Friday, 28 October 2011


ज़ालिम   तेरा  नूर  , पहुंचा  है  इतनी  दूर  ! के  ज़ेहन  मेरा  शाम  से  , सोने  न  दे  रहा  !!
ले  जायें  इतना  दूर  मुझे  , तन्हाईयाँ  मेरी  ! साया  भी  उम्र  भर  मुझे  ढूँढता  रहे  !!

चलते  चलते  मैं  तेरे  , सपनों  में  आ  गया  ! देखा  खुद  को  , पहले  से  वहां  , तो  घबरा  गया  !!

तुम्हें  तलाशता  रहा  , नज़रों  में  मैं  तेरी  ! दिल  से  आयी खबर  के  , में यहाँ  पे  हूँ  !!

जाऊं तुझे  छोड़  के  रहबर  मेरे  कहाँ  ,  है  कौन  सख्श  ऐसा  जो  ,  मुझको   पनाह  में  ले !
देखा  है  मैंने  दर ,   ग़ैर  का  , ग़ैर  ही  हैं  सब   ,  सूरत  में  ऐसी  यार मुझे ,  दामन  में   कौन  ले  !!

जिए  जाओ  , जिए  जाओ  और  तरसाओ  ग़म  को  मेरे  ! पता  तो  चले  शैतान  को , की  , हौसला  बुलंद  है !!

कितनी  रंगीन  कहानी  है  , दोस्ती  की  मेरी  ! खूँ  से  लिखी  इबारत  को  , खूँ  से  मिटा  दिया  !!

शायद  रंज़ दिल  का  बातों में  घुल  गया  !कड़वी लगी  शराब  न  , और  सर  सारा  घूम  गया  !!

इतनी  गर्म तासीर  थी  ,रूह  की  तेरी  , प्याला  भी  पिघला  शोक  से  , और  मैं  भी  पिघल  गया  !

ज़माना  पछता  रहा  मुझे  परस  थमाकर , अब  हर  शै  को  सोना  बनाता हूँ  मैं  !!

नज़र  लग  गयी  मुझे  ज़माने  की  , तितलियों  को  उड़ना  सिखा  रहा  हूँ  मैं  !!

तेरी  शाम  बन  गयी  ,  मेरी  शाम  बन  गयी  ,  बख्शा  कुछ  इस  तरह खुदा  ने , कहानी  बन  गयी !
शायद  ये  पहली  बार  है  ,  चलन  ज़माने  का  बदल  गया  ,  बख्सी गयी  कहानी  भी , कहानी  बन गयी  !!

इस  सोच  से  कि  शायद , मेरा  साया  भी  साथ  ना  दे  ,
क्या  कोई  इन्सान  अकेला  निकलना  छोड़  दे  ?
जब  आंख  मेरी  खुली  थी , तब  कौन  साथ  था  ?  
झाड़ी  में  गुदड़ी  में , लिपटा  था  तनहा ,  बताते सब  मुझे !!
पहरा  दे  रहा  था  एक  कुत्ता  शाम  से  , बदनामी  के  डर  से  ,
आई  न  माँ  ,  न   बाप  ,दुरुस्ती  को  जांचने !
जिसने  बचाया  ठण्ड  और  मौत  से  मुझे  ,  क्या  साथ  नहीं  ? 
फिर  क्यों  मालिक  को  कोई  समझना  छोड़  दे  !! 

धीरे   से   ,  ज़रा  धीरे   से   , आना   मेरी   यादों   में   तुम   !
कुछ   सपने   सुलाए   हैं   ,  थपक  थपक   ,  लोरी   दे   दे   !!
जग   जायेंगे   तो   होगी   परेशानी   ,
रोयेंगे   वो  ,  बिन   दूध   औ   पानी   !!
अधनींद   से   जगना  , दुलरेगा  नहीं  ,
बिटरेंगे   बहुत   जब  , माँ    न   मिलेगी   !!
देखो , ज़रा   धीरे   से  ,  ठोकर   न   लगे  ,
किनारे   से   आना   , दीवार   को   पकड़े  !!
अभी   तो   बस   ,  मिल   जाए   दो   वक्त   का   खाना  ,
तकलीफ   में   जीवन   है   , आस   को   पकड़े   !!
धीरे   से   ज़रा   धीरे   से   , आना  मेरी   यादों   में   तुम  !
कुछ   सपने   सुलाए   हैं   ,  थपक   थपक   ,  लोरी   दे   दे   !!

सब  झूठ  नहीं  , दीवारों  को  तकना , ख़ाली आँखों  से  !
सब  पागल  हैं  , ऐसा  लगना  , सब  सच  है  कुछ  झूठ  नहीं  !!
क्या  महसूस  हुआ  ? कब  सोचा  सब  ?
साल  सोहलवाँ लगा  था  तब  !!
  

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