भूल गये क्यों साथ तुम्हारे , चलता इक साया है ,
तुम बचते फिरते काँटों से , साए को क्यों उलझाया है ?
साए की किस्मत बंधा है तुमसे , है कैसी यह माया है ,
तुम स्वतंत्र , छाया परतंत्र , अंधियारा क्यों ये छाया है ,
तुम परमात्म , मेरी आत्म को क्यों बख्शी ये काया है ,
या चारों तरफ प्रकाश हो , या चारों तरफ अँधेरा ,
तब मैं तुमसे एक बनूँगा , कैसी ये सब माया है ??
तुम बचते फिरते काँटों से , साए को क्यों उलझाया है ?
साए की किस्मत बंधा है तुमसे , है कैसी यह माया है ,
तुम स्वतंत्र , छाया परतंत्र , अंधियारा क्यों ये छाया है ,
तुम परमात्म , मेरी आत्म को क्यों बख्शी ये काया है ,
या चारों तरफ प्रकाश हो , या चारों तरफ अँधेरा ,
तब मैं तुमसे एक बनूँगा , कैसी ये सब माया है ??