आज मिली फुर्सत तो क्यों न तुमसे बोलूँ ,
ए मेरे मन चल , जहां से पार चल दें !
यार चल दें कहीं हम उन , ठंडी हवाओं में ,
ज़हर जमानें का न घुल पाया हो जिसमें अभी तक !
अभी जिसको न रंगीं कर सका हो रंज का रंग ,
न बचपन सा भोलापन जहाँ से गया हो !
चांदनी आती हो जहां बिन खंगाले ,
और बर्फ बिछ जाती हो जहाँ बिन घघरा संभाले !
जहाँ उड़ते हो पंछी निर्भय उडारी , निर्मल गगन में ,
और चोटियों में होड़ लगी हो , आसमान छू लें !
बादल जहाँ छिप छिप जाएँ , दौड़ लगायें ,
कहीं वहीँ ले चल , रे मनवा हम साथ हो लें !!
.............
मैं क्या न देदूं तुम्हें आज ज़मीं से गगन से ,
क्या न देदूं दिल से अपने जो मेरा हो सबसे सुन्दर ,
ये भाव आते हैं जब भी मन में मेरे ,
यार चेहरा बस सामने , इक तुम्हारा ,बस इक तुम्हारा !!
..........
तेरा वितान जमीं अम्बर पर ,
तेरा गान सर्व कर्ण में ,
तेरा स्वर हर कंठ में ,
दृश्य तू है सर्व सर्व ,
तेरा ही है हर पर्व पर्व ,
तू मेरा , मैं तेरा वितान ,
"अनल है प्राणदाता , अनिल जीवन आधार ,
जल , थल से बनी मूरत को स्थान देता आकाश ,
जगत पंचभौतिक , जगतार पंचभौतिक ,
ए मेरे मन चल , जहां से पार चल दें !
यार चल दें कहीं हम उन , ठंडी हवाओं में ,
ज़हर जमानें का न घुल पाया हो जिसमें अभी तक !
अभी जिसको न रंगीं कर सका हो रंज का रंग ,
न बचपन सा भोलापन जहाँ से गया हो !
चांदनी आती हो जहां बिन खंगाले ,
और बर्फ बिछ जाती हो जहाँ बिन घघरा संभाले !
जहाँ उड़ते हो पंछी निर्भय उडारी , निर्मल गगन में ,
और चोटियों में होड़ लगी हो , आसमान छू लें !
बादल जहाँ छिप छिप जाएँ , दौड़ लगायें ,
कहीं वहीँ ले चल , रे मनवा हम साथ हो लें !!
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मैं क्या न देदूं तुम्हें आज ज़मीं से गगन से ,
क्या न देदूं दिल से अपने जो मेरा हो सबसे सुन्दर ,
ये भाव आते हैं जब भी मन में मेरे ,
यार चेहरा बस सामने , इक तुम्हारा ,बस इक तुम्हारा !!
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