Friday, 23 December 2011

शाम  ढले  कड़ाके  की  ठण्ड से अकड़े  माँ  से  बिछुड़े दो कुत्ते  के  पिल्ले ,
अँधेरा  गहराते  गहराते ,  कूँ  कूँ करते  इक  दूजे  पे  गिरते  पड़ते मिल बैठे ,
सोच  अकेले  मर  जायेंगे ,  इक  दूजे की  पीठ  पे  मुंह रख सड़क  में  सो  जाते  हैं ,
मैं दोनों  के  प्यार  से ,  दोनों  के  जिंदा  रहने के  लिए  लगाव  से  अभिभूत होता  हूँ ,
मुझ में  अचानक  मातृत्व   जग  उठता  है , बोरी  पीठ  पे  उढ़ा  देता  हूँ  ,
अब  ये  रोज़ का  उत्सव  बन  जाता  है ,  मैं  माँ  बन आँचल  से ढक  देता हूँ ,
धीरे  धीरे  अब  उन्हें  माँ  की  ज़रूरत नहीं  रहती  है ,और  शरारत  अब बढ़ जाती  है ,
अब  रोटी  का  झगड़ा ,  खेल  कूद , गली  के  और  कुत्तों  से  जान  पहचान हो जाती है ,
दोनों  में प्यार  इतना  हो  जाता  है  कि ,  कभी अकेले  दिखते  ही  नहीं  मिलते  ही  नहीं ,
पर  अब  अचानक  मौसम  बदला , रीत  कुरीत हो  गयी ,  जवानी   बैरन  हो  गयी ,
रोज़  का  झगड़ा ,  रोज़  का  गुर्राना , दांत  निपोरना ,  और  लहूलुहान हो  जाना , आम  हो  गया ,
आखिर  एक  दिन   महाभारत  ने  एक  की  गर्दन का  नाप  लिया ,  दांत   गड़ा  घायल किया ,
स्वार्थों  में  बचपन  का  प्यार   गया  दुलार  गया  , पहचान  गयी  सम्मान गया ,
और  इंसान  के  सारे  गुण  उनमें  समा  गए ,  भाईचारा समाप्त हो  गया , और  मेरा  मातृत्व फल  गया !!
शाम  ढले  कड़ाके  की  ठण्ड से अकड़े  माँ  से  बिछुड़े दो कुत्ते  के  पिल्ले ,
अँधेरा  गहराते  गहराते ,  कूँ  कूँ करते  इक  दूजे  पे  गिरते  पड़ते मिल बैठे ,
सोच  अकेले  मर  जायेंगे ,  इक  दूजे की  पीठ  पे  मुंह रख सड़क  में  सो  जाते  हैं ,
मैं दोनों  के  प्यार  से ,  दोनों  के  जिंदा  रहने के  लिए  लगाव  से  अभिभूत होता  हूँ ,
मुझ में  अचानक  मातृत्व   जग  उठता  है , बोरी  पीठ  पे  उढ़ा  देता  हूँ  ,
अब  ये  रोज़ का  उत्सव  बन  जाता  है ,  मैं  माँ  बन आँचल  से ढक  देता हूँ ,
धीरे  धीरे  अब  उन्हें  माँ  की  ज़रूरत नहीं  रहती  है ,और  शरारत  अब बढ़ जाती  है ,
अब  रोटी  का  झगड़ा ,  खेल  कूद , गली  के  और  कुत्तों  से  जान  पहचान हो जाती है ,
दोनों  में प्यार  इतना  हो  जाता  है  कि ,  कभी अकेले  दिखते  ही  नहीं  मिलते  ही  नहीं ,
पर  अब  अचानक  मौसम  बदला , रीत  कुरीत हो  गयी ,  जवानी   बैरन  हो  गयी ,
रोज़  का  झगड़ा ,  रोज़  का  गुर्राना , दांत  निपोरना ,  और  लहूलुहान हो  जाना , आम  हो  गया ,
आखिर  एक  दिन   महाभारत  ने  एक  की  गर्दन का  नाप  लिया ,  दांत   गड़ा  घायल किया ,
स्वार्थों  में  बचपन  का  प्यार   गया  दुलार  गया  , पहचान  गयी  सम्मान गया ,
और  इंसान  के  सारे  गुण  उनमें  समा  गए ,  भाईचारा समाप्त हो  गया , और  मेरा  मातृत्व फल  गया !!
शाम  ढले  कड़ाके  की  ठण्ड से अकड़े  माँ  से  बिछुड़े दो कुत्ते  के  पिल्ले ,
अँधेरा  गहराते  गहराते ,  कूँ  कूँ करते  इक  दूजे  पे  गिरते  पड़ते मिल बैठे ,
सोच  अकेले  मर  जायेंगे ,  इक  दूजे की  पीठ  पे  मुंह रख सड़क  में  सो  जाते  हैं ,
मैं दोनों  के  प्यार  से ,  दोनों  के  जिंदा  रहने के  लिए  लगाव  से  अभिभूत होता  हूँ ,
मुझ में  अचानक  मातृत्व   जग  उठता  है , बोरी  पीठ  पे  उढ़ा  देता  हूँ  ,
अब  ये  रोज़ का  उत्सव  बन  जाता  है ,  मैं  माँ  बन आँचल  से ढक  देता हूँ ,
धीरे  धीरे  अब  उन्हें  माँ  की  ज़रूरत नहीं  रहती  है ,और  शरारत  अब बढ़ जाती  है ,
अब  रोटी  का  झगड़ा ,  खेल  कूद , गली  के  और  कुत्तों  से  जान  पहचान हो जाती है ,
दोनों  में प्यार  इतना  हो  जाता  है  कि ,  कभी अकेले  दिखते  ही  नहीं  मिलते  ही  नहीं ,
पर  अब  अचानक  मौसम  बदला , रीत  कुरीत हो  गयी ,  जवानी   बैरन  हो  गयी ,
रोज़  का  झगड़ा ,  रोज़  का  गुर्राना , दांत  निपोरना ,  और  लहूलुहान हो  जाना , आम  हो  गया ,
आखिर  एक  दिन   महाभारत  ने  एक  की  गर्दन का  नाप  लिया ,  दांत   गड़ा  घायल किया ,
स्वार्थों  में  बचपन  का  प्यार   गया  दुलार  गया  , पहचान  गयी  सम्मान गया ,
और  इंसान  के  सारे  गुण  उनमें  समा  गए ,  भाईचारा समाप्त हो  गया , और  मेरा  मातृत्व फल  गया !!

  • तुम  जानते  हो  मेरी  सब  कमजोरियां  ,

  • पर  बताते  मुझे मेरी  शक्तियां  केवल !

  • तुम  समझते  हो  सब  मेरे  डर ,

  • पर  मेरा  विश्वास  बढ़ाते हो  !

  • तुम  परिचित  हो  मेरी  शंकाओं  से  ,

  • पर  तुम  मेरे  आत्मबल  को  जगाते  हो  !

  • तुम  पहचानते  हो  मैं  अपाहिज  हूँ कितना  और  कहाँ  ?

  • पर  तुम  समझाते  हो  संभावनाएं  क्या  हैं  !


  • मन  मयूरा  नाचे  भी  और  रोये  भी  , सजन  घर  जाने  की  बेला  आई  है  !

  • मन  नाचे  संग  साजन  का  पाने  को  , और  रोये  घिर शंकाओं  से  जीवन  की  !

  • मन  मेरा  नाचे , अपना  घर  मिलेगा  मुझे  ,और  रोये  के  सब  पराया  ही  समझते  क्यों  हैं  ?

  • मन  मेरा  नाचे  मुझे  गर्व  है  अपने  पर  , और  रोये  ,मुझे  ज्ञान  है  कमियों  का  अपनी !!

  • पर  अब  शांत  हूँ  और  शांत  है मन ,सब  चलता  है  यहाँ  ,सब  जानते  हैं  कोई  पूर्ण  नहीं  !!


  • एक  आराम  का  उसांस  और  अंगडाई  का  दौर  ,

  • बहुत  आराम  मिला अधिकारिक  निरीक्षण के  बाद  !

  • ये  तनाव  सा  जीवन  में  आता  जो , कुछ पल  के  लिए ,

  • इक  अलग  सा  मज़ा  देता  है  , कुछ  देर  में  हटने  के  बाद  !!


  • वो  आते  जीवन  में  , कुछ  पल  दे  जाते  हैं  ,

  • कुछ  ले  जाते  हैं  , और  खामोश  से  हो  जाते  हैं  !

  • पता  चलता  नहीं  , रहस्य  बना  रहता  है  ,

  • और  उम्र  भर  सोचता  रहता  हूँ  , क्या  कुछ  मैंने  किया  तो  नहीं  !!




  • ये  सब  इसलिए  की  तुम  मेरे  सच्चे  मित्र   हो  ,

  • और  मैं  भी  पहचानता  हूँ  तुम्हें  उतना  ही  !!

  • Thursday, 22 December 2011

    बिन  आँगन  का  घर  मेरा  ,  पर  आँगन  सूना  कहता  हूँ ,
    बिन  आँगन   का  घर  मेरा  ,  पर  आँगन  टेढ़ा  कहता  हूँ ,
    सर  गंजा  है , नाखून  भी  हैं , पर  खुजाने  न  दे अन्ना टोपी ,
    सारा देश व्यस्त  हुआ , अपना ?नहीं ,पराया भ्रस्टाचार मिटाने  को ,
    लालू  का  विरोध  तो  सच्चा  है  ,  चारा  खाना  महंगा  हुआ ,
    जूते  और  थप्पड़  सस्ते  हुए  , सब  मुफ्त  में  मारे  जाते  हैं !!

    मैं  चलूँ  किसी  डगर , किसी  गाँव किसी  शहर ,
    मेरा  चरित्र  साथ जाए  मेरा करम  साथ  जाये !
    कभी  देर  ना  हुई  है ,  कोई  लक्ष्य  साधने  में ,
    निर्धारण  करो  जब भी , पहला  कदम  बढ़ाओ !
    पहला ही कदम विशेष  है , जो अंत तक ले जाये ,
    रफ़्तार सही  रक्खो  लम्बे फासले जो  दौड़ना  हो !
    रास्ते में  बहुत सी  बाधाएं संग संग भागती  हैं ,
    हल  भी  सब  निकलते , जब  पक्के  हों  इरादे !
    लालच भी रास्ते  में  कई  हैं भटकाते और लुभाते ,
    पर तुम हो राही मजिल के और अंत  तक  है जाना !
    मन के  मेरे साथी पहले तोलता  हूँ , फिर प्रिय बोलता  हूँ ,
    प्रयत्न मन  से  सब  करलो  अवश्य सिद्धियाँ मिलेंगी !!

    मेरी   चमड़ी   बिके   बिन   मोल   ,   चमड़ी   है  पर    तू   बड़ी   अनमोल  ,
    तेरे   कारण   रंग   भेद   है  ,  तेरे   कारण   कृष्ण   श्वेत   है  ,
    तेरे   कारण   जग   में   लड़ाईयां  ,  हुयी   हैं   बड़ी   घनघोर ,
    चमड़ी   तू   है   बड़ी   अनमोल  ,  और   मेरी  चमड़ी   बिके   बिन   मोल  !
    जो   मैं   होती   सिंह   का   चमड़ा  , या   मैं   होती   मृग   का   चमड़ा  ,
    शोभती   या   तो   राज   महल   में  ,  या   होती   सन्यासी   की   बगल   में  ,
    या   फिर   बनता   कोट   फ़र  का  , या   फिर   बनता   पर्स   किसी   का  , या  जूता   अनमोल ,
    चमड़ी   है   तू   बड़ी   अनमोल  ,  पर   चमड़ी   मेरी   बिके   बिन   मोल  ,
    तू   ही   करती   शरीर   की   रक्षा  ,  तेरे   बिना   कोई   अंग   न   बचता  ,
    सब   विषों   को   तू   सह   सकती   है  ,  आग   बरफ   से   तू   खेल   सकती   है  ,
    तेरे   ही   कारण   रूप  कुरूप   है  ,  तेरे   ही   कारण   नर   नारी   रूप   है ,
    तेरे   की   कारण   बजे   नगाड़े   और   ढोल  ,  चमड़ी   है   तू   बड़ी   अनमोल  ,
    सबकी   चमड़ी   बिके   किसी   मोल   ,  पर   मेरी   चमड़ी  न  बिके  किसी   मोल  !!

  • जाने  क्या  होगा  पंछी  अकेले  ,

  • बंध  जा  कहीं  जोड़े  में  तू  भी  ,

  • यूँ  क्या  बतियायेगा  साँझ  सकारे  ,

  • गुम सुम  गुम  सुम  , गुम  सुम  गुम  सुम  !!


  • मंगल  चाहा  हुआ  अमंगल  , सुन्दर  दर्शा  अति  भयंकर  ,

  • पर  तू  क्या  समझे  विपरीत  को  क्या  है  , तेरा  तन  मन  पत्थर  सा  है !!


  • झूमे  चले  जाए  रे  मन  , रतियों  का  सन्देशा  आया  , सावन  में  अकेले  हैं  साजन  , चले  आओ  !

  • आये  बगिया  के  सब  फूल  याद  , खुशबु की  लपटों  ने  मन  रंध्र  खोले  ,चले  सजन  घर  आओ  !!


  • छुट्टी  के  दिन  ,सर्दियों  में  ,घेर  बादल  पवन  लाया , दुश्मन  मेरा  ,

  • रूठूँ  उस  से  कैसे  रूठूँ  , सांस  चलता  ना उस  बिन  ,इक  पल  मेरा  !!


  • जिन  आलों  में  दिए  जलते  थे  कभी  , अब  मकड़ी  के  जालों  से  भरे  रहते  हैं  !

  • और  जिन  दिलों  में  आग  हुआ  करती थी  कभी  , अब  अँधेरे  से  घिरे  रहते  हैं  !!


  • दिखते  नहीं  मेरे  दिल  के  छाले उनको  हैं  अभी  ,

  • अभी  तो  वो  अपने  चेहरे  की  रंगत  वापिस  लौटाने  में  लगे  हैं  !!


  • फुर्सत  के  दिन  भी  उनको  फुर्सत  है  कहाँ  ,

  • बालों  की  सफेदी  , चेहरे  की  झुर्रियां  ,

  • नाहक  परेशानी  का  सबब  , बन  आई  हैं  !!


  • आँख  उनकी  मेरी   आँख  से  भिड़ती  है  रोज़  ,

  • अब  उनकी  आँख  की  लाली  मेरी  आँख  में  रोग  बन  उतर  आई  है  !!


  • कभी  तो  रंगीनियाँ  मैं  घर  छोड़  आऊँ  ?

  • कभी  तो  किसी  अजनबी  का  दुःख  बंटाऊँ  ?

  • कभी  तो  मेरे  कारण  कोई  मुस्कुराये  ?

  • कभी  तो  किसी  बच्चे  का  साया  बनूँ  मैं ?

  • मेरी  भी  बुद्धि  तू  कुछ  इस  तरफ  फेर  दे  ,

  • तेरे  घर  भी  आ  जाऊँगा  शीश  लेकर  ,

  • मैं  आधा  नहीं  भेंट  पूरी  चढूँगा !!


  • मुझे  ज्ञान  दान  दे  मेरे  दरिद्र  मित्र  ,

  • तुझ  से  अधिक  जीवन  किस  ने  जिया  है ?

  • तू  पहुंचा  हुआ  है  फकीर  उसके  दर  का  ,

  • तुझे  उसने  ये  जीवन  अपर  मोक्ष  दिया  है  !!


  • जब  मैं  बनूँ  खेतल  सारा  ,

  • और  इसमें  समाये  सृष्टि  अपारा  ,

  • और  पूरा  हो  गुण  निर्गुण  आधान  ,

  • तब  मैं  पूरण   होता  हूँ  !!

  • यूँ  कहने  को तो  तू  भी  मैं  बन जा ,

  • मैं  तो  फिर  , स्वयं  को  मैं  ही  कहता  हूँ  !!











  • Wednesday, 21 December 2011

    उड़न  तश्तरी सा  रहस्यमयी  जान  मुझे ,
    मेरा  सांवरिया  मुझे  ढूंढ  रहा यादों  के  गलियारों में ,
    और  मैं  लुक  छिप  जाती ,सांझ  ढले  पेड़ों  के  पीछे ,
    बादल  की  ओट , चुनरी का  घूँघट खींच खींच ,
    और  खीज  उठता मोहन  मेरा  , और  मन  ही  मन ,
    मैं  मुस्कुरा  उठती ,  और  सोचती ,
    सच  में  मैं  उड़नतश्तरी  होती  ,  ले  चलती ,
    सांवरिया  को  भी  साथ  साथ ,  तारों  के  संग,
    करते  दोनों  छेड़  छाड़ , दौडाते  इन्द्रधनुष को  पीछे ,
    बादल  को  झिंझोड़ बारिश  बरसाते ,
    चाँद  का  चुम्मा ले लेते दोनों , सूरज  को  थोड़ा  ठंडा  करते ,
    पर  कहाँ  है  मेरा  रंग  बिरंगा  झूठा  सपना ?
    अब  समेट  चलूँ  और  सांवरिया  को  मिल  जाऊं ,
    बहुत  देर  हुयी  तरसाते  हुए !!  

       
    और  वो  मेरा  हाल  चाल  पूछने चले  आते  हैं ,
    क्या  हुआ ? क्या  बीमारी  है  ?
    ओह  ये  तो  तुम्हारा  रंग  ही  उतर  गया ,
    दिखाया  किसी  डाक्टर  को  ?
    हैं !  चेहरे  पर  भी  सोजिश  आ  गयी  है  ?
    बेचारे  रामनाथ  को  भी  ऐसा  ही  हुआ  था ,
    दो  हफ्ते  में  ही  चल  बसा  था ,
    कहीं  कैंसर  तो  नहीं ? बड़ी  खतरनाक  बीमारी  है ,
    किसी  जंतर  मंतर  झाड़  फूंक  वाले  को  भी  दिखाया ?
    है  मेरा  एक  जानने  वाला  बुलाऊँ क्या  ?
    चेहरा  पीला  पड़  गया  है  ,  पीलिया  तो  नहीं ?
    मैं  इक  दवाई  लिखाता  हूँ  बहुत  बढ़िया  है ,
    बच  जाओगे  ,  फायदा  नहीं  होगा  तो  नुक्सान  भी  नहीं  होगा ,
    और  मैं  यह  सब  कान  लगाये  सुनता  हूँ ,
    और  सोचता  हूँ  कब  जाएगा  ये  ,
    और कब मुझे  सांस  आयेंगे और  कब  मेरे  प्राण  बचेंगे ?

       
    उजड़ना  क्या  है  तुम  क्या  जानों ,
    मैंने  घरबार  शहर  इक  उजड़ते  देखा  है ,
    जहाँ  जनम  लिया  खेला  कूदा ,
    ननिहाल मेरा  ,  पास  पड़ोस , बुआ  फूफा का  घर ,
    सब  डूबा  पानी  में ,  और  डूबा  स्कूल  मेरा ,
    महल  राजा  का ,  सांडू  का  मैदान  बड़ा ,
    जहाँ हवाई  जहाज़ तक  उतर  जाता  था ,
    वो  कचहरी  राजा  की  ,  जिसमें  सुनाई  गयी  थी  सजा  मोहन को ,
    और  इतिहास  कि जहाँ फांसी  हुई  मोहन  को भाई  के  बदले , 
    वो  लोक  गीत  मोहना का  दर्द  भरा  ,  सब  डूबा ,
    और  डूब  गया  मेरा  बचपन , और  डूबी  जवानी  कईयों  की ,
    किसी  का  तो  जीवन  ही  रीत  गया  ,
    वो  नाल्याँ  का  नौण ,  शंमुखेश्वर  का मंदिर ,
    गोहर ,रंगनाथ  का  मंदिर   पोखर  ,  मेले  सब  डूबे  ,
    और डूबा  तबत्तन , लुह्णु  , पारला  बाजार , 
    और   डूब  गया  इक  संसार ,
    और  भेंट  चढ़ा  भाखड़ा  बाँध  के  नाम ,
    और  मेरे  नाम  इक  शहर  रह  गया  उजड़ा  सा  ,
    जो  हर  बार  निकल आता  है  झील  से  बाहर  ,
    मेरे  उजड़े  शहर  के  नासूर  लिए  ,
    पर  तुम  क्या  जानों ,  उजड़ना  क्या  होता  है  !!
    उजड़ना  क्या  है  तुम  क्या  जानों ,
    मैंने  घरबार  शहर  इक  उजड़ते  देखा  है ,
    जहाँ  जनम  लिया  खेला  कूदा ,
    ननिहाल मेरा  ,  पास  पड़ोस , बुआ  फूफा का  घर ,
    सब  डूबा  पानी  में ,  और  डूबा  स्कूल  मेरा ,
    महल  राजा  का ,  सांडू  का  मैदान  बड़ा ,
    जहाँ हवाई  जहाज़ तक  उतर  जाता  था ,
    वो  कचहरी  राजा  की  ,  जिसमें  सुनाई  गयी  थी  सजा  मोहन को ,
    और  इतिहास  कि जहाँ फांसी  हुई  मोहन  को भाई  के  बदले , 
    वो  लोक  गीत  मोहना का  दर्द  भरा  ,  सब  डूबा ,
    और  डूब  गया  मेरा  बचपन , और  डूबी  जवानी  कईयों  की ,
    किसी  का  तो  जीवन  ही  रीत  गया  ,
    वो  नाल्याँ  का  नौण ,  शंमुखेश्वर  का मंदिर ,
    गोहर ,रंगनाथ  का  मंदिर   पोखर  ,  मेले  सब  डूबे  ,
    और डूबा  तबत्तन , लुह्णु  , पारला  बाजार , 
    और   डूब  गया  इक  संसार ,
    और  भेंट  चढ़ा  भाखड़ा  बाँध  के  नाम ,
    और  मेरे  नाम  इक  शहर  रह  गया  उजड़ा  सा  ,
    जो  हर  बार  निकल आता  है  झील  से  बाहर  ,
    मेरे  उजड़े  शहर  के  नासूर  लिए  ,
    पर  तुम  क्या  जानों ,  उजड़ना  क्या  होता  है  !!
    हे  भगवान् ! मुझे  कभी  कष्ट  रहित  मत  करना ,
    वो  मुझ  में  नए  रक्त  का  संचार  करते  हैं ,
    केवल  मुश्किलों  के  कारण  ही  मैं दिन  रात  चला  चलता  हूँ ,
    क्योंकि  हर  मुश्किल  को  मुझे  हल  करना  है ,
    कोई  कारण  अगर  घर  से  निकलने  को  नहीं  होगा ,
    तो  मैं  घर  तक  सीमित  हो , रोगी  हो  जाऊँगा ,
    मेरा  जितना  भी  विकास  हुआ ,  सब  मुश्किलों  के  नाम  है ,
    अतः मेरी  विनम्र  करबद्ध प्रार्थना प्रभु  स्वीकार  करो ,
    मुझे  जीने  के  लिए  सदा  कोई  आधार  कष्ट  अवश्य  देते  रहना ,
    ताकि  जीने  के  लिए  कोई  कारण  हमेशा प्रस्तुत हो !!


    O God ! Don't deny me troubles , because they infuse blood in me . And i move in the day light and night because of the problems , to which i need solutions . If i have no cause to move i shall be bed ridden .All my development is due to the problems .So i pray give me problems regularly ,so that i have some cause to live .

    Monday, 19 December 2011

    बिन  प्रश्न  जीवन  सून , प्रश्न  ही  जीवन  है  और  जीवन  ही  प्रश्न  है ,
    सब  उत्तर  प्रश्न  ही  में  निहित  हैं , प्रश्न  करो  उत्तर  उसे निश्चय विदित है ,
    मैं  कौन ?  आया  कहाँ  से ? जाना  कहाँ ?  कौन  मेरा ?  किसका  मैं ?
    क्या  पाया ?  क्या  खोया ?  क्या  लक्ष्य  है  ?  क्या  किस्मत , ईश है  क्या ?
    और  क्या  इष्ट है  ?  और  भी  अनंत  प्रश्न  सब अनंत  से  उत्पन्न ?
    और  हर  प्रश्न  के  अनंत  उत्तर  लिए  प्रस्तुत  होते  है  जीवन  क्षण   ,
    और  हम सुविधानुसार  हर  प्रश्न  का वांछित  उत्तर  सही  कर  देते  हैं !!






  • बहुत  बार  अंतर  से  प्रश्न  उठता  है  , काफी  नहीं  इंसान  होना  ?

  • फिर  क्यों  मैं  कभी  हिन्दू  , मुसलमान , इसाई  , बौध  या  जैनी  होता  हूँ ?


  • तमन्नाओं  के  शहर में  भीड़  भड़क्का  था  , रोते  बहुत  थे  लोग  !

  • मिलती  तो  बहुत  हैं  तरसाने  को  , पर  पूरी  नहीं  होतीं  !!


  • फुर्सत  से  सोचेंगे  ज़मीं  भरी  है  के  खाली  है  ,

  • अभी  तो  आसमानों  में  तारे  गिना  करता  हूँ  !

  • किस्मत  से  मुझे  अपने  सितारों  का  पयाम  आया  है  ,

  • शायद  हरफ़  दो  उनमें  ,महबूब  के  भी  शामिल  हों !!


  • हम  पहचानते  हैं  सिर्फ  उनको  , जो  कुर्सी  पर  विराजमान  हों  ,

  • और  फिर  गिला  करते  हैं  , कुर्सी  को  सलाम  होती  है !!


  • सिलसिलेवार  हम  रोये  ज़ार  ज़ार  ,

  • जाने  क्यों  दागों  को  जख्मों  के  हम  छेड़  बैठे  !!


  • वो  समझे  थे  तन्हाई  में  मर  जायेंगे  हम  ,

  • हमको  तन्हाई  में  जीने  का  सलीका  आया  !!


  • सूखे  चिनारों  के  पत्ते  देख  , आग  लगा  , दे दी  हवा  , अजनबी  अनजाने  ने  !

  • दिल  जले  , यादें  जली  , अनजाने  में  , कितने  लोगों  की  , अजनबी  को  क्या  मालूम  !!


  • मुझको  चाहिए  था  उठ  जाना  , गैरों  की  महफ़िल  थी  !

  • पर  जाने  क्यों  गैरों  ने  , सरेआम  दिल  लूट  लिया !!


  • दर्द  इतना  भी  दर्दनाक  नहीं , जितना  बदनाम  हुआ , दर्द  ना  होता  तो , इलाज भी  ना  होता  ! 

  • दर्द  का  होना  नहीं  मरने  का  सबब  , दर्द  की  नज़रंदाज्गी नासूर  हुयी  जाती  है  !!


  • बांटे  नहीं  जाते  अब  सांझ  के  साए  ,

  • मैंने  रातों  को  मिलना  है  और  सायों  से  बिछुड़ना  है !!


  • ज्योति  जला  ले  मन  जीवन  संध्या  भई ,

  • भोर  का  तारा  अब  भोर  को  चमकेगा  !

  • रात  कटेगी  अब  अंतर  ज्योति  से  ,

  • जितना  है  संचित  ज्ञान  , तम  मात्र  उतना  हटेगा  !!


  • दिल  ढूंढता  है  सुकूँ रातों  में  ,

  • दिन  बेचैनी  में  भी  गुज़र  जाता  है  !


  • मैं  उड़ा , उड़ा  , संभालो  कोई  , हाथों  से  जाम  संभालो  कोई  ,

  • मैं  गिरा  तो  उठ  जाऊँगा  फिर से  , पर  जाम मेरा  , खतरों  से  नहीं  खेला  पहले  कभी  ,

  • उलट  जाएगा  और  भरा  अभी  ,अभी  ख़ाली  हो  जायेया  ,

  • और  हलक  मेरा  रोयेगा  बहुत  ,और  हाला  बिन प्यासा  सो  जाएगा  !!



  • खेल  गया  मैं  जीवन  को  जीवन  की  तरह  ,

  • कभी  मैं  हरा  और  वो  जीता  ,

  • कभी  मैं  जीता  और  वो  हरा  !

  • क्षण  भर  की  खुशी , क्षण  भर  का  विषाद ,

  • हर  रोज़  नया  नित  खेल  हुआ  !!

  • अब  भी  खेल  तो  जारी  है  ,

  • और  व्हिसल  है  उसके  हाथों  में  ,

  • पर मैं  मैदान  से  बाहर  जाता  नहीं  ,

  • जाऊंगा  तो  मर  के  जाऊंगा !!