मैं निकला हूँ , मौज मस्ती में , है कोई छींकने वाला , किनारे हो जाए !!
गिरगिटों को तो रंग बदलना है , है शुमार उनकी ये आदत में !
तू है शिकार , शिकार होना है , तेरी आदत तो बच निकलना है !!
चाँद रात है , शादी शबनम की , गाये सुहाग झींगुर है !
बजाये शहनाई कोयल रे , तान भैरव की आज छेड़ी है !!
आये तो हो ज़नाज़े में , इतना करम कर देना ! जिस में मेरा डेरा था , उस गली का भरम रख लेना !
रौनक तो मेरे जनाज़े में थी ,शामिल हर शख्श था रंगीन ! हर हाथ में जाम छलकता था , और झूला मेरा झूलता था !!
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