Monday, 12 March 2012

आज  मिली  फुर्सत   तो  क्यों  न  तुमसे  बोलूँ ,
ए  मेरे  मन  चल , जहां   से  पार  चल  दें !
यार  चल  दें कहीं  हम  उन , ठंडी  हवाओं  में  ,
ज़हर  जमानें  का  न घुल  पाया  हो  जिसमें अभी  तक !
अभी  जिसको   न  रंगीं  कर  सका  हो रंज  का  रंग ,
न  बचपन  सा  भोलापन  जहाँ से   गया  हो !
चांदनी  आती  हो  जहां  बिन  खंगाले ,
और  बर्फ  बिछ  जाती  हो  जहाँ  बिन  घघरा  संभाले !
जहाँ  उड़ते  हो  पंछी  निर्भय  उडारी  , निर्मल  गगन  में ,
और  चोटियों   में  होड़  लगी  हो  ,  आसमान  छू  लें !
बादल  जहाँ  छिप  छिप  जाएँ  ,  दौड़  लगायें ,
कहीं  वहीँ  ले  चल  , रे  मनवा  हम  साथ  हो  लें !!

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मैं  क्या  न  देदूं  तुम्हें  आज  ज़मीं  से  गगन  से ,
क्या  न  देदूं  दिल  से  अपने  जो  मेरा  हो  सबसे  सुन्दर ,
ये  भाव  आते  हैं  जब  भी  मन  में  मेरे  ,
यार  चेहरा  बस  सामने , इक  तुम्हारा ,बस  इक  तुम्हारा !!

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तेरा  वितान  जमीं  अम्बर  पर  ,
तेरा  गान  सर्व  कर्ण  में  ,
तेरा  स्वर  हर  कंठ  में  ,
दृश्य  तू  है  सर्व  सर्व  ,
तेरा  ही  है  हर  पर्व  पर्व  ,
तू  मेरा  , मैं  तेरा  वितान  ,
हे  भगवन  हे  कृपानिधान  !!"
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"अनल  है  प्राणदाता  , अनिल  जीवन  आधार  ,
जल  , थल  से  बनी  मूरत  को  स्थान  देता  आकाश  ,
जगत  पंचभौतिक  , जगतार  पंचभौतिक  ,
आत्म  दृष्यदाता  ,परमात्म  सर्वज्ञाता  ,
विनम्र  है  नमन  मेरा  , जगतपति  विधाता  !!"

 
     

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