शाम ढले कड़ाके की ठण्ड से अकड़े माँ से बिछुड़े दो कुत्ते के पिल्ले ,
अँधेरा गहराते गहराते , कूँ कूँ करते इक दूजे पे गिरते पड़ते मिल बैठे ,
सोच अकेले मर जायेंगे , इक दूजे की पीठ पे मुंह रख सड़क में सो जाते हैं ,
मैं दोनों के प्यार से , दोनों के जिंदा रहने के लिए लगाव से अभिभूत होता हूँ ,
मुझ में अचानक मातृत्व जग उठता है , बोरी पीठ पे उढ़ा देता हूँ ,
अब ये रोज़ का उत्सव बन जाता है , मैं माँ बन आँचल से ढक देता हूँ ,
धीरे धीरे अब उन्हें माँ की ज़रूरत नहीं रहती है ,और शरारत अब बढ़ जाती है ,
अब रोटी का झगड़ा , खेल कूद , गली के और कुत्तों से जान पहचान हो जाती है ,
दोनों में प्यार इतना हो जाता है कि , कभी अकेले दिखते ही नहीं मिलते ही नहीं ,
पर अब अचानक मौसम बदला , रीत कुरीत हो गयी , जवानी बैरन हो गयी ,
रोज़ का झगड़ा , रोज़ का गुर्राना , दांत निपोरना , और लहूलुहान हो जाना , आम हो गया ,
आखिर एक दिन महाभारत ने एक की गर्दन का नाप लिया , दांत गड़ा घायल किया ,
स्वार्थों में बचपन का प्यार गया दुलार गया , पहचान गयी सम्मान गया ,
और इंसान के सारे गुण उनमें समा गए , भाईचारा समाप्त हो गया , और मेरा मातृत्व फल गया !!
अँधेरा गहराते गहराते , कूँ कूँ करते इक दूजे पे गिरते पड़ते मिल बैठे ,
सोच अकेले मर जायेंगे , इक दूजे की पीठ पे मुंह रख सड़क में सो जाते हैं ,
मैं दोनों के प्यार से , दोनों के जिंदा रहने के लिए लगाव से अभिभूत होता हूँ ,
मुझ में अचानक मातृत्व जग उठता है , बोरी पीठ पे उढ़ा देता हूँ ,
अब ये रोज़ का उत्सव बन जाता है , मैं माँ बन आँचल से ढक देता हूँ ,
धीरे धीरे अब उन्हें माँ की ज़रूरत नहीं रहती है ,और शरारत अब बढ़ जाती है ,
अब रोटी का झगड़ा , खेल कूद , गली के और कुत्तों से जान पहचान हो जाती है ,
दोनों में प्यार इतना हो जाता है कि , कभी अकेले दिखते ही नहीं मिलते ही नहीं ,
पर अब अचानक मौसम बदला , रीत कुरीत हो गयी , जवानी बैरन हो गयी ,
रोज़ का झगड़ा , रोज़ का गुर्राना , दांत निपोरना , और लहूलुहान हो जाना , आम हो गया ,
आखिर एक दिन महाभारत ने एक की गर्दन का नाप लिया , दांत गड़ा घायल किया ,
स्वार्थों में बचपन का प्यार गया दुलार गया , पहचान गयी सम्मान गया ,
और इंसान के सारे गुण उनमें समा गए , भाईचारा समाप्त हो गया , और मेरा मातृत्व फल गया !!