Saturday, 29 October 2011


मैं  निकला  हूँ  , मौज  मस्ती  में  , है  कोई  छींकने  वाला  , किनारे  हो  जाए  !!


गिरगिटों  को  तो  रंग  बदलना  है  , है  शुमार  उनकी  ये  आदत  में  !
तू  है  शिकार  , शिकार  होना  है  , तेरी  आदत  तो  बच  निकलना  है  !!

चाँद  रात  है  , शादी  शबनम  की  , गाये सुहाग  झींगुर  है  !
बजाये  शहनाई  कोयल  रे  , तान  भैरव  की  आज  छेड़ी है  !!

आये  तो  हो  ज़नाज़े  में  , इतना  करम  कर  देना  ! जिस  में  मेरा  डेरा  था  , उस  गली  का  भरम  रख  लेना  !

रौनक  तो  मेरे  जनाज़े  में  थी  ,शामिल  हर  शख्श  था  रंगीन  ! हर  हाथ  में  जाम  छलकता  था  , और  झूला  मेरा  झूलता  था  !!

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