Friday, 21 October 2011


तेरी   गलियों   में   आ   ही   गया   ,  तो   ये   बेकद्री   क्यों   !
हैं   मेरे   भी   कुछ   अरमान   ,  जीने   के   लिए   !!
न   कर   कोई   दुआ   औ   सलाम   ,  मैं   जी   लूँगा   !
यूं   नफरत   से   न   देख   , किये    गुनाहों   के   लिए   !!
कोई   मुआफी   भी   तो   होगी   ,  चंद  शरमशारों   को   !
रब   ने   भी   तो   बख्शे   हैं   ,  गुनाह   प्यारों   के  लिए   !!
इक   नज़र   भर   देख   ले   ,  दिल   से   न   सही   ,  रखलो   मन   !
सौ   जन्म   किया   समझ  , कुर्बान   ,  तेरे   इक   इशारे   के   लिए !!





शाम   को   रंग   है   मयखाने   में   ,

जाने   दे   मुझको   चला   जाने   दे   !!
दो   घूँट   दर्द   के   पी   लूँगा   ,
दर्द   सारे   जहाँ   के   हरे    होने   दे   !!
मय  में   भी   घोल   आंसू   दो   चार   ,
नशा   सारे   जहाँ   का   मुझे   होने   दे   !!
नशा   साए   को   भी   थोडा   हो   जाए   ,
झूमने   को   रस्ते   में   ,  साथी   होने   दे   !!
निगाहों   से   तो   पीता   हूँ   हर   रोज़   ,
आज   आँखों   को   भी   रंग   का   असर   होने   दे   !!
शाम   को   रंग   है   मयखाने   में   ,
जाने   दे   मुझको   चला    जाने   दे   !!







फिक्र   क्यों   करता   है   साँसों   को   अलग   करदे   मेरी  ,

यूं   भी   तो   जान   भी   अलग ,  मैं   भी   अलग   होते   हैं   !!
शाम   तो   रंगीन   ,  खुदाया   , होगी   पर    तेरी   होगी  ,
मेरा   तो   साया   भी   अलग   ,  मैं   भी   अलग   होते   हैं  !!
रात   का   पहरा   है ,  शामो -  सहर   ,  मेरी   सोचों   पर  ,
मेरा    तो   दिल    भी   अलग   ,  दिमाग   भी   अलग    होते   हैं   !!
जिंदगी   तो   जीता   हूँ   पर   ,  सब्र   को   मैं   जीता   हूँ   ,
मेरी   तो   जैसे   हर    सांस   अलग   ,   सांस   अलग   होते    हैं   !! 






जब्र   का   रस्ता   नहीं   ठीक   ,  थोड़ा   संभलो   ज़रा ,

अभी   तो   शहनाई   भी   बजनी   है   ,  सुबह   होने   दो   !!
दोनों   बैठेंगे   तो   समझेंगे   ,  ज़िन्दगी   क्या   है   ,
अभी   तू   अपनी    जगह    सही   ,  उसको    अपनी    जगह   होने   दो   !!
ज़िन्दगी    खेल   नहीं   है   के  ,  दुबारा    औ   तिबारा   होगा  ,
इक   बार   ही   सही   खेलो   और    खेल   को   थोड़ा   जमने   दो    !!





दिल   का   हाल   जो   सुनना   है   तो  ,  अंसुवन   का   दिया   जलाओ   रे  !

बाती  रख   लो   मन   की   और   ,  सुधियन  को   तुम   बिसराओ   रे   !!
दिल   डाल  डाल   ,  मन   पात   पात   ,  दो   घूँट   खून   पिलाओ   रे  !
अंखियन   से   मिलने   दो   आंखें   ,  धतूरा   मुझे   पिलाओ   रे  !!
दो   बातें   होंगी   चाँद   से   पहले   ,  चाँद   छुपे   , तब   जाओ   रे  !
दिल   की   बातें   दो   तुम   छेरो   ,  फिर   दिल वाणी   मुझसे   लिखवाओ   रे !!
दिल   का   हाल   जो   सुनना   है    तो   ,  अंसुवन   का   दिया   जलाओ   रे   !!





मैं  जाने  अनजाने  चला  आया  अपने  गाँव!
सालों  साल  जिसमें   धरता  नहीं  था  मैं  पावं  !
गाँव   है  अब  शहर  से  ऊंचा  ,  खेत  में  उगे  उद्योग !
बैल  घूमे  सड़कों  पर  ,बैठने  को  न  कोई   छाओं !!
करोंदे  बेर  खाए  न  कोई  ,  जलते  जगनू  घुमाये  न  कोई  !
मोबाइल  सबके  लगे  कान  से  ,  न  कोई  करता  आओ  आओ  !!
ना  कोई  लड़ता  अखाड़े  में  कुश्ती  ,  कबड्डी !
न  लड़ते  अब  पेंच  पतंग ,  हर  कोई  करते  हेल्लो ,  हाओ  !!
अब  लगता  है  गलती  कर  ली  ,  किसी  ने  गाँव  की  खुशबू  हर  ली  !
मैं  जाने  अनजाने  क्यों  चला  आया  अपने  गाँव  !!



हाट  लगी  भई  हाट  लगी  ,  गाँव  के  बीच  में  खाट  लगी  !
खाट  के  ऊपर   सामान  पड़ा  है  ,  हर  सामान  पे  भाव  जड़ा  है  !!
लाख  रूपए  की  सुबह  है  यारो  ,  लाख  रूपए  की  शाम  खड़ी !
लाख  रूपए  है   रात   की  कीमत  ,  मुफ्त  में  साथ  में  सपना  पड़ा  है  !!
दस  लाख  में  किडनी  मिलेगा  ,  दस  लाख  में  लीवर  !
बीस  लाख  में  हार्ट  मिलेगा  ,  चालीस  लाख  में  दिमाग  पड़ा  है  !!
इज्जत  बिके  बीस  बीस  में  ,  झूठ  मिलेगा  तीस  तीस  में !
मनोरंजन  कर  की  छूट  साथ  में  ,  रूपए  रूपए  में  इमान  पड़ा  है  !!
हाट  लगी  भई  हाट  लगी  ,  गाँव  के  बीच  में  खाट  लगी  !........................


ज़िन्दगी के महाभारत में जब भी मैंने , कुरुक्षेत्र में खुद को खड़ा पाया !
दोस्तों को दुश्मनों के , और दुश्मनों को दोस्तों के साए में , खड़ा पाया !!
मेरी शक्तियां भी अर्जुन के भावावेश में थीं , स्वयं को असमर्थित पड़ा पाया !
युद्ध में , साथ था मेरे तो सिर्फ आत्म , कृष्ण रूप में जिसे मैंने खड़ा पाया !!



क़द्र करता हूँ मैं तुम्हारी गलतियों की , यूं तो सराहेंगे , कामयाबी पे तुम्हें बहुत लोग !!
कामयाबी तो हमें भी है पसंद , लेकिन , न करते कोई गलती , तो होते क्या , बुलंदी पे वो लोग !!
नारे लगाना तो आसां है बहुत , दुनिया में , खेना कश्तियाँ तूफानों में , जानते हैं बहुत कम लोग !!


उब  गया  हूँ  प्यार  और  मनुहार  से  ,  आओ   थोड़ी  देर  लड़ें  कुछ  जोर  से  !
पास  पड़ोसी   भी  जानें  कोई  रहता  यहाँ  ,  वर्ना  लगता  है   के  मुर्दा   हो  गए  हैं  !!


यारो   मेरा  भी  कहीं  कोई  बुत  लगाओ  ,  टूटना  चाहता  हूँ  किसी  क्रांति  के  बाद  !
चाहता  हूँ  कोई  बीठे ,  ऊपर  मेरे  भी ,  गल्तियाँ  मैंने  भी  की  है जन्मने  के  बाद !!


शायद  किसी  क्रांति  का  कारण  बनूँगा  मैं  ,  सोचता  हूँ  जब  भी  उल्टा  सोचता  हूँ  !!



सर  भी  मेरा  ,  धड  भी  मेरा  ,  हाथों  में  छतरी  भी  ,  मेरी  है  !
फिर  क्यों  न  बारिशों  का  मज़ा  ले लें , न  मेरी  थीं ,  न  मेरी  हैं  ,  न  मेरी  ही  रहेंगी  !!


जहाँ  रहना  मैं  चाहूं  ,  न  रहने  देंगी  ये  इच्छाएं  मेरी  ,
बराबर  दौडती   हैं  ,  मेरे  संग  जीने  के  लिए  , मरने  के  लिए  !!

मेरा   आराम  तुझको  भा  गया  है , अच्छा  लगा  !
वर्ना  काम  तो  अभी  भी  मुझे  करने  बहुत  हैं  !!

मेरा  मुस्कुराना  ना   तुझे  रास  आया  ,  दीवाली  मुबारिक  पे  गुस्सा  बड़ा  आया  !
मैंने  भेजी  फुलझरियां  ,  और  भेजे  कुछ  अनार  ,  तूने  फोड़ा  बम  तो  मज़ा  बड़ा  आया  !!


बन  बन  के  बिगड़ना  और  बिगड़   के  फिर  बनना , 
ये  मौज  मेरी  मिटटी  में  पहले  ही  से  शामिल  है  !
अब  रब  को  बिगाडूं    और   फिर  दोबारा   से  बनाऊं  , 
जो  सब  को  लगे  प्यारा  ,  इस  कोशिश  में  आमिल  हूँ  !!


वो  फिर  मेरी  मौज  के  आड़े  नहीं  आये  ,  ऐसा  कुछ  करने  का  ख्याल  तो  अच्छा  है  !
पर  वो  भी  तो  शातिर  है  ,  आएगा  आड़े ,  पर  सोचने  समझने  को  ख्याल  तो  अच्छा  है  !!


चांदी  के  चम्मच  से  पियूंगा   शबनम  को  ,  गुलाब  की  पंखुड़ी  का  रंग  घोल  घोल  !
मेरी  आँख  की  किरकिरी  है  , मेरी  रूह  को  तरसाती  है  ,  सुबह  सुबह  ,  रोज़  रोज़  !!



ओ  माँ  !  मैं  जानता  हूँ  तू  तारा  है  आसमान  का  ,  साथ  पिताजी  खड़े   हैं  तारा  जुड़वां  !
सब  दिखता  है  यहाँ  से  ,  आस  पास  किसी के  माँ  बाबूजी  ,  भाई  बहन  , नाना  नानी  ,  दादा  दादी  ,  सब  हैं  !
सब  बहुत  सुंदर  तारे  बने  हैं ,  खूब  चकाचौंध  हो  रही  है  !
सबको , आसमान  और  जमीं के  सब  तारों को  दिवाली   बहुत बहुत   मुबारक  हो  !
माँ  इस  दिवाली  पे  जितने  दिए  जलें  ,  और  जितने  दिल  जलें  सबको  खूब  रौशनी  देना  !
इतनी  रोशनी  देना  कि  अगर  पड़ोस  में  किसी  के  घर  में  या  दिल  में  अँधेरा  हो  तो  वो  भी  जगमगा  जाये  !
कोई  भूखा  न  रहे  ,  कोई  उदास  न  रहे  ,  सबके  घर  लहलहा  जायें  ,  पर  देखना  माँ  कोई  घर  न  जले  !
अच्छा  माँ  जब  भी  कोई  जरूरत  होती  है  तुम्हें  आवाज़  लगा  देता  हूँ  ,  देखना  माँ  अपना  और  सबका  ख्याल  रखना  !!



आज  मन  उदास  है  , टूटी  फिर  विपदा  अचानक  ,
हुआ  काल  प्रगट  , सिंह  सा  , लील  गया  , जीवन  उनका  ,
 जो  चर रहे  थे  हिरन  की  तरह , खतरे  से  परे  ,निश्चिन्त  खड़े  थे  !
अचानक  समय  सिमट  गया  ,जीवन  क्षण  में  निपट  गया  !
 अब  हो  रही  गिनती  कितने  मरे  , कितने  घायल  ,
 कितने  थे  बस  में  चढ़े  , क्या  बस  में  थी  खराबी  ?
  सब  प्रश्न  निरर्थक  , हर  बार  हादसे  के  बाद  के  प्रश्न  पत्र  ,
 जिन्हें  कोई  हल  नहीं  करता  , और  जिनका  कभी  परिणाम  नहीं  निकलता  .
 और  काल  फिर  अपनी  गति  से  चलने  लगा  जैसे  कुछ  हुआ  न  हो  . पर  मैं  उदास  हूँ  .











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