ज़ालिम तेरा नूर , पहुंचा है इतनी दूर ! के ज़ेहन मेरा शाम से , सोने न दे रहा !!
ले जायें इतना दूर मुझे , तन्हाईयाँ मेरी ! साया भी उम्र भर मुझे ढूँढता रहे !!
चलते चलते मैं तेरे , सपनों में आ गया ! देखा खुद को , पहले से वहां , तो घबरा गया !!
तुम्हें तलाशता रहा , नज़रों में मैं तेरी ! दिल से आयी खबर के , में यहाँ पे हूँ !!
जाऊं तुझे छोड़ के रहबर मेरे कहाँ , है कौन सख्श ऐसा जो , मुझको पनाह में ले !
देखा है मैंने दर , ग़ैर का , ग़ैर ही हैं सब , सूरत में ऐसी यार मुझे , दामन में कौन ले !!
जिए जाओ , जिए जाओ और तरसाओ ग़म को मेरे ! पता तो चले शैतान को , की , हौसला बुलंद है !!
कितनी रंगीन कहानी है , दोस्ती की मेरी ! खूँ से लिखी इबारत को , खूँ से मिटा दिया !!
शायद रंज़ दिल का बातों में घुल गया !कड़वी लगी शराब न , और सर सारा घूम गया !!
इतनी गर्म तासीर थी ,रूह की तेरी , प्याला भी पिघला शोक से , और मैं भी पिघल गया !
ज़माना पछता रहा मुझे परस थमाकर , अब हर शै को सोना बनाता हूँ मैं !!
नज़र लग गयी मुझे ज़माने की , तितलियों को उड़ना सिखा रहा हूँ मैं !!
तेरी शाम बन गयी , मेरी शाम बन गयी , बख्शा कुछ इस तरह खुदा ने , कहानी बन गयी !
शायद ये पहली बार है , चलन ज़माने का बदल गया , बख्सी गयी कहानी भी , कहानी बन गयी !!
इस सोच से कि शायद , मेरा साया भी साथ ना दे ,
क्या कोई इन्सान अकेला निकलना छोड़ दे ?
जब आंख मेरी खुली थी , तब कौन साथ था ?
झाड़ी में गुदड़ी में , लिपटा था तनहा , बताते सब मुझे !!
पहरा दे रहा था एक कुत्ता शाम से , बदनामी के डर से ,
आई न माँ , न बाप ,दुरुस्ती को जांचने !
जिसने बचाया ठण्ड और मौत से मुझे , क्या साथ नहीं ?
फिर क्यों मालिक को कोई समझना छोड़ दे !!
धीरे से , ज़रा धीरे से , आना मेरी यादों में तुम !
कुछ सपने सुलाए हैं , थपक थपक , लोरी दे दे !! जग जायेंगे तो होगी परेशानी , रोयेंगे वो , बिन दूध औ पानी !! अधनींद से जगना , दुलरेगा नहीं , बिटरेंगे बहुत जब , माँ न मिलेगी !! देखो , ज़रा धीरे से , ठोकर न लगे , किनारे से आना , दीवार को पकड़े !! अभी तो बस , मिल जाए दो वक्त का खाना , तकलीफ में जीवन है , आस को पकड़े !! धीरे से ज़रा धीरे से , आना मेरी यादों में तुम ! कुछ सपने सुलाए हैं , थपक थपक , लोरी दे दे !!
सब झूठ नहीं , दीवारों को तकना , ख़ाली आँखों से !
सब पागल हैं , ऐसा लगना , सब सच है कुछ झूठ नहीं !!
क्या महसूस हुआ ? कब सोचा सब ?
साल सोहलवाँ लगा था तब !!
चलते चलते मैं तेरे , सपनों में आ गया ! देखा खुद को , पहले से वहां , तो घबरा गया !!
तुम्हें तलाशता रहा , नज़रों में मैं तेरी ! दिल से आयी खबर के , में यहाँ पे हूँ !!
जाऊं तुझे छोड़ के रहबर मेरे कहाँ , है कौन सख्श ऐसा जो , मुझको पनाह में ले !
देखा है मैंने दर , ग़ैर का , ग़ैर ही हैं सब , सूरत में ऐसी यार मुझे , दामन में कौन ले !!
जिए जाओ , जिए जाओ और तरसाओ ग़म को मेरे ! पता तो चले शैतान को , की , हौसला बुलंद है !!
कितनी रंगीन कहानी है , दोस्ती की मेरी ! खूँ से लिखी इबारत को , खूँ से मिटा दिया !!
शायद रंज़ दिल का बातों में घुल गया !कड़वी लगी शराब न , और सर सारा घूम गया !!
इतनी गर्म तासीर थी ,रूह की तेरी , प्याला भी पिघला शोक से , और मैं भी पिघल गया !
ज़माना पछता रहा मुझे परस थमाकर , अब हर शै को सोना बनाता हूँ मैं !!
नज़र लग गयी मुझे ज़माने की , तितलियों को उड़ना सिखा रहा हूँ मैं !!
तेरी शाम बन गयी , मेरी शाम बन गयी , बख्शा कुछ इस तरह खुदा ने , कहानी बन गयी !
शायद ये पहली बार है , चलन ज़माने का बदल गया , बख्सी गयी कहानी भी , कहानी बन गयी !!
इस सोच से कि शायद , मेरा साया भी साथ ना दे ,
क्या कोई इन्सान अकेला निकलना छोड़ दे ?
जब आंख मेरी खुली थी , तब कौन साथ था ?
झाड़ी में गुदड़ी में , लिपटा था तनहा , बताते सब मुझे !!
पहरा दे रहा था एक कुत्ता शाम से , बदनामी के डर से ,
आई न माँ , न बाप ,दुरुस्ती को जांचने !
जिसने बचाया ठण्ड और मौत से मुझे , क्या साथ नहीं ?
फिर क्यों मालिक को कोई समझना छोड़ दे !!
धीरे से , ज़रा धीरे से , आना मेरी यादों में तुम !
कुछ सपने सुलाए हैं , थपक थपक , लोरी दे दे !! जग जायेंगे तो होगी परेशानी , रोयेंगे वो , बिन दूध औ पानी !! अधनींद से जगना , दुलरेगा नहीं , बिटरेंगे बहुत जब , माँ न मिलेगी !! देखो , ज़रा धीरे से , ठोकर न लगे , किनारे से आना , दीवार को पकड़े !! अभी तो बस , मिल जाए दो वक्त का खाना , तकलीफ में जीवन है , आस को पकड़े !! धीरे से ज़रा धीरे से , आना मेरी यादों में तुम ! कुछ सपने सुलाए हैं , थपक थपक , लोरी दे दे !!
सब झूठ नहीं , दीवारों को तकना , ख़ाली आँखों से !
सब पागल हैं , ऐसा लगना , सब सच है कुछ झूठ नहीं !!
क्या महसूस हुआ ? कब सोचा सब ?
साल सोहलवाँ लगा था तब !!
देखा है मैंने दर , ग़ैर का , ग़ैर ही हैं सब , सूरत में ऐसी यार मुझे , दामन में कौन ले !!
जिए जाओ , जिए जाओ और तरसाओ ग़म को मेरे ! पता तो चले शैतान को , की , हौसला बुलंद है !!
कितनी रंगीन कहानी है , दोस्ती की मेरी ! खूँ से लिखी इबारत को , खूँ से मिटा दिया !!
शायद रंज़ दिल का बातों में घुल गया !कड़वी लगी शराब न , और सर सारा घूम गया !!
इतनी गर्म तासीर थी ,रूह की तेरी , प्याला भी पिघला शोक से , और मैं भी पिघल गया !
ज़माना पछता रहा मुझे परस थमाकर , अब हर शै को सोना बनाता हूँ मैं !!
नज़र लग गयी मुझे ज़माने की , तितलियों को उड़ना सिखा रहा हूँ मैं !!
तेरी शाम बन गयी , मेरी शाम बन गयी , बख्शा कुछ इस तरह खुदा ने , कहानी बन गयी !
शायद ये पहली बार है , चलन ज़माने का बदल गया , बख्सी गयी कहानी भी , कहानी बन गयी !!
इस सोच से कि शायद , मेरा साया भी साथ ना दे ,
क्या कोई इन्सान अकेला निकलना छोड़ दे ?
जब आंख मेरी खुली थी , तब कौन साथ था ?
झाड़ी में गुदड़ी में , लिपटा था तनहा , बताते सब मुझे !!
पहरा दे रहा था एक कुत्ता शाम से , बदनामी के डर से ,
आई न माँ , न बाप ,दुरुस्ती को जांचने !
जिसने बचाया ठण्ड और मौत से मुझे , क्या साथ नहीं ?
फिर क्यों मालिक को कोई समझना छोड़ दे !!
धीरे से , ज़रा धीरे से , आना मेरी यादों में तुम !
कुछ सपने सुलाए हैं , थपक थपक , लोरी दे दे !! जग जायेंगे तो होगी परेशानी , रोयेंगे वो , बिन दूध औ पानी !! अधनींद से जगना , दुलरेगा नहीं , बिटरेंगे बहुत जब , माँ न मिलेगी !! देखो , ज़रा धीरे से , ठोकर न लगे , किनारे से आना , दीवार को पकड़े !! अभी तो बस , मिल जाए दो वक्त का खाना , तकलीफ में जीवन है , आस को पकड़े !! धीरे से ज़रा धीरे से , आना मेरी यादों में तुम ! कुछ सपने सुलाए हैं , थपक थपक , लोरी दे दे !!
सब झूठ नहीं , दीवारों को तकना , ख़ाली आँखों से !
सब पागल हैं , ऐसा लगना , सब सच है कुछ झूठ नहीं !!
क्या महसूस हुआ ? कब सोचा सब ?
साल सोहलवाँ लगा था तब !!
शायद रंज़ दिल का बातों में घुल गया !कड़वी लगी शराब न , और सर सारा घूम गया !!
इतनी गर्म तासीर थी ,रूह की तेरी , प्याला भी पिघला शोक से , और मैं भी पिघल गया !
ज़माना पछता रहा मुझे परस थमाकर , अब हर शै को सोना बनाता हूँ मैं !!
नज़र लग गयी मुझे ज़माने की , तितलियों को उड़ना सिखा रहा हूँ मैं !!
तेरी शाम बन गयी , मेरी शाम बन गयी , बख्शा कुछ इस तरह खुदा ने , कहानी बन गयी !
शायद ये पहली बार है , चलन ज़माने का बदल गया , बख्सी गयी कहानी भी , कहानी बन गयी !!
इस सोच से कि शायद , मेरा साया भी साथ ना दे ,
क्या कोई इन्सान अकेला निकलना छोड़ दे ?
जब आंख मेरी खुली थी , तब कौन साथ था ?
झाड़ी में गुदड़ी में , लिपटा था तनहा , बताते सब मुझे !!
पहरा दे रहा था एक कुत्ता शाम से , बदनामी के डर से ,
आई न माँ , न बाप ,दुरुस्ती को जांचने !
जिसने बचाया ठण्ड और मौत से मुझे , क्या साथ नहीं ?
फिर क्यों मालिक को कोई समझना छोड़ दे !!
धीरे से , ज़रा धीरे से , आना मेरी यादों में तुम !
कुछ सपने सुलाए हैं , थपक थपक , लोरी दे दे !! जग जायेंगे तो होगी परेशानी , रोयेंगे वो , बिन दूध औ पानी !! अधनींद से जगना , दुलरेगा नहीं , बिटरेंगे बहुत जब , माँ न मिलेगी !! देखो , ज़रा धीरे से , ठोकर न लगे , किनारे से आना , दीवार को पकड़े !! अभी तो बस , मिल जाए दो वक्त का खाना , तकलीफ में जीवन है , आस को पकड़े !! धीरे से ज़रा धीरे से , आना मेरी यादों में तुम ! कुछ सपने सुलाए हैं , थपक थपक , लोरी दे दे !!
सब झूठ नहीं , दीवारों को तकना , ख़ाली आँखों से !
सब पागल हैं , ऐसा लगना , सब सच है कुछ झूठ नहीं !!
क्या महसूस हुआ ? कब सोचा सब ?
साल सोहलवाँ लगा था तब !!
ज़माना पछता रहा मुझे परस थमाकर , अब हर शै को सोना बनाता हूँ मैं !!
नज़र लग गयी मुझे ज़माने की , तितलियों को उड़ना सिखा रहा हूँ मैं !!
तेरी शाम बन गयी , मेरी शाम बन गयी , बख्शा कुछ इस तरह खुदा ने , कहानी बन गयी !
शायद ये पहली बार है , चलन ज़माने का बदल गया , बख्सी गयी कहानी भी , कहानी बन गयी !!
इस सोच से कि शायद , मेरा साया भी साथ ना दे ,
क्या कोई इन्सान अकेला निकलना छोड़ दे ?
जब आंख मेरी खुली थी , तब कौन साथ था ?
झाड़ी में गुदड़ी में , लिपटा था तनहा , बताते सब मुझे !!
पहरा दे रहा था एक कुत्ता शाम से , बदनामी के डर से ,
आई न माँ , न बाप ,दुरुस्ती को जांचने !
जिसने बचाया ठण्ड और मौत से मुझे , क्या साथ नहीं ?
फिर क्यों मालिक को कोई समझना छोड़ दे !!
धीरे से , ज़रा धीरे से , आना मेरी यादों में तुम !
कुछ सपने सुलाए हैं , थपक थपक , लोरी दे दे !! जग जायेंगे तो होगी परेशानी , रोयेंगे वो , बिन दूध औ पानी !! अधनींद से जगना , दुलरेगा नहीं , बिटरेंगे बहुत जब , माँ न मिलेगी !! देखो , ज़रा धीरे से , ठोकर न लगे , किनारे से आना , दीवार को पकड़े !! अभी तो बस , मिल जाए दो वक्त का खाना , तकलीफ में जीवन है , आस को पकड़े !! धीरे से ज़रा धीरे से , आना मेरी यादों में तुम ! कुछ सपने सुलाए हैं , थपक थपक , लोरी दे दे !!
सब झूठ नहीं , दीवारों को तकना , ख़ाली आँखों से !
सब पागल हैं , ऐसा लगना , सब सच है कुछ झूठ नहीं !!
क्या महसूस हुआ ? कब सोचा सब ?
साल सोहलवाँ लगा था तब !!
शायद ये पहली बार है , चलन ज़माने का बदल गया , बख्सी गयी कहानी भी , कहानी बन गयी !!
क्या कोई इन्सान अकेला निकलना छोड़ दे ?
जब आंख मेरी खुली थी , तब कौन साथ था ?
झाड़ी में गुदड़ी में , लिपटा था तनहा , बताते सब मुझे !!
पहरा दे रहा था एक कुत्ता शाम से , बदनामी के डर से ,
आई न माँ , न बाप ,दुरुस्ती को जांचने !
जिसने बचाया ठण्ड और मौत से मुझे , क्या साथ नहीं ?
फिर क्यों मालिक को कोई समझना छोड़ दे !!
कुछ सपने सुलाए हैं , थपक थपक , लोरी दे दे !!
जग जायेंगे तो होगी परेशानी ,
रोयेंगे वो , बिन दूध औ पानी !!
अधनींद से जगना , दुलरेगा नहीं ,
बिटरेंगे बहुत जब , माँ न मिलेगी !!
देखो , ज़रा धीरे से , ठोकर न लगे ,
किनारे से आना , दीवार को पकड़े !!
अभी तो बस , मिल जाए दो वक्त का खाना ,
तकलीफ में जीवन है , आस को पकड़े !!
धीरे से ज़रा धीरे से , आना मेरी यादों में तुम !
कुछ सपने सुलाए हैं , थपक थपक , लोरी दे दे !!
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