनने  से  पहले  ,  चेहरा  संवारूं  मैं ,बुरा  क्या ?रसिक  कोई  हो  जाये !! 



ख़ुदा  जानता  है  मेरी  रवानी ,  काँटों  से  बचना  है  मेरी  कहानी  ,
उलझ  के  रहूँगा  तो  दूर  होगी  मंजिल , वक्त  को  ठहरना  आता  नहीं  है !!



ज़न्नत  को  मांगो  न , आज  तुम  मझसे  ,  राहों  में  ज़न्नत  बिखरी  पड़ी  है ,
बस  साथ  मेरे  तुम  आज  हो  लो ,  ज़न्नत  को  राहों  में  समेटेंगे हम  दोनों !
रास्ता  खड़ा  है  इंतजार  करता ,  मंजिल  पे  पहुँचाता  है , हर  जाने  वाले  को ,
क्या  जोड़ना  है  और  क्या  छोड़ना  है ,मिल  के  समझ  लेंगे , राही  हैं  दोनों !! 



सम्भलने  लगा  था  वक्त  का  मारा ,  झूठी  दाद  ने फिर  दुबारा  गिराया ,
पर  क्या  मैं  क्या  हूँ  समझता  नहीं  था , जो  दाद को  सर  अपने  चढ़ाया !! 

 
  


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