Saturday, 29 October 2011

समझे  तो  हैं  हम  ज़माने  की  चाल  ,  पर  उलटी   समझे  हैं  , 
बोले  कोई  जाओ  उत्तर , दक्षिण  हम  खुद  समझते  हैं  !!

ज़माने  के  रंग  मालूम  हैं ,  इक  रंग  मेरा  भी  देख  ,
शामिल  तो  कर  अपनी  मायूसी  में , उम्र  भर  हंसाता  हूँ  मैं !!

चंद  ख्वाबों  को  मेरे  हवाले  कर  ,  रंग  उनमें  भर  दूंगा  ,
फीका  फीका ,  है इन्द्रधनुष  तेरा  , सतरंगी  बनाता  हूँ  मैं  !!

शाम  से  फैला  रहा  हूँ  रंग  अपने  ,  सूरज  को  थोड़ा  ढलने  दे  ,
कूची  मेरी  ज़रा  सी  है   बेताब  ,  रंग  गहरा  और  गहरा  होने  दे  !!

मेरा  एतबार थोड़ा  करना  सीख  ,हूँ  नहीं  मैं कोई  धोखेबाज़ ,
रंग  सारे  जहाँ  के  भरता   हूँ , भर  भर  के  हल्का  जी करने  दे  !! 

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