किया श्याम से स्नेह , मिला विछोह का प्रसाद ,
जाने क्यों गलियों में , राधा मिल गयी ,
मैं भी उसकी बातों में अंधाधुंध खो गयी ,
उसका तो ग्वाल बाल का गेह है रहा ,
मेरा तो नेह स्नेह सब अनजान था ,
मैं भी अरे उफनती जमुना में डूब गयी ,
आस पास दुविधाओं संग छोल गयी ,
ये सब रास वास छल है कन्हईया का ,
मैं क्यों इस खेल में खेल खेल गयी ,
राधा जब रोएगी भी , तो मनाएंगे सब ,
मेरा तो उपहास होगा , सखियाँ सब बोल बोल गई !!
काले काले जामुन अरे खा ले रे कन्हईया ,
तेरा रंग और थोड़ा , निखर निखर जाएगा ,
चारों तरफ मंडरायेंगी थोड़ी और सखियाँ ,
थोड़ा सा रास और , और निखर जायेगा ,
घेरा बढ़ेगा , वन में रास और चढ़ेगा ,
चाँद जैसे ,झांके , मैं भी झांक जाऊंगा ,
तेरे रंग का कमाल है या रूप का ख्याल है ,
मेरा तो जीवन ही गया , इन व्यर्थ के सवालों में ,
तू मेरा भी थोड़ा सा साथ अगर दे दे ,
मेरा भी रास रास , महारास रच जाएगा !!
वो आम की अमराई में , मेरा बचपन जो बीता ,
वो आज भी जिन्दा है यादों की परछाई में !
कौन सी थी कक्षा , और कितने बच्चे थे ,
कौन था पढ़ता और कौन था पढाता !
मौन से ये प्रश्न हैं , और मौन ही उत्तर ,
कहाँ गए संगी साथी , कहाँ गये वो टीचर !
ये जानो या न जानो , तो भी एक बचपन बाकी है ,
आम को जो मारा था , पत्थर एक काफी है !
आम झड़े चार पाँच , सर फूटा एक का ,
डंडे झड़े आठ दस , स्कूल छूटा एक का !
जीवन गया रीत एक , आम के चक्कर में ,
याद आया ये क्यों सब , अरे आम के चक्कर में !
वो आम की अमराई में , बचपन जो मेरा बीता ,
वो आज भी जिन्दा है , यादों की परछाई में !!
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