Monday, 17 October 2011

शामिल  हूँ  तेरे  शौक  में  ,  शौक  से  अपने  !  कोई  मजबूरी  नहीं  ,  जानते  हैं  ,  हालात  हम  अपने  !
बहकाते  हैं  लोग  तुम्हें  भटकाने  को  ,  रास  आते  नहीं  ज़माने  को  ,    अब ,  सब   शौक  ये   अपने  !!


आराम से बैठेंगे , तो कुछ कह लेंगे , कुछ सुन लेंगे !
सदियाँ गुजारी हैं राहगुज़र में , अकेले , तेरे इंतजार में !! 

था   अशेष  मेरा  परिचय  , शून्य  के  निकट  था  मैं  !
 मिला  कोई  ? दुश्मन  ही  था  , मेरा  अहं बढ़ा गया  !!
 फिर  दे  गया  नाम  मुझे  , शून्य  से  गिरा  गया  !! 

वहां  है  कोई  , चिलमन  में  छुपा  बैठा  है  !
देखता  है  यहाँ  का  सब  कुच्छ वो , वहां  का  दिखाता सिर्फ  पर्दा  !!
क्या  छूट  गया  , क्या  मिलने  वाला  , क्या  कोई  मायने  रखता  है  ?
 जो  हाथ  में  है  , उस  वक्त का  सदा  , सादर उपयोग  मैं  , करता  हूँ  !!
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जाने  दे  यार  को  , थोड़ा  बहक  जाने  दे  !
 उंचाईयां    छूएगा  पतंग  , तेरी  इस  ढील  से  !!
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मेरे  सपनों  में  भी   तुने  , सेंध  लगायी  , जितने   थे  सपने  अछे  , तू  ले  आई  !
 अब  मैं  डरता  हूँ  सोने  से  भी  , कैसी    निकली  हरजाई   , नींद  भी  चुरा  - आयी !!
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मैं  जानता  हूँ  , तू  खड़ा  कहीं  , कर  रहा  मेरा  इंतज़ार  !
तेरी  बेकरारी  से  मुझे  , हैं  मिल  रही  तसल्लियाँ  !!
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मैं  क्या  हूँ  , मैं  नहीं  जानता  , मेरा  अर्थ  मुझ को  बतादे  कोई  !
मुझे  घर  है  शाम  को  लौटना  , रब  ने  लेना  इम्तिहान  है  !!

जोबन   तेरा   कमाल   है   ,  मैं   करीब   आ   के   ,  ज़रा    देख    तो   लूं   !
नज़र   मेरी   घबराई   सी   है    ,  तुझे     छुपा   न   लें   ,  कहीं    बदलियाँ   !!
मेरे    नसीब    में  ,  पहरा    लिखा   ,  तेरा    करूं , या   के   चाँद     का   !
दोनों    को    है    ख़तरा    यहाँ   ,   कहीं    छुपा    न   लें    ये  बदलियाँ   !!
मैं   जवाब   दूं   ,  तो   किसको   दूं   ,  परेशान   हैं   नज़रें   मेरी   !
दोनों    हसीं  ,  कमाल     हैं     ,  कहीं    चुरा    न   लें   ये    बदलियाँ !!


मैं     घबराई     लर्जाई   भाग   आई   हूँ   ,  तेरा    पैगाम    लाये    थे   सपने   मेरे   !
मेरे   सपनो   को   मत    झुठलाना    तुम   ,  मैं    सवेरे   सवेरे   ,  भाग    आई   हूँ   !!
मेरे    सपने    अलग   से   परेशान    होंगे   ,  माँ   बाप    अलग    से    परेशान    हैं   !
मेरी    चुनरी   भी   घर   में   बिसर   गयी   रे   , मुझे    छाओं   में   ले ले   मेरे   मेहरबान  !!
तुझे     कसम    है     तेरी    ही   , सनम   मेरे   ,   मेरा   लौटना   है   मुश्किल    वहां   !
तेरा   पैगाम   लाये   थे   सपने   मेरे   ,  तेरा   विश्वास    करके   मैं    भाग   आई    हूँ   !!
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कानों  में     बजे   घंटियाँ   ,  आँखों    में   फिरें   बिजलियाँ   !
तेरी   आहटों   का   कमाल   है   ,  इस   अंधे   बहरों   के   शहर   में   !!
तू   न  - हो   तो  , जियेगा   कौन    इस   ,   खुदगर्जी    ,  के   माहौल   में   !
तेरा   आना    बयार   सा  ,  नई    ,  बस्तियां   बसाये  ,  अजीब   सी   !!


हो    करीब     ,  बहुत   करीब   ,  कोई   शख्श    यूं    खामोश   सा   !
सुने   जो   दिल    की    धड़कने    ,  और    दिल   में    अपने    उतार  ले   !!
खोजे    उनके    अर्थ    फिर   ,  गहरे    समुन्दरों   के   शोर    में     !
और    लाये    उनको    संभाल  फिर   ,   दिल    में    मेरे    उतार   दे    !!


मुझे  हैराँ  किया  तेरे  अंदाज़  ने  ,  क्या  खबर  थी ,  तू  भी  दुश्मनों  में   है  !
करता  रहा  तेरा   एतबार   ,  किया  शामिल  तुझे  , हर  कदम  हर  राज़   में  !!
तेरा  एहसान  क्या  मिटेगा  यार   ,   मेरी  मिट्टी  ने , तुझे   अब  पहचाना  है  !
अब  जब  भी  आना  ,  संभल  के  आना   ,  रंजिशें  हैं  ,  दिल  औ  दिमाग  में  !!

अपने  शहर  में  हूँ , फिर  भी   हूँ  अजनबी  ,  जितने  भी  दोस्त  थे  हासिल  हुए  ,  बने  अजनबी  !
आज  एक  से  मन  मुटाव  ,  कल  दुसरे  से  हुआ  ,  दूरियां   बढती  गयी  ,  मिलते  अब  न  कभी  !!


चलते  चलते  मस्तियों  में  घर  से  गुज़र  गया  ,  अब  घर  वाले  भी   हमें  अपना  ,  मानते  नहीं  !
साथ  जन्मे  ,  साथ  पढ़े  ,  खेले  साथ  साथ  ,  सदियों  पुराने  साथ  भी  ,   अब  बन  गए  अजनबी  !!


    


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