जय पलासणियां
Friday, 16 December 2011
मुझे सर न बुलाईये प्लीज़ , अब तो सरकार में हूँ , सरकार बुला लीजे जनाब !
चार नारे अगर जिंदाबाद के लगें , हिलती गर्दन में भी अकड़ आये जनाब !!
मैं जानता हूँ तेरी आहटों का हिसाब , जब भी आती हो , नपा तुला है अंदाज़ !
रौशनी चिरागों में खुद ही आ जाती है , तेरी मुस्कान जब खिलाती फूल !
रौनकों में तेरा वज़ूद हो ही जाता है , मौजूद जब हर ग़ज़ल में तू होती है !
तेरी पैदाईश ही मेरा होना है ,मेरी रंग-ओ-बू , हर सू तेरा होना है !!
तेरी यादों को फेंक ही आता , समंदर में ,
पर क्या करूँ , साथ मैं भी जाता ,
तेरी यादों से बंधा हुवा जो हूँ मैं !
तेरी खामोशियों से अब मैं क्या समझूं , लौटा लाऊँ चिरागों की रौशनी जो गुल है हुयी ?
क्या खुदा का है उसूल ऐसा कोई , के लौटा दे जान फिर से मुर्दे में ?
चल तेरी मानूँ हर बात , आ मैं तुझे बर्बाद करूँ !
तेरी रंगीनियों का दूं मैं जवाब , शामों सहर आज़ाद करूँ !!
तेरा ज़ज्बा समझता हूँ मैं , तू मुझे दिल से चाहे , पर हिसाब लगा ,
चकोर चंदा से है कितना दूर , क्या ये मिलन हो सकता है ?
ये तो रातों का जगना है , और तरसना है समंदर का ,
ख़ारे पानी से भी कभी प्यास बुझा करती है ?
तेरी रात को सहर कर आया हूँ , तकिया उठा देख मगर , तुम लेना ,
ऐसा न हो दिन बीते और रात का फिर पहरा लगे ,
और तुम समझा करो , न मैं आया था , न निभाया कौल अपना !!
जिन रातों को आया था सहेज कर रखना ,
जिन बातों में मेरा साया हो सहेज कर रखना ,
न जानें कब आखरी रात का डेरा हो और मैं न जागूँ ,
तुम बोलोगे ये सब क्यों अचानक हुआ ,तुमने कभी चेताया न था !!
बहुत दिन रह लिए यार के घर अब गैर के चलें ,
देखिये तो चल के , कद कितना मेरा और कहाँ मैं हूँ खड़ा !!
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