Sunday, 18 December 2011

मेरी  गुलामी  की  सोच  के  क्या  कहने  ,
मैं जय  नाम  का  सर्टीफिकेट अमरीका से  चाहूँ ,
घर  वाले  बुलाते  पर  यकीं नहीं  आता ,
हिंदी  में  भी  हम योग  को  अब  योगा  बुलाते !!





वो  कहते  हैं  लाईट  की  गति  सबसे  ज़्यादा , 
और  मैं  कहता  हूँ मन  मेरा  अनंत  गति  से  भागे ,
अभी  मैं  यहाँ  हूँ , अभी  भगवान्  से  मिल  आता ,
पर  अमरीका  वालों  को  अभी  ये  ख्याल  न  भाता ,
हम  भी  ताक  रहे  मुख हर  बात  को  उनका ,
मेरा  भगवान  भी  बोले  तो  विश्वास  न  आता ,
कुछ सालों  की  ही  बात  है  , वो  मन  को  न  मानें  थे ,
अब  साईकेट्री की  भाषा  में  अनपढ़  हमें  बोलें ,
आत्मा  को  तो  अब  भी  वो  झूठ  ही  समझे  हैं  ,
ईश्वर  को  भी  अभी  तक  वो  लेबोरेटरी में  तोलें ,
हम  कब  नोबल  प्राईज़  और  ओस्कर  का  मोह  त्यागेंगे ?
कब  अपने  विचारों  को  मौलिक हम  मानेंगे ?

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