Thursday, 20 October 2011

अजीब  शक्ल  लेके   मैं  ,  निकला  था  घर  से  आज  ,  लोगों के  सब  तानों  ने  , अब  रख  दी  सुधार  के  !
हो  जाती   है  आदमी  को  बहुत  सी ,  खुशफहमियां  , चाहिए  करीब  आयना  , जो   शक्ल  रक्खे  संवार  के !!


मैं  जानता  हूँ  सबको  ,  खुद को  जानता  नहीं  ,  मेरा  घर  करीब  है  ,  पर  गुमशुदा  हूँ  मैं  !


नज़र  से  तेरी  मैं  बच  भी  गया  ,  तो  खुद  से  बचाएगा  कौन  !
रिश्वत    भी   दूंगा  खुद  को  तो  ,  सरेआम ,  जिंदा   मरूंगा  मैं !!


अच्छा  हुआ  टूटा  वो  धागा  , थी  जो  आस  की  डोर   !
 वो  देखें  अपना  करम  ,और  मैं  अपने  वतन  की  ओर !!



अँधेरा  छुपा  है  हर  कोने  में  , कब  मारे  झपट्टा  क्या   मालूम  ?
राम  बने  कब  किसमें  रावण  , किसको  पता  और  क्या  मालूम  ?

कोलाहल  ही  कोलाहल  है  ,  कोलाहल  का  अल्कोहल  है  !
सड़कों  पर  है  कोलाहल  ,  ड्राईवर  पिए   अल्कोहल  है  !!
पार्लियामेंट  में  कोलाहल  है  ,  राजनीति  का अल्कोहल  है !
कॉलेज  में  कोलाहल  है  ,  प्यार  पढाई  का  अल्कोहल  है !!
घर   में  टी वी  का  कोलाहल  है  ,  सोप ओपेरा  का  अल्कोहल  है  !
घर  में   बी वी  का  कोलाहल  है  ,  घरवाले  का  अल्कोहल  है !!
काले  तेल  का  कोलाहल  है  ,  गद्दाफी  सद्दाम  का  अल्कोहल  है  !
इस  सारे  कोलाहल  का  क्या  हल  है  ,  अल्कोहल   जी  अल्कोहल  है  !!
    







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