Sunday, 30 October 2011


किया  श्याम  से  स्नेह  ,  मिला  विछोह  का  प्रसाद ,
जाने  क्यों  गलियों  में  ,  राधा  मिल  गयी ,
मैं  भी  उसकी  बातों  में  अंधाधुंध   खो  गयी  ,
उसका  तो  ग्वाल  बाल  का  गेह  है  रहा  ,
मेरा  तो  नेह  स्नेह  सब  अनजान  था  ,
मैं  भी  अरे  उफनती  जमुना  में  डूब  गयी  ,
आस  पास  दुविधाओं संग  छोल  गयी  ,
ये  सब  रास  वास  छल  है  कन्हईया   का ,
मैं  क्यों   इस  खेल  में  खेल  खेल  गयी  ,
राधा  जब  रोएगी  भी ,  तो मनाएंगे  सब  ,
मेरा  तो  उपहास  होगा  ,  सखियाँ  सब  बोल  बोल  गई !!



काले  काले  जामुन  अरे  खा  ले रे  कन्हईया ,
तेरा  रंग  और  थोड़ा , निखर  निखर  जाएगा  ,
चारों  तरफ  मंडरायेंगी  थोड़ी   और  सखियाँ ,
थोड़ा   सा  रास  और , और  निखर  जायेगा ,
घेरा  बढ़ेगा  ,  वन  में  रास  और  चढ़ेगा  ,
चाँद  जैसे  ,झांके  ,  मैं  भी  झांक  जाऊंगा  ,
तेरे  रंग  का  कमाल  है  या  रूप  का  ख्याल  है  ,
मेरा  तो  जीवन   ही  गया ,  इन  व्यर्थ  के   सवालों  में ,
तू  मेरा  भी   थोड़ा  सा  साथ  अगर  दे  दे  ,
मेरा  भी  रास  रास  ,  महारास  रच  जाएगा  !!



वो  आम  की  अमराई  में  ,  मेरा  बचपन  जो  बीता  ,
वो  आज  भी  जिन्दा  है  यादों  की  परछाई  में  !
कौन  सी  थी  कक्षा  ,  और  कितने  बच्चे   थे ,
कौन  था  पढ़ता  और  कौन  था  पढाता !
मौन  से  ये  प्रश्न  हैं  ,  और  मौन  ही  उत्तर ,
कहाँ  गए  संगी  साथी  ,  कहाँ  गये  वो  टीचर !
ये  जानो  या  न  जानो  ,  तो  भी  एक  बचपन  बाकी  है ,
आम  को  जो   मारा  था ,  पत्थर  एक  काफी  है  !
आम  झड़े   चार  पाँच  ,  सर  फूटा  एक  का  ,
डंडे  झड़े   आठ  दस  ,  स्कूल  छूटा  एक  का  !
जीवन  गया  रीत  एक , आम  के  चक्कर  में ,
याद  आया  ये   क्यों  सब  ,  अरे  आम  के  चक्कर  में  !
वो  आम  की  अमराई  में  ,  बचपन  जो  मेरा  बीता  ,
वो  आज  भी  जिन्दा  है  ,  यादों  की  परछाई  में  !!

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