Friday, 16 March 2012


"पर्दा  तो  सिर्फ  आँखों  का  है  ,
मन  के  आगे  बेपर्दा  हैं  सब  !!"
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वो  नगमा  मचलता  तो  है  अंतर  में  मेरे  ,
पर  गड्डमगड्ड   हैं  बहरूपिये  शब्द  मेरे  ,
शक्ल  कोई  उभरती  ही  नहीं  !!"
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"वो  इक  बार  भी  न  बोले  मुझसे  ,
और  जुबान  में  मेरे  छाले  पड़े  हैं  !
कमबख्त  नादानियाँ  मेरी  ,
जला  डाला  दिल  उनका  !!"
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"हालात  ने  सिखा  दिया  मुझे  खामोशियों  का  राज़  ,
अब  बेवजह  , बेवक्त  , कुछ  मैं  बोलता  नहीं  !!"
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"काश  हम  भी  कोई  जंग  हारे  होते  ,
होती  अपनी  भी  प्यार  की  दास्ताँ  यार  !!"
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"वो  नगमा  , हर  रोज़  , नया  गाते  हैं  ,
और  मेरे  हाथों  में  साजे  दिल  बजे  हर  रोज़  !!"
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"जम  में  खनक  है  , ख्याल  बजने  सी  ,
जल  तरंग  की  जगह  , मय  तरंग  बज  रही  है  आज  !!"
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"वो  मोती  चमड़ी  उगा  लाये  आज  ,
तंज  फिकरे  नाकाम  हो  रहे  आज  !!"
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"नाकामियों  से  घबरा  गये  क्यों  तुम  ,
ये  कायनात  खुदा  की  नाकामी  ही  तो  है  !!"
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"जहां  में  सब  देते  भी  हैं  और  लेते  भी  हैं  कुछ  ,
हर  शै  जब  खुश  है  तो  दुखी  क्यों  तू  !!"
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"वो  आये  और  मुस्कुराए  दरवाज़े  की  ओट  ,
मैं  दीवाना  हुआ  बस  मुस्कुराता  ही  रहा  , समझा  न  प्यार  !!"
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"उनकी  आँखों  में  जन्नत  भी  थी  , दोज़ख  भी  ,
मैंने  दोज़ख  झेला  उनकी  ज़न्नत  के  लिए  !!"
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"सब्ज़  थे  उनके  ख्वाब  ,
छोड़  आया  मैं  शबे  माह  उनके  लिए  !!"
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"नाखुदा  को  भी  खुदा  कह  दूं  इक  बार  ,
कश्ती  तो  लगे  किनारे  इक  बार  !!"
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"बहके  बहके  से  ख्याल  ,
बहके  बहके  अरमान  ,
अब  तो  खुदा  ही  करे  खैर  ,
दीवाना  होके  दिल  पहलू  से  गया  !!"
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जो  ना  बोले  तुम  तो  शुक्रिया  ,
पर  हैराँ  हम  भी  हैं  मेहरबानी  पे  तेरी  !!"
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"मुद्दा  ये  नहीं  , अकेले  हैं  हम  ,
पर  साथ  गम  भी  नहीं  , दिल  भी  अकेले  में  है  !!"
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"जिक्र  करना  भी  गवारा  नहीं  अब  उनको  ,
बेशर्म  मेहमान  हम  , इस  कदर  उनके  दिल  के  हुए  !!"
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"जन्म  से  आँधियों  के  हैं  शुक्रगुज़ार  हम  ,
तूफ़ान  तेरी  नादानियों  के  ,
झेल  जाते  हैं  चिराग़  मेरे  अब  !!"
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"समस्या  कभी  कोई  थी  ही  नहीं  ,
दिल  तेरे  पास  ना  था  , जुनूँ  मेरे  पास  ना  था  !!"
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"पी  के  उलट  गये  वो  कई  बार  , आदतन  ,
अब  उलट  के  पी  गये  कई  बार  , बेगैरतन  !!"
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"तेरी  खामोश  निगाहों  में  तिर  आये  हैं  प्रश्न  नए   ,
मेरी  आँखें  अब  ढूंढ  रही  हैं  , कोने  नए  , छुपने  के  लिए  !!"
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"जब  आशाओं  पे  बादल  काले  घिर  आये  हों  , तो  एक  कदम  ,
बस  एक  कदम  है  बारिश  और  बादल  छट  जायेंगे  !!"
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"शैशव  से  आँखें  ना  होती  तो  था  दोष  ,
अब  मन  ही  ना  देखे  तो  मूरख  बोल  अँधा  तो  ना  बोल  !!"
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"हुस्न  की  होलियाँ  हुई  हजारों  बार  , मन  प्रहलाद  सा  बच  निकला  हर  बार  !!"
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"रंग  सब  बिक  गये  होलियों  में  , मासूमियत  के  सिवा  ,
मेरा  बचपन  अभी  भी  हर  रंग  पे  छा  जाता  है  !!"
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"जादू  हुआ  ना  गुलाम  मेरा  ,
तेरा  जादू  अभी  भी  सर  चढ़  के  बोलता  है  ज़मानें  में  !!"
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"आजू  बाजू  किनारे  खुशियों  के  ,
और  बहता  गम  का  , बीच  में  दरिया  ,
दरिया  को  बहने  दे  ,और  थाम  किनारे  ले  !!"
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"मेरी  बाहों  में  पिघलते  हुए  आना  ,
मैं  तुम्हें  मन  के  खुदा  सा  तामीर  करूंगा  !!"
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"तेरी  बाहों  का  झूला  सिर्फ  एक  है  जग  में  ,
आने  दे  पनाहों  में  जी  भर  के  मुझे  !!"
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"मैंने  सोचा  झूम  गया  अम्बर  ,
रुका  तो  देखा  , धरती  ने  अंगडाई  ली  थी  !!"
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"इंतज़ार  , सिर्फ  मेरा  , सिर्फ  मेरा  , रहा  तुमको  ,
दीवारों  ने  रो  रो  , तेरी  खुश्कत  में  , मेरा  नाम  , उभरा  था  !!"
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"ख़त्म  हुए  सब  रास्ते  , मंजिल  के  बाद  बचा  क्या  ?
जन्म  से  तय  थे  सब  रास्ते  , मौत  के  बाद  बचा  क्या  ?"
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"इक  भी  पैगाम  मेरे  नाम  ना  आया  ,
डाकिया  निकलता  है  , रूठा  हुआ  सा  !!"
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"सारे  जीवन  की  कविताई  उतर  आई  ,
समझा  जिस  दिन  से  निस्सार  जीवन  को  !!"
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"छोड़ेगा  किनारा  जब  दरिया  बन  निकलोगे  ,
ऐसे  तो  तालाब  सा  बंधे  रहो  तुम  !!"
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"ऐसे  चलो  जग  में  , जैसे  अकेले  हो  तुम  ,
इक  सैलाब  सा  साथ  हो  लेगा  तुम्हारे  !!"
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हर  निर्णय  तुम्हारा  है  , और  भोगोगे  तुम  ही  ,
अब  कांटे  उगाओ  या  फूल  चमन  में  !!"
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"तेरे  बोये  कांटे  भी  काट  ही  लूँगा  ,
पर  फूल  उगने  का  , वक्त  निकल  जाएगा  कुछ  !!"
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"वक्त  से  पहले  तुम  खोज  लो  कुष्ठ  ,
अंग  भंग  होने  से  तभी  बच  पाओगे  !!"
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"तब  ही  बोलो  या  तभी  , वक्त  के  मायने  बदलेंगे  क्या  ?
करो  अब  ही  या  अभी   , कर्म  के  मायने  बदलेंगे  क्या  ?"
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"चले  आओ  चमन  तेरा  है  मेरा  भी  ,
यूँ  अजनबी  बन  कब  तक  रहेंगे  दूर  !!"
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वो  बुन  रहे  हैं  मुझे  स्वेटर  की  तरह  ,
कभी  दो  फंदे  छोड़  देते  हैं , कभी  उठा  देते  हैं  ,
आधा  अधूरा  स्वेटर , पूरा  होता  ही  नहीं  ,
कहते  हैं  माँ  ने  बोर्डर  में  घर  ही  गलत  उठाये  हैं  ,
और  बुनती  , भी  टेढ़ी  लगा  रक्खी  है  !!"
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"छू  गया  मन  , अल्हड़पन  बादल  का  ,
पल  में  शक्ल  बदल  गया  घन  ,
पकड़  ना  पाया  इक  टुकड़ा  भी  ,
रहा  देखता  सकल  गगन  !!"
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मेरा  थक  के  चूर  होना  विधाता   को  पसंद  आता  नहीं ,
खाली  देख  ,  उलझनें  फेंकता  मेरे  आगे  सुलझाने  के  लिए !!


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