"कसम उनको भी दो यार , जो सनम को बहका आये कि वो धोखे में हैं ,
मेरी ही जुबान क्यों बंद रहे , मौकाए इज़हार में !!"
.............
बस्तियां हसीं और बाशिंदे नौबहार ,
फिर गुलिस्ताँ में खिजाँ की नौबत क्यों है आज ?"
........
क्यों अहसास हुआ मैं चूका , क्यों जाना अब समय नहीं ,
क्यों आँखों में आंसू आये , इक उम्र गुज़र जाने के बाद !!
...............
"हरी सिमरन को बचा है क्या अब , पश्चाताप की अगन के बाद ,
अब तुम सोना , सोने सा दिल , हरी विराजे तुम में आज !!"
............
"रौनकें सदा बादशाहत में हैं , कभी जय जय करो अपनी भी तुम ,
कभी बाँट दो अपने हिस्से के सुख , और हासिल करो मन की शांति तुम !!"
.......
"तेरी शामों में मेरी इक शाम और मेरे छालों का दिल से मिट जाना ,
जैसे लू की जलन से चेहरे को , शबनम का मरहम मिल जाना !!"
...........
"फिर से गुज़र गया तूफ़ान , और हिंडोले डोलते रहे ,
घर में दुबके चेहरे , इक झूले को तरसते रहे !
मेरी ही जुबान क्यों बंद रहे , मौकाए इज़हार में !!"
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बस्तियां हसीं और बाशिंदे नौबहार ,
फिर गुलिस्ताँ में खिजाँ की नौबत क्यों है आज ?"
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क्यों अहसास हुआ मैं चूका , क्यों जाना अब समय नहीं ,
क्यों आँखों में आंसू आये , इक उम्र गुज़र जाने के बाद !!
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"हरी सिमरन को बचा है क्या अब , पश्चाताप की अगन के बाद ,
अब तुम सोना , सोने सा दिल , हरी विराजे तुम में आज !!"
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"रौनकें सदा बादशाहत में हैं , कभी जय जय करो अपनी भी तुम ,
कभी बाँट दो अपने हिस्से के सुख , और हासिल करो मन की शांति तुम !!"
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"तेरी शामों में मेरी इक शाम और मेरे छालों का दिल से मिट जाना ,
जैसे लू की जलन से चेहरे को , शबनम का मरहम मिल जाना !!"
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"फिर से गुज़र गया तूफ़ान , और हिंडोले डोलते रहे ,
घर में दुबके चेहरे , इक झूले को तरसते रहे !
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