Sunday, 30 October 2011

सुनो , शांत  हो  ,  मौन  हो , ध्यान  से  सुनो  ,
ये  सागर  की  भाषा  है  , एकाग्रचित  सुनो  ,
सुनो  एकांत  में  ,  सागर  क्या  समझाता ,
एक  ही  गूँज में  ,  शब्द  अगणित  झर आता ,
शब्दों  का  मेल  कर  ,  अर्थ  अपने  जानो ,
हर  एक  प्रश्न  के  उत्तर  कई  बतलाता  ,
छाँट  लो  जो  भी  ,  तुम्हें  जीवन  क्षण  चाहिए  ,
सागर  तो  सागर  है  मोक्ष  भी  दिलवाता ,
सुनो  ,  शांत  हो  ,  मौन  हो  ,  ध्यान  से  सुनो  ,
अपने  अंतर  की  भाषा  को  ,  मौन  हो   सुनो  !!



हमीं  को  हमीं  से  मिलादे  रे  भाई  , कई  दिनों  से  गुम चल  रहा  हूँ  !
दोस्त  भी  मेरे  कुछ  कम  मिल  रहे  हैं  , दुश्मन  भी  मेरे  कुछ  कम  हो  गए  हैं  !!

मुझे  खोज  लेना  कहीं  आसमान में  ,
या  समुंदर  में  गहरे  कहीं  डूब  गया  हूँ  !
या  गरीबों  की  बस्ती  में  खेलता  मिलूंगा  !
मिटटी  में  कीचड़ में  डोलता  मिलूगा  !
फिक्र  मुझे  सिर्फ  इतना  है  यारो  ,
धूल भरा  चेहरा  पहचानोगे  कैसे  ,
मुझे  मेरे  घर  तक  पहुँचाओगे  कैसे  ?..

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