अजीब शक्ल लेके मैं , निकला था घर से आज , लोगों के सब तानों ने , अब रख दी सुधार के !
हो जाती है आदमी को बहुत सी , खुशफहमियां , चाहिए करीब आयना , जो शक्ल रक्खे संवार के !!
मैं जानता हूँ सबको , खुद को जानता नहीं , मेरा घर करीब है , पर गुमशुदा हूँ मैं !
नज़र से तेरी मैं बच भी गया , तो खुद से बचाएगा कौन !
रिश्वत भी दूंगा खुद को तो , सरेआम , जिंदा मरूंगा मैं !!
हो जाती है आदमी को बहुत सी , खुशफहमियां , चाहिए करीब आयना , जो शक्ल रक्खे संवार के !!
मैं जानता हूँ सबको , खुद को जानता नहीं , मेरा घर करीब है , पर गुमशुदा हूँ मैं !
नज़र से तेरी मैं बच भी गया , तो खुद से बचाएगा कौन !
रिश्वत भी दूंगा खुद को तो , सरेआम , जिंदा मरूंगा मैं !!
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