Tuesday, 25 October 2011

स्वयं  में  स्थित  हो  कर , हो  कर  ध्यानस्थ ,  करता  है  जयनारायण  कश्यप  , भगवद आवाहन  !
स्वयं  प्रगट  हो  ,  गणेश  ,लक्ष्मी ,  विष्णु  ,  ब्रह्मा  ,  महेश  , संग  सरस्वती  ,  दुर्गा  ,  कालिका  ,
पूर्ण  प्रकृति  ,  सब  दिशाएँ  ,  इन्द्र ,  अग्नि  ,  वायु  ,  जल  ,  पृथ्वी  ,  आकाश ,   वाहन सहित  !
हनुमंत   पताका   हों  स्थित  ,  ज्ञात  ,  अज्ञात  सभी  देवताओं  सहित  ,  दें  स्नेहाशीर्वाद  समस्त  जन  को ,
सम्पूरण करें  स्वमेव  की  शक्तियों  से  स्वमेव  की  तरह  ,  रहे  न  अपूर्णता  कोई  हे  परमात्मन !!



मेरी    जिंदगी   में   तू   है  , सिर्फ   तू   , बहुत   है   जिंदगी  !
मेरी   चाहतें   भी   तू   है   ,  राहतें   भी   तू   ,  है   न  जिंदगी   ?
मेरे   सपने  , मेरे   वादे , मेरी   कसमें  ,  मेरी   यादें   ,
सबमें   है   शामिल   तू   ,  तुझमें   हूँ   मैं   ,  मेरी   जिंदगी  !!
मेरा   काम   भी   तू   ,  आराम   भी   तू   , नज़र   भी   तू   ,
और   नज़राना   भी   तू   ,  तो   कहाँ   हूँ   मैं   ,  यार   ज़िन्दगी   !!
मेरी   जिंदगी   में   तू   है   ,  सिर्फ   तू   ,  बहुत   है   जिंदगी   !........................





वो   पूछते   हैं   मुझसे    ,  कहीं   झूठ   तो   नहीं   ?

मेरा    सपना  , मेरा   वादा   ,   ये   रातों   में   जगना  ,
डरना   हर   आहट  पे   , चौंक   के   सहम   जाना   ,
वो   फोन   की   घंटी   ,  वो   मिस   कॉल  ,  क्यों   सुनता   है   कोई  ,
मेरे   सोनल   सपनों  में   ,  क्यों   गूंजता   है   कोई  ,
झूठी   वो   ट्यूशन   ,  झूठा   किताबों   का   बोझ  ,
फिर   रिजल्ट   का   आना   ,  होना   फेल  ,  फेल  ,  फेल    ,  फेल   ,
बिसरना  फिर  , मेरा ,  मैरिट   में   आना   ,  लगना  ,
दांव   पर   जिंदगी   ,  उड़   जाना   अपनों   की   नींद   ,
मुझे   सब   याद   है   ,  वो   तड़प   और   अवसाद   ,  और
वो    पूछते   हैं    मुझसे   ,   कहीं    झूठ   तो   नहीं   ?

  

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