"मैं देखता हूँ दरख्तों के साए , कभी लम्बे होते कभी छोटे होते ,
मैं देखता हूँ , बादल के टुकड़े , कभी घनघनाते , कभी छितराते ,
मैं देखता हूँ ,मौसम के तेवर , कभी ठन्डे ठन्डे ,कभी जलते शोले ,
यहाँ पर खड़ा कुछ भी नहीं , फिर मैं क्यों चाहता हूँ , जीवन को रोके रखना ,
चल रे चल , यहाँ कुछ भी न अचल !!"
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"गाँव अब खेत हुए शहरों के लिए ,
खेतों में बोते हैं अब , दुःख दर्द नए !
गाँव की बोली अब , बूढों के लिए ,
बच्चे अब गाँव के अँगरेज़ हुए !"
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"उपवन में वन की झलक मिलने लगी अब ,
माली अब उदासीन हुआ , सड़कों के किनारे बोता है फूल !!"
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मुझ में कुछ , रहा न बाकी , सब गया ,
इक खुदा , इक उसकी याद , और बुत इक ,बन गया !!"
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"जो न थे मेरे उसूल , अब बन गये ,
इन ठोकरों ने , जग में रहना सिखा दिया !!"
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"दवा की शीशी में सोना बिकता है अब ,
गरीब की पहुँच से बाहर हैं अब !!"
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अजी क्या सुनाएं दिल्ली की बातें , दिल्ली में दिल रह गया ,
हुक्मरान कोई पागल न थे , दिल्ली को दिल , दर्ज़ा दिया !!"
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जुबान से दिल गया ,और दिल से जुबान ,
इस प्यार ने सब कर दिया है अस्त व्यस्त !
जिस्म में है रूह , या रूह है जिस्म बिना ,
इस प्यार ने जग को बनाया मस्त मस्त !!"
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झरोखों से रौशनी आने तो दी ,
पर दिल जला , तब रूह ,रौशन हुई !!"
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"दिल उनका रूह पे कब्जाई हुआ ,
क्या करें जब दिमाग तमाशाई हुआ !!"
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"ये तब्दीलियाँ , बचपन से बुढ़ापे तक की हैं ,
यूँ ही नहीं जय इक दिन में , सयाना हो गया !!"
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"ये सयानापन मेरा बचपन में भी था ,
पर तब , बचपना , इसे कहते थे लोग !!"
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सयानापन , जवानी , दो धुरे हैं दूर दूर ,
जो सयाना , जवान कैसे ? जो जवान तो अक्ल का क्या काम ?"
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"दिल खोल के हँसता है मलंग ,
रोने से दिन बदले हैं क्या ?"
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"जुल्मी हैं पिया , देखा भी , और अनदेखा भी किया !
बोझिल है जिया , धड़के भी और धधके भी हिया !!"
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"चलो फुर्सत के वक्त ,कुछ तारे गिनलें ,
ज़माना गुजरा है , अम्बर पे नज़र डाले हुए !!"
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"मलिन मुख से , दरिद्रता न हटेगी ,
कुछ हस बोल , रिझा अपने सनम को ,
वर्ना रोते रहोगे , सजन सौतन का हुआ ,
यूँ ही नहीं , अशर्फी बायीं का चले सिक्का जहां में !!"
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"लफ़्ज़ों को तरतीब में रख , और दिल से बोल ,
वाह बोलेगा ख़ुदा , और ज़माना ग़ज़ल सुन लेगा !!"
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"अभी बस सुन ले तू , ख़ामियां बहुत हैं मेरी तक़रीर में ,
नुक्ताचीनी भी सुन लूँगा तेरी ,पर वक्त के पहले ही तू , मौत तो न दे !!"
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"सूरज को जलता देख ,
रौशनी देता है , खाक होने के लिए !!"
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"मेरी रूह पे पर्दा है जिस्म ,
और इसको जलना भी है , मौत के बाद ,
तो क्यों न ,जिन्दा जी इससे अलग हो लूं मैं ,
असल क्या है उसका भी तो नज़ारा कर लें !!"
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"खुदा के गुनाहगारों में मैं भी हूँ ,
यूँ ही तो ख़ुदा मौत न देता होगा !!
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"खुदा के पास है क्या मेरी फितरत के बाद ,
मैं भी तो उसकी फितरत का ही नज़ारा हूँ !
जो मैं हूँ ख़ुदा की फितरत से ,
तो वो भी ख़ुदा , मेरी फितरत से जनाब !!"
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"मैंने जिक्र कमाया है , होता है अब , सब जगह ,
पर फिक्र क्यों है अब , जिक्र अच्छा ही हो !!"
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"हैराँ कर के मुझे चल दिए तुम कौन जहाँ ,
मैं समझा मज़ाक हो रहा है अभी , तुम हो वफादार अभी !!"
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"खुदा भी खुद से खेलता है कभी ,
कभी फैलता है , कभी सिमट आता है मुट्ठी में मेरी !!"
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"बस इस बहाने से सताले मुझे ,
मैं तेरा कुछ भी नहीं !!"
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"बस मेरी नज़र भर दुनियां है ,
उस से ओझल कुछ भी नहीं !