मेरी गुलामी की सोच के क्या कहने ,
मैं जय नाम का सर्टीफिकेट अमरीका से चाहूँ ,
घर वाले बुलाते पर यकीं नहीं आता ,
हिंदी में भी हम योग को अब योगा बुलाते !!
वो कहते हैं लाईट की गति सबसे ज़्यादा ,
और मैं कहता हूँ मन मेरा अनंत गति से भागे ,
अभी मैं यहाँ हूँ , अभी भगवान् से मिल आता ,
पर अमरीका वालों को अभी ये ख्याल न भाता ,
हम भी ताक रहे मुख हर बात को उनका ,
मेरा भगवान भी बोले तो विश्वास न आता ,
कुछ सालों की ही बात है , वो मन को न मानें थे ,
अब साईकेट्री की भाषा में अनपढ़ हमें बोलें ,
आत्मा को तो अब भी वो झूठ ही समझे हैं ,
ईश्वर को भी अभी तक वो लेबोरेटरी में तोलें ,
हम कब नोबल प्राईज़ और ओस्कर का मोह त्यागेंगे ?
कब अपने विचारों को मौलिक हम मानेंगे ?
मैं जय नाम का सर्टीफिकेट अमरीका से चाहूँ ,
घर वाले बुलाते पर यकीं नहीं आता ,
हिंदी में भी हम योग को अब योगा बुलाते !!
वो कहते हैं लाईट की गति सबसे ज़्यादा ,
और मैं कहता हूँ मन मेरा अनंत गति से भागे ,
अभी मैं यहाँ हूँ , अभी भगवान् से मिल आता ,
पर अमरीका वालों को अभी ये ख्याल न भाता ,
हम भी ताक रहे मुख हर बात को उनका ,
मेरा भगवान भी बोले तो विश्वास न आता ,
कुछ सालों की ही बात है , वो मन को न मानें थे ,
अब साईकेट्री की भाषा में अनपढ़ हमें बोलें ,
आत्मा को तो अब भी वो झूठ ही समझे हैं ,
ईश्वर को भी अभी तक वो लेबोरेटरी में तोलें ,
हम कब नोबल प्राईज़ और ओस्कर का मोह त्यागेंगे ?
कब अपने विचारों को मौलिक हम मानेंगे ?
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