Saturday, 15 October 2011

अटपटी   चटपटी   बातें  हो  तुम्हारी  ,  और  हो  जिंदगी  का  किनारा !
झूले  हों  झूलते  ,  ज़मीं  आसमान   और   उफनता  हो  सावन  में  नदी  का  धारा  !
किश्तियाँ  हो   मझधार   ,  चप्पू  ज़मीं  पर  ,  हिचकोलियाँ  हों   मन  में  ,  और   चमकता  हो  तारा  !
और  कोई  छेड़   दे  ,  राग  मालकौंस  ,  पूरिया  ,  या  रंग  दे   चुनरिया  ,  का  तेरी  किनारा  !
मैं   तड़पता   रहूँगा  ,  फिर  भी  उफ़  न   करूंगा  ,   बातें  तुम्हारी  सुनता  रहूँगा  !!
अटपटी   चटपटी  बातें  हो  तुम्हारी  ,  और  हो  जिंदगी  का   किनारा  !!  ..............................................




कर्ण और कुंडल जिसने छोरे , मान का दान , तो वो भी न दे ?
 ऐसा मान तो सम्मान है ! सम्मान क्या ?आत्मसम्मान है !!
और यही आत्मसम्मान अब बिकाऊ है , जो चाहे खरीद ले !!
जिसे चाहे बेच दे ,सस्ते मैं खरीद ले , या महंगे में बेच दे !!
द्रोपदी से भी ज्यादा , हुआ चीर हरण कर्ण का !!
एक का छिना सिर्फ तन वस्त्र , दुसरे का आत्म का !!शीतल समीर बह रहा , मन की सुरंगों में ! यादों को समेट ला रहा , ख्यालों की पतंगों में !!
चुम्बकी बिजलियाँ सन्देश ढो रही , सारे शारीर क्रियाओं का , प्रबंधन कर रही !!
कहीं गड़बड़ा न जाएँ , सूत्र ये कभी ! शरीर स्वस्थ रहे सदा , मन के साथ ही !!


















    

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