समझे तो हैं हम ज़माने की चाल , पर उलटी समझे हैं ,
बोले कोई जाओ उत्तर , दक्षिण हम खुद समझते हैं !!
ज़माने के रंग मालूम हैं , इक रंग मेरा भी देख ,
शामिल तो कर अपनी मायूसी में , उम्र भर हंसाता हूँ मैं !!
चंद ख्वाबों को मेरे हवाले कर , रंग उनमें भर दूंगा ,
फीका फीका , है इन्द्रधनुष तेरा , सतरंगी बनाता हूँ मैं !!
शाम से फैला रहा हूँ रंग अपने , सूरज को थोड़ा ढलने दे ,
कूची मेरी ज़रा सी है बेताब , रंग गहरा और गहरा होने दे !!
मेरा एतबार थोड़ा करना सीख ,हूँ नहीं मैं कोई धोखेबाज़ ,
रंग सारे जहाँ के भरता हूँ , भर भर के हल्का जी करने दे !!
बोले कोई जाओ उत्तर , दक्षिण हम खुद समझते हैं !!
ज़माने के रंग मालूम हैं , इक रंग मेरा भी देख ,
शामिल तो कर अपनी मायूसी में , उम्र भर हंसाता हूँ मैं !!
चंद ख्वाबों को मेरे हवाले कर , रंग उनमें भर दूंगा ,
फीका फीका , है इन्द्रधनुष तेरा , सतरंगी बनाता हूँ मैं !!
शाम से फैला रहा हूँ रंग अपने , सूरज को थोड़ा ढलने दे ,
कूची मेरी ज़रा सी है बेताब , रंग गहरा और गहरा होने दे !!
मेरा एतबार थोड़ा करना सीख ,हूँ नहीं मैं कोई धोखेबाज़ ,
रंग सारे जहाँ के भरता हूँ , भर भर के हल्का जी करने दे !!
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