जय पलासणियां
Monday, 12 March 2012
जंगल में चले चलें आज ,शहर बेगाना हुआ ,
संस्कृति की डोर पकड़ आया था शहर ,
अब शहर जंगल हुआ , जंगल से अधिक ,
ये देख जंगल का बशर जंगल रवाना हुआ !!
...........
डाल से बिछुड़े हैं जो , जिंदा नहीं पत्ते लेकिन ,
उदासी तो झलक आती है मौसम में पतझड़ से !!
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