Sunday, 30 October 2011

ग़म  के  साथ  ग़म  के  घर  एक  शाम
कल   अचानक   किसी   ने   मेरे   कंधे   पर   हाथ   रख   दिया   तो   मैं   चौंक   गया   ! पीछे  मुड़  के   देखा   तो   ग़म  था   ! बोला   यार   बड़े   दिन   से   मिले   नहीं   ,  कहाँ   चले गये   थे   !  ढूंढता   मर   गया   मैं   ,  मैंने   सोचा   जय  को   तो  फुर्सत   नहीं   मैं   ही   मिल   लेता   हूँ   !  मैं   बोला  “ यार   डरा   दिया   तुने   तो   , चलो   कहीं    बैठते   हैं   “! ग़म   ने   कहा   नहीं   यार   ,  चल   मेरे   घर   चल   ,  आ   मैं   तुझे   अपना   घर   दिखाता   हूँ   ,  चाय  भी   वहीँ   पियेंगे   !  मैंने   कहा   चलो   !
जब   वहां   पहुंचे   तो   मैंने   देखा   ख़ुशी   का   घर   भी   वहीँ   था   !  मैंने   पूछा   ये   क्या   ?  बोला  ,  यार   जुड़वां   बहन   है   मैंने   साथ   ही   उसका   घर   भी   बना   दिया   !  जिसकी   मर्ज़ी   जहाँ   चला   जाए   !ग़म   का   घर   बहुत  उदास   शक्ल   का   था   !  लम्बी   लम्बी   दाढ़ी   जैसी   देकोरातिओं   की   हुई   थी   !  आँखें   भी   मकान  की   खाली   खाली   सी   थीं   !  मुंह   लटका   हुआ   था   !  मैंने   पूछा   ये   क्या   हाल   बना   रक्खा   है   मकान   का   ,  कुछ   सजाते   बवाते   क्यों   नहीं   !
वो   हैरानी   से   मेरा   मुंह   देखने   लगा   !  बोला   यार   अरबों   रुपया   लगाया   है   डेकोराशन    पर    , इसी   डेकोराशन   से   आकर्षित   होके   तो   मेरे   पास   खूब   भीड़   रहती    है !और   तुम   हो   के   ……..!  चलो   अन्दर   चलो   ! मैं   तो   अन्दर    हैरान   रह   गया   मानो   सारी  दुनियां   ही   यहाँ   बस   गयी   है   ,   अरस्तो   ,  प्लूटो   ,  चार्ल्स   डिकंस    से    लेकर   हिन्दोस्तान   के   दुर्योधन   ,कर्ण   ,  भरत   ,  कैकेयी  , गाँधी  , देवदास   ,  लैला   ,  मजनूँ   ,  शीरीं   ,  फरहाद   ,   मुशर्रफ   ,  अन्ना   सब   वहां   मौजूद   थे   !  अब   सब   नाम   तो   नहीं   गिना   सकता   ना,  जो   मेन  मेन   नाम   थे   उदाहरण   के   लिए   ले   दिए   !  कुछ   तुम   भी   तो   अक्ल   दौड़ाओ  ,  सब   वहीँ   नज़र   आ   जायेंगे   !  खूब   बड़े   बड़े   कमरे   थे   ,  और   खूब   रौशनी   का   प्रबंध   था   !  पर   सब   एक   कोने   से   में   अलग   अलग   पड़े   हुए   थे   !  किसी   ने   कोई   रौशनी   नहीं   की   हुई   थी   !  आपस    में   बातचीत  भी   कोई   नहीं   कर   रहा   था   !  शराब   का   दौर   चल   रहा   था   इक्का   दुक्का   वहां   भी   खड़ा   हुआ   था   !  ग़ज़ल   से   भगवान  की   आरती   उतारी   जा   रही   थी   !  सब   मुंह    लटकाए   हुए   थे   ! भई , मैं   तो   दर   गया   !  मैं   तो   इतना   उदास   कभी   नहीं   हुआ  !  मेरी    ग़म से  दोस्ती   बहुत  थोड़ी    है   !  होंसला   तो   बहुत   बढ़   गया   पर   ग़म   का   असर   मुझ   पर   होने   लगा   !  मैंने   कहा   अच्छा   ग़म   भाई   मैं   चला   ,  चाए  भी  आज   शराब   सी   लगी !  धन्यवाद   !  फिर   आऊँगा   किसी   दिन  ,  ख़ुशी   के   घर   भी   जाना   पड़ेगा   ,  नहीं   तो   नाराज़   हो   जाएगी   !  ये   बोल   कर   मैं   भाग   खड़ा   हुआ   !  अच्छा   भाई   लोगो   आप   भी   मिल   आना   किसी   दिन   !  गुड   बाय   !!  

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