"बातें उनकी , जग को समझ नहीं आतीं , और पागल भी , उनको ही कहते लोग !!"
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"सितारों से दामन भरने का दम भरते हैं वो ,
पर चिंगारियों से डरते हैं वो ,
अजब सपने दिखा रहे हैं गुलिस्ताँ में बहार के ,
और उजड़े चमन के उल्लू के रिशतेदारां हैं वो !!"
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"सिर्फ दूर रहो तुम इतना के पराया न लगे ,
और क़रीब आओ तो इतना ,की अपना कहूं और बुरा न लगे !!"
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"समंदर पी लिया करते हैं कई बार , सूखे पत्ते भी , और कभी इक बूँद भी न समा पाती हलक में फलक के !!"
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"सिर्फ इतना समझ आता है के मैं हूँ , था ? या हूँगा ? खुदा जाने !!"
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"अपनी डगर का पता नहीं , नदिया को रास्ता बता रहा हूँ मैं ,
खुद खड़ा गुमनाम और ,राह चलतों को उपनाम दे रहा हूँ मैं !!
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