मुझे बॉस ने वफाओं के बदले तन्हाई बख्श दी ,
ख्याल उसका ये था मैं टूट जाऊंगा ,
और मैंने नर्म हाथों से तन्हाई को बटोरा ,
दस किताबें पढ़ीं , अपने कर्म क्षेत्र की ,
कुछ अपने विचारों को सुधारा कुरेदा ,
और लेखनी को संभाला जतन से ,प्रयत्न से ,
मुझे ईश ने , नया कर्म क्षेत्र दिखाया ,
कुछ हिचकिचाहट हुई , युद्धक्षेत्र सा दिखा ,
पर मैंने गीता को समझा , युद्ध को डट गया ,
मेरा तो क्षेत्र आयुर्वेद था , या फिर चिकित्सा क्षेत्र था ,
या चित्रकारी , या लाईब्रेरी , या खेल का मैदान था ,
ये कविता ये लेखन , तो सोचा भी नहीं था ,
पर तन्हाई जो इतने प्यार से मुझे मिली थी ,
क्या उसको निराशा का संताप देता ?
क्या आत्म को मैं अपने क्रोध से जलाता ?
मैंने तो कभी युद्ध चाहा नहीं था ,
पर भागना भी मैंने सीखा नहीं था ,
परिस्थितियों को मैंने गले से लगाया ,
और जो बन पड़ा उसमें जुट गया मैं ,
अब जो भी हूँ उस प्रभू की दया से , आपके सामने हूँ ,
ये बस तीन महीनों का मात्र अवतार है ,
हे मेरे पाठको व साथियो , मुझे वरदान दो ,
मैं जो भी करूँ पूरे दिल से करूँ ,
और जो भी प्रभु ने गुण दिया कृपाकर ,
उसका ऋण मैं उसीकी कृपा से चुका दूं !!
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