Monday, 31 October 2011

ए  शीतल  बयार  ले  चल  मुझे  ,  जहाँ  बस  रहा  हो  प्यार  ,  प्यार ,
रच  रहा  हो  प्यार  ,  प्यार  ,  जहाँ  सब  नज़ारे  हों  प्यार  ,  प्यार  !!
माँ  का  कोमल   स्पर्श  ,  कोमल    स्नेह  ,  आँचल  भी   कोमल  कोमल   हो  ,
शरद  में  जो  कोष्ण   हो  ,  और  ज्येष्ठ  मास  में  हिमल  हो  !!
बहना  हो  इक  स्नेह  का  ज्वार ,  इक  प्रेम  प्यार  , भाई  सदृढ़  चट्टान  हो ,
बाप  छाये  बादल  सा  सब  पर  ,  बरसे  तो  बस  प्यार  प्यार  !!
प्रेयसी  हो  बस  प्यार  में  लिपटी  ,  प्रीतम  भी  बस  प्यार  प्यार  ,
संगिनी  ,  संग ,  बन  जीवन  संध्या  तक  ,  शामिल  कर  लें  प्यार  प्यार !!
भाई  ,  बंधू  ,  तब  ,  मिल  के  नाचें  सब  ,  गायें  मृदुल  बस  प्यार  ,  प्यार  ,
ए  शीतल  बयार   ले  चल  मुझे  ,  जहाँ  बस  रहा  हो  प्यार  ,  प्यार  !! 
    
उम्र   मिली  बरसों   में   और  बरस  भी  थोड़े  से  ,  जबकि  काम  युगों  का  है  !
युगों  का  काम  बरस  में  कर  गए  ,  वो  भी  थोड़े  से  , वो  भी  हम  सब  के  जैसे  थे  !!



मुझे  थोड़ा शान्ति  से  मरने  दो  ! मत  दिलाओ  याद  मैंने  ,किसके  लिए  क्या  किया  , या  फिर  किसके  लिए  क्या  छोड़ा  ! ये  सब  तो  यूं  भी  छूटना  ही  है  ! सिरहाने  से  थोड़ा  हट  जाओ  , थोड़ी  हवा  आने  दो  ! मुझे  झूठी  तसल्ली  मत  दो  , अब  मैं  इन  सब  से  परे  हूँ  ! तुमने  जो  किया  अपने  लिए  , जो  कर  रहे  हो  अपने  लिए  ! ये  कौन  मुझे  हॉस्पिटल  ले  जाने  की  बात  कर  रहा  है  ? जब  ले  जाना  चाहिए  था  तब  किसी  के  पास  समय  नहीं  था  ,अब  लोक  लाज  का  दर  है  ! तुम्हारी  इच्छापूर्ति  के  लिए  नहीं  बिंधना  मुझे  ! चलो  अकेला  छोड़  दो  मुझे  , मुझे  मरने दो  , शान्ति  से  मरने  दो !!

Sunday, 30 October 2011

सुनो , शांत  हो  ,  मौन  हो , ध्यान  से  सुनो  ,
ये  सागर  की  भाषा  है  , एकाग्रचित  सुनो  ,
सुनो  एकांत  में  ,  सागर  क्या  समझाता ,
एक  ही  गूँज में  ,  शब्द  अगणित  झर आता ,
शब्दों  का  मेल  कर  ,  अर्थ  अपने  जानो ,
हर  एक  प्रश्न  के  उत्तर  कई  बतलाता  ,
छाँट  लो  जो  भी  ,  तुम्हें  जीवन  क्षण  चाहिए  ,
सागर  तो  सागर  है  मोक्ष  भी  दिलवाता ,
सुनो  ,  शांत  हो  ,  मौन  हो  ,  ध्यान  से  सुनो  ,
अपने  अंतर  की  भाषा  को  ,  मौन  हो   सुनो  !!



हमीं  को  हमीं  से  मिलादे  रे  भाई  , कई  दिनों  से  गुम चल  रहा  हूँ  !
दोस्त  भी  मेरे  कुछ  कम  मिल  रहे  हैं  , दुश्मन  भी  मेरे  कुछ  कम  हो  गए  हैं  !!

मुझे  खोज  लेना  कहीं  आसमान में  ,
या  समुंदर  में  गहरे  कहीं  डूब  गया  हूँ  !
या  गरीबों  की  बस्ती  में  खेलता  मिलूंगा  !
मिटटी  में  कीचड़ में  डोलता  मिलूगा  !
फिक्र  मुझे  सिर्फ  इतना  है  यारो  ,
धूल भरा  चेहरा  पहचानोगे  कैसे  ,
मुझे  मेरे  घर  तक  पहुँचाओगे  कैसे  ?..

किया  श्याम  से  स्नेह  ,  मिला  विछोह  का  प्रसाद ,
जाने  क्यों  गलियों  में  ,  राधा  मिल  गयी ,
मैं  भी  उसकी  बातों  में  अंधाधुंध   खो  गयी  ,
उसका  तो  ग्वाल  बाल  का  गेह  है  रहा  ,
मेरा  तो  नेह  स्नेह  सब  अनजान  था  ,
मैं  भी  अरे  उफनती  जमुना  में  डूब  गयी  ,
आस  पास  दुविधाओं संग  छोल  गयी  ,
ये  सब  रास  वास  छल  है  कन्हईया   का ,
मैं  क्यों   इस  खेल  में  खेल  खेल  गयी  ,
राधा  जब  रोएगी  भी ,  तो मनाएंगे  सब  ,
मेरा  तो  उपहास  होगा  ,  सखियाँ  सब  बोल  बोल  गई !!



काले  काले  जामुन  अरे  खा  ले रे  कन्हईया ,
तेरा  रंग  और  थोड़ा , निखर  निखर  जाएगा  ,
चारों  तरफ  मंडरायेंगी  थोड़ी   और  सखियाँ ,
थोड़ा   सा  रास  और , और  निखर  जायेगा ,
घेरा  बढ़ेगा  ,  वन  में  रास  और  चढ़ेगा  ,
चाँद  जैसे  ,झांके  ,  मैं  भी  झांक  जाऊंगा  ,
तेरे  रंग  का  कमाल  है  या  रूप  का  ख्याल  है  ,
मेरा  तो  जीवन   ही  गया ,  इन  व्यर्थ  के   सवालों  में ,
तू  मेरा  भी   थोड़ा  सा  साथ  अगर  दे  दे  ,
मेरा  भी  रास  रास  ,  महारास  रच  जाएगा  !!



वो  आम  की  अमराई  में  ,  मेरा  बचपन  जो  बीता  ,
वो  आज  भी  जिन्दा  है  यादों  की  परछाई  में  !
कौन  सी  थी  कक्षा  ,  और  कितने  बच्चे   थे ,
कौन  था  पढ़ता  और  कौन  था  पढाता !
मौन  से  ये  प्रश्न  हैं  ,  और  मौन  ही  उत्तर ,
कहाँ  गए  संगी  साथी  ,  कहाँ  गये  वो  टीचर !
ये  जानो  या  न  जानो  ,  तो  भी  एक  बचपन  बाकी  है ,
आम  को  जो   मारा  था ,  पत्थर  एक  काफी  है  !
आम  झड़े   चार  पाँच  ,  सर  फूटा  एक  का  ,
डंडे  झड़े   आठ  दस  ,  स्कूल  छूटा  एक  का  !
जीवन  गया  रीत  एक , आम  के  चक्कर  में ,
याद  आया  ये   क्यों  सब  ,  अरे  आम  के  चक्कर  में  !
वो  आम  की  अमराई  में  ,  बचपन  जो  मेरा  बीता  ,
वो  आज  भी  जिन्दा  है  ,  यादों  की  परछाई  में  !!
मुझे  मेरे मायने समझा  गया  कोई  ,  हल्के  से  इशारा  भर  कर  गया  कोई  !
मैं  तो  कहीं  दूर  खोया  था  सपनों में ,हक़ीकत को  हक़ीकत  से  मिला  गया  कोई !!

मेरा  जाना  उनको  भा  गया  ,  औपचारिकता   से  बंधे  हुए  थे ,
आओ  बैठो  तो  कहना  पड़ा  था  , घंटा  भर  तो  सुनना पड़ा  था !
इलाके  का  नेता  था  मैं  ,  अदब  तो  समझो  दिखाना  पड़ा  था  ,
आखिर  एक  एहसान  था  उनपर  ,  वोट  का  क़र्ज़  था  चुकाना पड़ा  था  !
पर  आखिर  ये  ज़ाहिर  क्योंकर  हुआ  ?  अलविदा  का  उत्तर  जो  देना  पड़ा  था !!


जाओ    जी   जाओ   तरसाते  क्यों   हो  ,
मना   करके   फिर   बुलाते   क्यों   हो   !!
घूरते   हो  ,  माथे   पे   बल   डाले  ,
टेढ़ी   आंख   से   ,  डराते  क्यों   हो   !!
मैंने   तो   बस   यूँ   ही   दिल्लगी   की   थी   ,
अकड़ते   इतना   हो   तो   ,  घबराते   क्यों   हो  !!
मुझे   भी   तो   थोड़ा   सा   हक़  दे दो    ,
जानते   तो   हो   ,  शर्माते   क्यों   हो   !!
ग़म  के  साथ  ग़म  के  घर  एक  शाम
कल   अचानक   किसी   ने   मेरे   कंधे   पर   हाथ   रख   दिया   तो   मैं   चौंक   गया   ! पीछे  मुड़  के   देखा   तो   ग़म  था   ! बोला   यार   बड़े   दिन   से   मिले   नहीं   ,  कहाँ   चले गये   थे   !  ढूंढता   मर   गया   मैं   ,  मैंने   सोचा   जय  को   तो  फुर्सत   नहीं   मैं   ही   मिल   लेता   हूँ   !  मैं   बोला  “ यार   डरा   दिया   तुने   तो   , चलो   कहीं    बैठते   हैं   “! ग़म   ने   कहा   नहीं   यार   ,  चल   मेरे   घर   चल   ,  आ   मैं   तुझे   अपना   घर   दिखाता   हूँ   ,  चाय  भी   वहीँ   पियेंगे   !  मैंने   कहा   चलो   !
जब   वहां   पहुंचे   तो   मैंने   देखा   ख़ुशी   का   घर   भी   वहीँ   था   !  मैंने   पूछा   ये   क्या   ?  बोला  ,  यार   जुड़वां   बहन   है   मैंने   साथ   ही   उसका   घर   भी   बना   दिया   !  जिसकी   मर्ज़ी   जहाँ   चला   जाए   !ग़म   का   घर   बहुत  उदास   शक्ल   का   था   !  लम्बी   लम्बी   दाढ़ी   जैसी   देकोरातिओं   की   हुई   थी   !  आँखें   भी   मकान  की   खाली   खाली   सी   थीं   !  मुंह   लटका   हुआ   था   !  मैंने   पूछा   ये   क्या   हाल   बना   रक्खा   है   मकान   का   ,  कुछ   सजाते   बवाते   क्यों   नहीं   !
वो   हैरानी   से   मेरा   मुंह   देखने   लगा   !  बोला   यार   अरबों   रुपया   लगाया   है   डेकोराशन    पर    , इसी   डेकोराशन   से   आकर्षित   होके   तो   मेरे   पास   खूब   भीड़   रहती    है !और   तुम   हो   के   ……..!  चलो   अन्दर   चलो   ! मैं   तो   अन्दर    हैरान   रह   गया   मानो   सारी  दुनियां   ही   यहाँ   बस   गयी   है   ,   अरस्तो   ,  प्लूटो   ,  चार्ल्स   डिकंस    से    लेकर   हिन्दोस्तान   के   दुर्योधन   ,कर्ण   ,  भरत   ,  कैकेयी  , गाँधी  , देवदास   ,  लैला   ,  मजनूँ   ,  शीरीं   ,  फरहाद   ,   मुशर्रफ   ,  अन्ना   सब   वहां   मौजूद   थे   !  अब   सब   नाम   तो   नहीं   गिना   सकता   ना,  जो   मेन  मेन   नाम   थे   उदाहरण   के   लिए   ले   दिए   !  कुछ   तुम   भी   तो   अक्ल   दौड़ाओ  ,  सब   वहीँ   नज़र   आ   जायेंगे   !  खूब   बड़े   बड़े   कमरे   थे   ,  और   खूब   रौशनी   का   प्रबंध   था   !  पर   सब   एक   कोने   से   में   अलग   अलग   पड़े   हुए   थे   !  किसी   ने   कोई   रौशनी   नहीं   की   हुई   थी   !  आपस    में   बातचीत  भी   कोई   नहीं   कर   रहा   था   !  शराब   का   दौर   चल   रहा   था   इक्का   दुक्का   वहां   भी   खड़ा   हुआ   था   !  ग़ज़ल   से   भगवान  की   आरती   उतारी   जा   रही   थी   !  सब   मुंह    लटकाए   हुए   थे   ! भई , मैं   तो   दर   गया   !  मैं   तो   इतना   उदास   कभी   नहीं   हुआ  !  मेरी    ग़म से  दोस्ती   बहुत  थोड़ी    है   !  होंसला   तो   बहुत   बढ़   गया   पर   ग़म   का   असर   मुझ   पर   होने   लगा   !  मैंने   कहा   अच्छा   ग़म   भाई   मैं   चला   ,  चाए  भी  आज   शराब   सी   लगी !  धन्यवाद   !  फिर   आऊँगा   किसी   दिन  ,  ख़ुशी   के   घर   भी   जाना   पड़ेगा   ,  नहीं   तो   नाराज़   हो   जाएगी   !  ये   बोल   कर   मैं   भाग   खड़ा   हुआ   !  अच्छा   भाई   लोगो   आप   भी   मिल   आना   किसी   दिन   !  गुड   बाय   !!  

Saturday, 29 October 2011

समझे  तो  हैं  हम  ज़माने  की  चाल  ,  पर  उलटी   समझे  हैं  , 
बोले  कोई  जाओ  उत्तर , दक्षिण  हम  खुद  समझते  हैं  !!

ज़माने  के  रंग  मालूम  हैं ,  इक  रंग  मेरा  भी  देख  ,
शामिल  तो  कर  अपनी  मायूसी  में , उम्र  भर  हंसाता  हूँ  मैं !!

चंद  ख्वाबों  को  मेरे  हवाले  कर  ,  रंग  उनमें  भर  दूंगा  ,
फीका  फीका ,  है इन्द्रधनुष  तेरा  , सतरंगी  बनाता  हूँ  मैं  !!

शाम  से  फैला  रहा  हूँ  रंग  अपने  ,  सूरज  को  थोड़ा  ढलने  दे  ,
कूची  मेरी  ज़रा  सी  है   बेताब  ,  रंग  गहरा  और  गहरा  होने  दे  !!

मेरा  एतबार थोड़ा  करना  सीख  ,हूँ  नहीं  मैं कोई  धोखेबाज़ ,
रंग  सारे  जहाँ  के  भरता   हूँ , भर  भर  के  हल्का  जी करने  दे  !! 

मैं  निकला  हूँ  , मौज  मस्ती  में  , है  कोई  छींकने  वाला  , किनारे  हो  जाए  !!


गिरगिटों  को  तो  रंग  बदलना  है  , है  शुमार  उनकी  ये  आदत  में  !
तू  है  शिकार  , शिकार  होना  है  , तेरी  आदत  तो  बच  निकलना  है  !!

चाँद  रात  है  , शादी  शबनम  की  , गाये सुहाग  झींगुर  है  !
बजाये  शहनाई  कोयल  रे  , तान  भैरव  की  आज  छेड़ी है  !!

आये  तो  हो  ज़नाज़े  में  , इतना  करम  कर  देना  ! जिस  में  मेरा  डेरा  था  , उस  गली  का  भरम  रख  लेना  !

रौनक  तो  मेरे  जनाज़े  में  थी  ,शामिल  हर  शख्श  था  रंगीन  ! हर  हाथ  में  जाम  छलकता  था  , और  झूला  मेरा  झूलता  था  !!

जिंदगी  आसां तो  नहीं  , और  इतनी  मुश्किल  भी  नहीं  !
सुकून  से  , हिम्मत  से  , बनालो  इसे  अपनी  !!

तेरी  हिम्मत  की  दाद  देता  हूँ  , चढ़ते  हिमाला  हो  , रुख  है  समुंदर  का  !!

ख्वाहिशें  ज़रा  कम  रखना  , जिंदगी  इक  बुलबुला  है  !
मरता  समंदर  है  , मरता  सूरज  भी  !
जिंदगी  सब  की  है , और  सबकी  जिंदगी  है  !!

ठहरा  ठहरा  दर्द  का  समंदर  है  , चाँद  निकलेगा  , ज्वार  आयेगा  !
फिर  सुबह  होगी  उतरेगा  खुमार  , कौन  कहता  है  , दर्द  ठहर  जायेगा  !!

Friday, 28 October 2011


ज़ालिम   तेरा  नूर  , पहुंचा  है  इतनी  दूर  ! के  ज़ेहन  मेरा  शाम  से  , सोने  न  दे  रहा  !!
ले  जायें  इतना  दूर  मुझे  , तन्हाईयाँ  मेरी  ! साया  भी  उम्र  भर  मुझे  ढूँढता  रहे  !!

चलते  चलते  मैं  तेरे  , सपनों  में  आ  गया  ! देखा  खुद  को  , पहले  से  वहां  , तो  घबरा  गया  !!

तुम्हें  तलाशता  रहा  , नज़रों  में  मैं  तेरी  ! दिल  से  आयी खबर  के  , में यहाँ  पे  हूँ  !!

जाऊं तुझे  छोड़  के  रहबर  मेरे  कहाँ  ,  है  कौन  सख्श  ऐसा  जो  ,  मुझको   पनाह  में  ले !
देखा  है  मैंने  दर ,   ग़ैर  का  , ग़ैर  ही  हैं  सब   ,  सूरत  में  ऐसी  यार मुझे ,  दामन  में   कौन  ले  !!

जिए  जाओ  , जिए  जाओ  और  तरसाओ  ग़म  को  मेरे  ! पता  तो  चले  शैतान  को , की  , हौसला  बुलंद  है !!

कितनी  रंगीन  कहानी  है  , दोस्ती  की  मेरी  ! खूँ  से  लिखी  इबारत  को  , खूँ  से  मिटा  दिया  !!

शायद  रंज़ दिल  का  बातों में  घुल  गया  !कड़वी लगी  शराब  न  , और  सर  सारा  घूम  गया  !!

इतनी  गर्म तासीर  थी  ,रूह  की  तेरी  , प्याला  भी  पिघला  शोक  से  , और  मैं  भी  पिघल  गया  !

ज़माना  पछता  रहा  मुझे  परस  थमाकर , अब  हर  शै  को  सोना  बनाता हूँ  मैं  !!

नज़र  लग  गयी  मुझे  ज़माने  की  , तितलियों  को  उड़ना  सिखा  रहा  हूँ  मैं  !!

तेरी  शाम  बन  गयी  ,  मेरी  शाम  बन  गयी  ,  बख्शा  कुछ  इस  तरह खुदा  ने , कहानी  बन  गयी !
शायद  ये  पहली  बार  है  ,  चलन  ज़माने  का  बदल  गया  ,  बख्सी गयी  कहानी  भी , कहानी  बन गयी  !!

इस  सोच  से  कि  शायद , मेरा  साया  भी  साथ  ना  दे  ,
क्या  कोई  इन्सान  अकेला  निकलना  छोड़  दे  ?
जब  आंख  मेरी  खुली  थी , तब  कौन  साथ  था  ?  
झाड़ी  में  गुदड़ी  में , लिपटा  था  तनहा ,  बताते सब  मुझे !!
पहरा  दे  रहा  था  एक  कुत्ता  शाम  से  , बदनामी  के  डर  से  ,
आई  न  माँ  ,  न   बाप  ,दुरुस्ती  को  जांचने !
जिसने  बचाया  ठण्ड  और  मौत  से  मुझे  ,  क्या  साथ  नहीं  ? 
फिर  क्यों  मालिक  को  कोई  समझना  छोड़  दे  !! 

धीरे   से   ,  ज़रा  धीरे   से   , आना   मेरी   यादों   में   तुम   !
कुछ   सपने   सुलाए   हैं   ,  थपक  थपक   ,  लोरी   दे   दे   !!
जग   जायेंगे   तो   होगी   परेशानी   ,
रोयेंगे   वो  ,  बिन   दूध   औ   पानी   !!
अधनींद   से   जगना  , दुलरेगा  नहीं  ,
बिटरेंगे   बहुत   जब  , माँ    न   मिलेगी   !!
देखो , ज़रा   धीरे   से  ,  ठोकर   न   लगे  ,
किनारे   से   आना   , दीवार   को   पकड़े  !!
अभी   तो   बस   ,  मिल   जाए   दो   वक्त   का   खाना  ,
तकलीफ   में   जीवन   है   , आस   को   पकड़े   !!
धीरे   से   ज़रा   धीरे   से   , आना  मेरी   यादों   में   तुम  !
कुछ   सपने   सुलाए   हैं   ,  थपक   थपक   ,  लोरी   दे   दे   !!

सब  झूठ  नहीं  , दीवारों  को  तकना , ख़ाली आँखों  से  !
सब  पागल  हैं  , ऐसा  लगना  , सब  सच  है  कुछ  झूठ  नहीं  !!
क्या  महसूस  हुआ  ? कब  सोचा  सब  ?
साल  सोहलवाँ लगा  था  तब  !!
  

Tuesday, 25 October 2011

स्वयं  में  स्थित  हो  कर , हो  कर  ध्यानस्थ ,  करता  है  जयनारायण  कश्यप  , भगवद आवाहन  !
स्वयं  प्रगट  हो  ,  गणेश  ,लक्ष्मी ,  विष्णु  ,  ब्रह्मा  ,  महेश  , संग  सरस्वती  ,  दुर्गा  ,  कालिका  ,
पूर्ण  प्रकृति  ,  सब  दिशाएँ  ,  इन्द्र ,  अग्नि  ,  वायु  ,  जल  ,  पृथ्वी  ,  आकाश ,   वाहन सहित  !
हनुमंत   पताका   हों  स्थित  ,  ज्ञात  ,  अज्ञात  सभी  देवताओं  सहित  ,  दें  स्नेहाशीर्वाद  समस्त  जन  को ,
सम्पूरण करें  स्वमेव  की  शक्तियों  से  स्वमेव  की  तरह  ,  रहे  न  अपूर्णता  कोई  हे  परमात्मन !!



मेरी    जिंदगी   में   तू   है  , सिर्फ   तू   , बहुत   है   जिंदगी  !
मेरी   चाहतें   भी   तू   है   ,  राहतें   भी   तू   ,  है   न  जिंदगी   ?
मेरे   सपने  , मेरे   वादे , मेरी   कसमें  ,  मेरी   यादें   ,
सबमें   है   शामिल   तू   ,  तुझमें   हूँ   मैं   ,  मेरी   जिंदगी  !!
मेरा   काम   भी   तू   ,  आराम   भी   तू   , नज़र   भी   तू   ,
और   नज़राना   भी   तू   ,  तो   कहाँ   हूँ   मैं   ,  यार   ज़िन्दगी   !!
मेरी   जिंदगी   में   तू   है   ,  सिर्फ   तू   ,  बहुत   है   जिंदगी   !........................





वो   पूछते   हैं   मुझसे    ,  कहीं   झूठ   तो   नहीं   ?

मेरा    सपना  , मेरा   वादा   ,   ये   रातों   में   जगना  ,
डरना   हर   आहट  पे   , चौंक   के   सहम   जाना   ,
वो   फोन   की   घंटी   ,  वो   मिस   कॉल  ,  क्यों   सुनता   है   कोई  ,
मेरे   सोनल   सपनों  में   ,  क्यों   गूंजता   है   कोई  ,
झूठी   वो   ट्यूशन   ,  झूठा   किताबों   का   बोझ  ,
फिर   रिजल्ट   का   आना   ,  होना   फेल  ,  फेल  ,  फेल    ,  फेल   ,
बिसरना  फिर  , मेरा ,  मैरिट   में   आना   ,  लगना  ,
दांव   पर   जिंदगी   ,  उड़   जाना   अपनों   की   नींद   ,
मुझे   सब   याद   है   ,  वो   तड़प   और   अवसाद   ,  और
वो    पूछते   हैं    मुझसे   ,   कहीं    झूठ   तो   नहीं   ?

  

Friday, 21 October 2011


तेरी   गलियों   में   आ   ही   गया   ,  तो   ये   बेकद्री   क्यों   !
हैं   मेरे   भी   कुछ   अरमान   ,  जीने   के   लिए   !!
न   कर   कोई   दुआ   औ   सलाम   ,  मैं   जी   लूँगा   !
यूं   नफरत   से   न   देख   , किये    गुनाहों   के   लिए   !!
कोई   मुआफी   भी   तो   होगी   ,  चंद  शरमशारों   को   !
रब   ने   भी   तो   बख्शे   हैं   ,  गुनाह   प्यारों   के  लिए   !!
इक   नज़र   भर   देख   ले   ,  दिल   से   न   सही   ,  रखलो   मन   !
सौ   जन्म   किया   समझ  , कुर्बान   ,  तेरे   इक   इशारे   के   लिए !!





शाम   को   रंग   है   मयखाने   में   ,

जाने   दे   मुझको   चला   जाने   दे   !!
दो   घूँट   दर्द   के   पी   लूँगा   ,
दर्द   सारे   जहाँ   के   हरे    होने   दे   !!
मय  में   भी   घोल   आंसू   दो   चार   ,
नशा   सारे   जहाँ   का   मुझे   होने   दे   !!
नशा   साए   को   भी   थोडा   हो   जाए   ,
झूमने   को   रस्ते   में   ,  साथी   होने   दे   !!
निगाहों   से   तो   पीता   हूँ   हर   रोज़   ,
आज   आँखों   को   भी   रंग   का   असर   होने   दे   !!
शाम   को   रंग   है   मयखाने   में   ,
जाने   दे   मुझको   चला    जाने   दे   !!







फिक्र   क्यों   करता   है   साँसों   को   अलग   करदे   मेरी  ,

यूं   भी   तो   जान   भी   अलग ,  मैं   भी   अलग   होते   हैं   !!
शाम   तो   रंगीन   ,  खुदाया   , होगी   पर    तेरी   होगी  ,
मेरा   तो   साया   भी   अलग   ,  मैं   भी   अलग   होते   हैं  !!
रात   का   पहरा   है ,  शामो -  सहर   ,  मेरी   सोचों   पर  ,
मेरा    तो   दिल    भी   अलग   ,  दिमाग   भी   अलग    होते   हैं   !!
जिंदगी   तो   जीता   हूँ   पर   ,  सब्र   को   मैं   जीता   हूँ   ,
मेरी   तो   जैसे   हर    सांस   अलग   ,   सांस   अलग   होते    हैं   !! 






जब्र   का   रस्ता   नहीं   ठीक   ,  थोड़ा   संभलो   ज़रा ,

अभी   तो   शहनाई   भी   बजनी   है   ,  सुबह   होने   दो   !!
दोनों   बैठेंगे   तो   समझेंगे   ,  ज़िन्दगी   क्या   है   ,
अभी   तू   अपनी    जगह    सही   ,  उसको    अपनी    जगह   होने   दो   !!
ज़िन्दगी    खेल   नहीं   है   के  ,  दुबारा    औ   तिबारा   होगा  ,
इक   बार   ही   सही   खेलो   और    खेल   को   थोड़ा   जमने   दो    !!





दिल   का   हाल   जो   सुनना   है   तो  ,  अंसुवन   का   दिया   जलाओ   रे  !

बाती  रख   लो   मन   की   और   ,  सुधियन  को   तुम   बिसराओ   रे   !!
दिल   डाल  डाल   ,  मन   पात   पात   ,  दो   घूँट   खून   पिलाओ   रे  !
अंखियन   से   मिलने   दो   आंखें   ,  धतूरा   मुझे   पिलाओ   रे  !!
दो   बातें   होंगी   चाँद   से   पहले   ,  चाँद   छुपे   , तब   जाओ   रे  !
दिल   की   बातें   दो   तुम   छेरो   ,  फिर   दिल वाणी   मुझसे   लिखवाओ   रे !!
दिल   का   हाल   जो   सुनना   है    तो   ,  अंसुवन   का   दिया   जलाओ   रे   !!





मैं  जाने  अनजाने  चला  आया  अपने  गाँव!
सालों  साल  जिसमें   धरता  नहीं  था  मैं  पावं  !
गाँव   है  अब  शहर  से  ऊंचा  ,  खेत  में  उगे  उद्योग !
बैल  घूमे  सड़कों  पर  ,बैठने  को  न  कोई   छाओं !!
करोंदे  बेर  खाए  न  कोई  ,  जलते  जगनू  घुमाये  न  कोई  !
मोबाइल  सबके  लगे  कान  से  ,  न  कोई  करता  आओ  आओ  !!
ना  कोई  लड़ता  अखाड़े  में  कुश्ती  ,  कबड्डी !
न  लड़ते  अब  पेंच  पतंग ,  हर  कोई  करते  हेल्लो ,  हाओ  !!
अब  लगता  है  गलती  कर  ली  ,  किसी  ने  गाँव  की  खुशबू  हर  ली  !
मैं  जाने  अनजाने  क्यों  चला  आया  अपने  गाँव  !!



हाट  लगी  भई  हाट  लगी  ,  गाँव  के  बीच  में  खाट  लगी  !
खाट  के  ऊपर   सामान  पड़ा  है  ,  हर  सामान  पे  भाव  जड़ा  है  !!
लाख  रूपए  की  सुबह  है  यारो  ,  लाख  रूपए  की  शाम  खड़ी !
लाख  रूपए  है   रात   की  कीमत  ,  मुफ्त  में  साथ  में  सपना  पड़ा  है  !!
दस  लाख  में  किडनी  मिलेगा  ,  दस  लाख  में  लीवर  !
बीस  लाख  में  हार्ट  मिलेगा  ,  चालीस  लाख  में  दिमाग  पड़ा  है  !!
इज्जत  बिके  बीस  बीस  में  ,  झूठ  मिलेगा  तीस  तीस  में !
मनोरंजन  कर  की  छूट  साथ  में  ,  रूपए  रूपए  में  इमान  पड़ा  है  !!
हाट  लगी  भई  हाट  लगी  ,  गाँव  के  बीच  में  खाट  लगी  !........................


ज़िन्दगी के महाभारत में जब भी मैंने , कुरुक्षेत्र में खुद को खड़ा पाया !
दोस्तों को दुश्मनों के , और दुश्मनों को दोस्तों के साए में , खड़ा पाया !!
मेरी शक्तियां भी अर्जुन के भावावेश में थीं , स्वयं को असमर्थित पड़ा पाया !
युद्ध में , साथ था मेरे तो सिर्फ आत्म , कृष्ण रूप में जिसे मैंने खड़ा पाया !!



क़द्र करता हूँ मैं तुम्हारी गलतियों की , यूं तो सराहेंगे , कामयाबी पे तुम्हें बहुत लोग !!
कामयाबी तो हमें भी है पसंद , लेकिन , न करते कोई गलती , तो होते क्या , बुलंदी पे वो लोग !!
नारे लगाना तो आसां है बहुत , दुनिया में , खेना कश्तियाँ तूफानों में , जानते हैं बहुत कम लोग !!


उब  गया  हूँ  प्यार  और  मनुहार  से  ,  आओ   थोड़ी  देर  लड़ें  कुछ  जोर  से  !
पास  पड़ोसी   भी  जानें  कोई  रहता  यहाँ  ,  वर्ना  लगता  है   के  मुर्दा   हो  गए  हैं  !!


यारो   मेरा  भी  कहीं  कोई  बुत  लगाओ  ,  टूटना  चाहता  हूँ  किसी  क्रांति  के  बाद  !
चाहता  हूँ  कोई  बीठे ,  ऊपर  मेरे  भी ,  गल्तियाँ  मैंने  भी  की  है जन्मने  के  बाद !!


शायद  किसी  क्रांति  का  कारण  बनूँगा  मैं  ,  सोचता  हूँ  जब  भी  उल्टा  सोचता  हूँ  !!



सर  भी  मेरा  ,  धड  भी  मेरा  ,  हाथों  में  छतरी  भी  ,  मेरी  है  !
फिर  क्यों  न  बारिशों  का  मज़ा  ले लें , न  मेरी  थीं ,  न  मेरी  हैं  ,  न  मेरी  ही  रहेंगी  !!


जहाँ  रहना  मैं  चाहूं  ,  न  रहने  देंगी  ये  इच्छाएं  मेरी  ,
बराबर  दौडती   हैं  ,  मेरे  संग  जीने  के  लिए  , मरने  के  लिए  !!

मेरा   आराम  तुझको  भा  गया  है , अच्छा  लगा  !
वर्ना  काम  तो  अभी  भी  मुझे  करने  बहुत  हैं  !!

मेरा  मुस्कुराना  ना   तुझे  रास  आया  ,  दीवाली  मुबारिक  पे  गुस्सा  बड़ा  आया  !
मैंने  भेजी  फुलझरियां  ,  और  भेजे  कुछ  अनार  ,  तूने  फोड़ा  बम  तो  मज़ा  बड़ा  आया  !!


बन  बन  के  बिगड़ना  और  बिगड़   के  फिर  बनना , 
ये  मौज  मेरी  मिटटी  में  पहले  ही  से  शामिल  है  !
अब  रब  को  बिगाडूं    और   फिर  दोबारा   से  बनाऊं  , 
जो  सब  को  लगे  प्यारा  ,  इस  कोशिश  में  आमिल  हूँ  !!


वो  फिर  मेरी  मौज  के  आड़े  नहीं  आये  ,  ऐसा  कुछ  करने  का  ख्याल  तो  अच्छा  है  !
पर  वो  भी  तो  शातिर  है  ,  आएगा  आड़े ,  पर  सोचने  समझने  को  ख्याल  तो  अच्छा  है  !!


चांदी  के  चम्मच  से  पियूंगा   शबनम  को  ,  गुलाब  की  पंखुड़ी  का  रंग  घोल  घोल  !
मेरी  आँख  की  किरकिरी  है  , मेरी  रूह  को  तरसाती  है  ,  सुबह  सुबह  ,  रोज़  रोज़  !!



ओ  माँ  !  मैं  जानता  हूँ  तू  तारा  है  आसमान  का  ,  साथ  पिताजी  खड़े   हैं  तारा  जुड़वां  !
सब  दिखता  है  यहाँ  से  ,  आस  पास  किसी के  माँ  बाबूजी  ,  भाई  बहन  , नाना  नानी  ,  दादा  दादी  ,  सब  हैं  !
सब  बहुत  सुंदर  तारे  बने  हैं ,  खूब  चकाचौंध  हो  रही  है  !
सबको , आसमान  और  जमीं के  सब  तारों को  दिवाली   बहुत बहुत   मुबारक  हो  !
माँ  इस  दिवाली  पे  जितने  दिए  जलें  ,  और  जितने  दिल  जलें  सबको  खूब  रौशनी  देना  !
इतनी  रोशनी  देना  कि  अगर  पड़ोस  में  किसी  के  घर  में  या  दिल  में  अँधेरा  हो  तो  वो  भी  जगमगा  जाये  !
कोई  भूखा  न  रहे  ,  कोई  उदास  न  रहे  ,  सबके  घर  लहलहा  जायें  ,  पर  देखना  माँ  कोई  घर  न  जले  !
अच्छा  माँ  जब  भी  कोई  जरूरत  होती  है  तुम्हें  आवाज़  लगा  देता  हूँ  ,  देखना  माँ  अपना  और  सबका  ख्याल  रखना  !!



आज  मन  उदास  है  , टूटी  फिर  विपदा  अचानक  ,
हुआ  काल  प्रगट  , सिंह  सा  , लील  गया  , जीवन  उनका  ,
 जो  चर रहे  थे  हिरन  की  तरह , खतरे  से  परे  ,निश्चिन्त  खड़े  थे  !
अचानक  समय  सिमट  गया  ,जीवन  क्षण  में  निपट  गया  !
 अब  हो  रही  गिनती  कितने  मरे  , कितने  घायल  ,
 कितने  थे  बस  में  चढ़े  , क्या  बस  में  थी  खराबी  ?
  सब  प्रश्न  निरर्थक  , हर  बार  हादसे  के  बाद  के  प्रश्न  पत्र  ,
 जिन्हें  कोई  हल  नहीं  करता  , और  जिनका  कभी  परिणाम  नहीं  निकलता  .
 और  काल  फिर  अपनी  गति  से  चलने  लगा  जैसे  कुछ  हुआ  न  हो  . पर  मैं  उदास  हूँ  .











Thursday, 20 October 2011

अजीब  शक्ल  लेके   मैं  ,  निकला  था  घर  से  आज  ,  लोगों के  सब  तानों  ने  , अब  रख  दी  सुधार  के  !
हो  जाती   है  आदमी  को  बहुत  सी ,  खुशफहमियां  , चाहिए  करीब  आयना  , जो   शक्ल  रक्खे  संवार  के !!


मैं  जानता  हूँ  सबको  ,  खुद को  जानता  नहीं  ,  मेरा  घर  करीब  है  ,  पर  गुमशुदा  हूँ  मैं  !


नज़र  से  तेरी  मैं  बच  भी  गया  ,  तो  खुद  से  बचाएगा  कौन  !
रिश्वत    भी   दूंगा  खुद  को  तो  ,  सरेआम ,  जिंदा   मरूंगा  मैं !!


अच्छा  हुआ  टूटा  वो  धागा  , थी  जो  आस  की  डोर   !
 वो  देखें  अपना  करम  ,और  मैं  अपने  वतन  की  ओर !!



अँधेरा  छुपा  है  हर  कोने  में  , कब  मारे  झपट्टा  क्या   मालूम  ?
राम  बने  कब  किसमें  रावण  , किसको  पता  और  क्या  मालूम  ?

कोलाहल  ही  कोलाहल  है  ,  कोलाहल  का  अल्कोहल  है  !
सड़कों  पर  है  कोलाहल  ,  ड्राईवर  पिए   अल्कोहल  है  !!
पार्लियामेंट  में  कोलाहल  है  ,  राजनीति  का अल्कोहल  है !
कॉलेज  में  कोलाहल  है  ,  प्यार  पढाई  का  अल्कोहल  है !!
घर   में  टी वी  का  कोलाहल  है  ,  सोप ओपेरा  का  अल्कोहल  है  !
घर  में   बी वी  का  कोलाहल  है  ,  घरवाले  का  अल्कोहल  है !!
काले  तेल  का  कोलाहल  है  ,  गद्दाफी  सद्दाम  का  अल्कोहल  है  !
इस  सारे  कोलाहल  का  क्या  हल  है  ,  अल्कोहल   जी  अल्कोहल  है  !!
    







Tuesday, 18 October 2011

ENJOY WATER ARTIFICIAL FALL


GARBH JOON ( TAMSO MAA JYOTIRGAMAY )

TAMSO  MAA  JYOTIRGAMAY  EXPRIENCE  TUNNEL   JOURNEY  .

MAN TUJHE SALAAM


माँ   तुझे   सलाम

माँ   मैं   कैसे   तेरी   कृपा   से   उरिण  हूँगा   !     मुझे   खुद   नहीं   पता   !  शायद    दुबारा   श्रृष्टि   होने   तक   नहीं   !    और    मैं   जानता   हूँ   ,  मुझे   दुनिया    मैं   लाने   के   लिए    ,   तुमने   क्या   क्या   नहीं   सहा   है   !  अभी   मेरी    नींव    भी   नहीं   राखी   गयी   थी   की   तैने  मेरे   स्वागत   की   तैयारियां   कर   लीं  !  मैंने   अंडाशय    से    चलना   शुरू   ही   किया   था   कि  ,  तुमने   मेरा   बिछोना   तैयार   कर   लिया   !  और   जैसे   ही   मेरा   निषेचन   हुआ   ,  तूने   मुझे    आधार   दिया   !  तूने    मुझे    मखमली    चादर   में   लपेट   लिया   !  आधार   मिलते   ही   जैसे   मेरे   पंख   लग   गए   !  मैं   एक   कोशिका   से   दो   ,  फिर   चार   ,  फिर   आठ   कोशिका    वाला    हो   गया  !   मेरा   भोजन   पानी   तेरे   शारीर   से    आना   शुरू  हो  गया   !  धीरे  धीरे   मेरा    आकार   बढ़ता    गया    और   तेरी   मेहरबानिया   बढती   गयी    !  तूने   अब   मुझे   गर्भनाल   से   जोर   दिया     !  क्योंकि   मेरी   आवश्यकताएं   बढ़   गयी   थीं   ,  इसलिए   मेरी    भोजन    व्यवस्था    खून    से    होने   लगी   !  मेरे   बढ़ने   के   चलते   मेरे   शरीर   से   जो   विष   उत्सर्जन   होता  ,  उसे   बाहर  निकलने   का   जिम्मा   भी  ,  तूने   ही   ले   लिया   .  तू   अपने   शरीर   में   ले   जाके    मेरे उत्सर्जित   विषों   को    ,   बाहर   निकाल   के   दोबारा   उसमे   भोजन    डाल  के  , लगातार    मेरा   पोषण   करती   गयी   !  धीरे    धीरे   मेरा   रूप   निखरने  लगा   ,  मेरे   अंग   प्रतत्यंग  पहचान   में   आने   लगे   !   तेरा    भी   आकार   परिवर्तन    होने   लगा   !  लोगों   की  नज़रें    तुम्हारे   पेट   तक   चली   आतीं   !  तू   घबराई   नहीं   !  तैने   हर   हाल  में   मेरा    संरक्षण    किया   !  खुद   बीमार   भी   पड़ी   तो    औषधियों   से   परहेज़   किया   ताकि    मुझे   कोई   हानि      पहुंचे   ! स्वास्थ्य  सेवा   विभाग   से   संपर्क   किया   और   जो   भी   सलाह   मिली   उसका   मेरी   भलाई   में   उपयोग   किया   !  मेरी   भलाई   के   लिए   हजारों   किसम   के   परहेज़   किये   !  अब   मेरे   हाथ   पैर   भी    चलने   शुरू    हो   गए   थे   !  मैं   लात   घूंसे   चलता   तो   तू   बजाये   बिगरने  के   खुश   होती   !  अभी   मेरे   पैदा   होने   में   समय   था    ,   पर   मेरे   लिए   जन्म  के   बाद   के   लिए   ,  दूध   की   व्यवस्था    पहले   से   करनी   आरंभ    कर   दी   थी   !  तुझे   ये   भी   पता   था   के   मेरे   जन्मते   समय   बेहद   कष्ट   होता   है   ,और   प्राणांत   भी   हो    सकता   है   !  पर   तू   घबरायी   नहीं   और   निर्भय   होकर   ठीक    समय   का   इंतज़ार   किया   !  हालाँकि   पैदा   होते   हुए   मुझे   भी  कष्ट   झेलने   परे    पर   वो   तेरे   कष्टों    के   सामने   कुछ   भी   नहीं   थे  !  माँ ,  मुझे   इस   संसार   में   लाने   के   लिए   लाख   लाख   शुक्रिया   !   मुझे   ये   भी   पता   है   कि  मैं   कितना    स्वार्थी   हूँ   !  अगर   गर्भ   में   तुझे   भोजन   कि   कमी   होती   तो   भी   मैं   तुमसे   जबरदस्ती   अपना   भोजन    खींचता    रहता   !   इसी   लिए   तो   कई   मुझे   परजीवी    कि   संज्ञा    भी     देते    हैं   !  पर   तू   उनसे    कभी    सहमत   नहीं   हुई   !  क्या    इससे    मैं    कभी   उरिण   हो   सकता    हूँ   ?  शायद    कभी    नहीं   !! 

Monday, 17 October 2011

शामिल  हूँ  तेरे  शौक  में  ,  शौक  से  अपने  !  कोई  मजबूरी  नहीं  ,  जानते  हैं  ,  हालात  हम  अपने  !
बहकाते  हैं  लोग  तुम्हें  भटकाने  को  ,  रास  आते  नहीं  ज़माने  को  ,    अब ,  सब   शौक  ये   अपने  !!


आराम से बैठेंगे , तो कुछ कह लेंगे , कुछ सुन लेंगे !
सदियाँ गुजारी हैं राहगुज़र में , अकेले , तेरे इंतजार में !! 

था   अशेष  मेरा  परिचय  , शून्य  के  निकट  था  मैं  !
 मिला  कोई  ? दुश्मन  ही  था  , मेरा  अहं बढ़ा गया  !!
 फिर  दे  गया  नाम  मुझे  , शून्य  से  गिरा  गया  !! 

वहां  है  कोई  , चिलमन  में  छुपा  बैठा  है  !
देखता  है  यहाँ  का  सब  कुच्छ वो , वहां  का  दिखाता सिर्फ  पर्दा  !!
क्या  छूट  गया  , क्या  मिलने  वाला  , क्या  कोई  मायने  रखता  है  ?
 जो  हाथ  में  है  , उस  वक्त का  सदा  , सादर उपयोग  मैं  , करता  हूँ  !!
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जाने  दे  यार  को  , थोड़ा  बहक  जाने  दे  !
 उंचाईयां    छूएगा  पतंग  , तेरी  इस  ढील  से  !!
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मेरे  सपनों  में  भी   तुने  , सेंध  लगायी  , जितने   थे  सपने  अछे  , तू  ले  आई  !
 अब  मैं  डरता  हूँ  सोने  से  भी  , कैसी    निकली  हरजाई   , नींद  भी  चुरा  - आयी !!
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मैं  जानता  हूँ  , तू  खड़ा  कहीं  , कर  रहा  मेरा  इंतज़ार  !
तेरी  बेकरारी  से  मुझे  , हैं  मिल  रही  तसल्लियाँ  !!
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मैं  क्या  हूँ  , मैं  नहीं  जानता  , मेरा  अर्थ  मुझ को  बतादे  कोई  !
मुझे  घर  है  शाम  को  लौटना  , रब  ने  लेना  इम्तिहान  है  !!

जोबन   तेरा   कमाल   है   ,  मैं   करीब   आ   के   ,  ज़रा    देख    तो   लूं   !
नज़र   मेरी   घबराई   सी   है    ,  तुझे     छुपा   न   लें   ,  कहीं    बदलियाँ   !!
मेरे    नसीब    में  ,  पहरा    लिखा   ,  तेरा    करूं , या   के   चाँद     का   !
दोनों    को    है    ख़तरा    यहाँ   ,   कहीं    छुपा    न   लें    ये  बदलियाँ   !!
मैं   जवाब   दूं   ,  तो   किसको   दूं   ,  परेशान   हैं   नज़रें   मेरी   !
दोनों    हसीं  ,  कमाल     हैं     ,  कहीं    चुरा    न   लें   ये    बदलियाँ !!


मैं     घबराई     लर्जाई   भाग   आई   हूँ   ,  तेरा    पैगाम    लाये    थे   सपने   मेरे   !
मेरे   सपनो   को   मत    झुठलाना    तुम   ,  मैं    सवेरे   सवेरे   ,  भाग    आई   हूँ   !!
मेरे    सपने    अलग   से   परेशान    होंगे   ,  माँ   बाप    अलग    से    परेशान    हैं   !
मेरी    चुनरी   भी   घर   में   बिसर   गयी   रे   , मुझे    छाओं   में   ले ले   मेरे   मेहरबान  !!
तुझे     कसम    है     तेरी    ही   , सनम   मेरे   ,   मेरा   लौटना   है   मुश्किल    वहां   !
तेरा   पैगाम   लाये   थे   सपने   मेरे   ,  तेरा   विश्वास    करके   मैं    भाग   आई    हूँ   !!
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कानों  में     बजे   घंटियाँ   ,  आँखों    में   फिरें   बिजलियाँ   !
तेरी   आहटों   का   कमाल   है   ,  इस   अंधे   बहरों   के   शहर   में   !!
तू   न  - हो   तो  , जियेगा   कौन    इस   ,   खुदगर्जी    ,  के   माहौल   में   !
तेरा   आना    बयार   सा  ,  नई    ,  बस्तियां   बसाये  ,  अजीब   सी   !!


हो    करीब     ,  बहुत   करीब   ,  कोई   शख्श    यूं    खामोश   सा   !
सुने   जो   दिल    की    धड़कने    ,  और    दिल   में    अपने    उतार  ले   !!
खोजे    उनके    अर्थ    फिर   ,  गहरे    समुन्दरों   के   शोर    में     !
और    लाये    उनको    संभाल  फिर   ,   दिल    में    मेरे    उतार   दे    !!


मुझे  हैराँ  किया  तेरे  अंदाज़  ने  ,  क्या  खबर  थी ,  तू  भी  दुश्मनों  में   है  !
करता  रहा  तेरा   एतबार   ,  किया  शामिल  तुझे  , हर  कदम  हर  राज़   में  !!
तेरा  एहसान  क्या  मिटेगा  यार   ,   मेरी  मिट्टी  ने , तुझे   अब  पहचाना  है  !
अब  जब  भी  आना  ,  संभल  के  आना   ,  रंजिशें  हैं  ,  दिल  औ  दिमाग  में  !!

अपने  शहर  में  हूँ , फिर  भी   हूँ  अजनबी  ,  जितने  भी  दोस्त  थे  हासिल  हुए  ,  बने  अजनबी  !
आज  एक  से  मन  मुटाव  ,  कल  दुसरे  से  हुआ  ,  दूरियां   बढती  गयी  ,  मिलते  अब  न  कभी  !!


चलते  चलते  मस्तियों  में  घर  से  गुज़र  गया  ,  अब  घर  वाले  भी   हमें  अपना  ,  मानते  नहीं  !
साथ  जन्मे  ,  साथ  पढ़े  ,  खेले  साथ  साथ  ,  सदियों  पुराने  साथ  भी  ,   अब  बन  गए  अजनबी  !!