अटपटी चटपटी बातें हो तुम्हारी , और हो जिंदगी का किनारा !
झूले हों झूलते , ज़मीं आसमान और उफनता हो सावन में नदी का धारा !
किश्तियाँ हो मझधार , चप्पू ज़मीं पर , हिचकोलियाँ हों मन में , और चमकता हो तारा !
और कोई छेड़ दे , राग मालकौंस , पूरिया , या रंग दे चुनरिया , का तेरी किनारा !
मैं तड़पता रहूँगा , फिर भी उफ़ न करूंगा , बातें तुम्हारी सुनता रहूँगा !!
अटपटी चटपटी बातें हो तुम्हारी , और हो जिंदगी का किनारा !! ..............................................
कर्ण और कुंडल जिसने छोरे , मान का दान , तो वो भी न दे ?
ऐसा मान तो सम्मान है ! सम्मान क्या ?आत्मसम्मान है !!
और यही आत्मसम्मान अब बिकाऊ है , जो चाहे खरीद ले !!
जिसे चाहे बेच दे ,सस्ते मैं खरीद ले , या महंगे में बेच दे !!
द्रोपदी से भी ज्यादा , हुआ चीर हरण कर्ण का !!
एक का छिना सिर्फ तन वस्त्र , दुसरे का आत्म का !!शीतल समीर बह रहा , मन की सुरंगों में ! यादों को समेट ला रहा , ख्यालों की पतंगों में !!
झूले हों झूलते , ज़मीं आसमान और उफनता हो सावन में नदी का धारा !
किश्तियाँ हो मझधार , चप्पू ज़मीं पर , हिचकोलियाँ हों मन में , और चमकता हो तारा !
और कोई छेड़ दे , राग मालकौंस , पूरिया , या रंग दे चुनरिया , का तेरी किनारा !
मैं तड़पता रहूँगा , फिर भी उफ़ न करूंगा , बातें तुम्हारी सुनता रहूँगा !!
अटपटी चटपटी बातें हो तुम्हारी , और हो जिंदगी का किनारा !! ..............................................
कर्ण और कुंडल जिसने छोरे , मान का दान , तो वो भी न दे ?
ऐसा मान तो सम्मान है ! सम्मान क्या ?आत्मसम्मान है !!
और यही आत्मसम्मान अब बिकाऊ है , जो चाहे खरीद ले !!
जिसे चाहे बेच दे ,सस्ते मैं खरीद ले , या महंगे में बेच दे !!
द्रोपदी से भी ज्यादा , हुआ चीर हरण कर्ण का !!
एक का छिना सिर्फ तन वस्त्र , दुसरे का आत्म का !!शीतल समीर बह रहा , मन की सुरंगों में ! यादों को समेट ला रहा , ख्यालों की पतंगों में !!
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