Tuesday, 17 April 2012


"बातें  उनकी  , जग  को  समझ  नहीं  आतीं   , और  पागल  भी  , उनको  ही  कहते  लोग  !!"

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"सितारों  से  दामन  भरने  का  दम  भरते  हैं  वो  ,
पर  चिंगारियों  से  डरते  हैं  वो  ,
अजब  सपने  दिखा  रहे  हैं  गुलिस्ताँ  में  बहार  के  ,
और  उजड़े  चमन  के  उल्लू  के  रिशतेदारां  हैं  वो  !!"
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"सिर्फ  दूर  रहो  तुम  इतना  के  पराया  न  लगे  ,
और  क़रीब  आओ  तो  इतना  ,की  अपना  कहूं  और  बुरा  न  लगे  !!"
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"समंदर  पी  लिया  करते  हैं  कई  बार  , सूखे  पत्ते  भी  , और  कभी इक  बूँद  भी  न  समा  पाती  हलक  में  फलक  के  !!"
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"सिर्फ  इतना  समझ  आता  है  के  मैं  हूँ  , था  ? या  हूँगा  ? खुदा  जाने  !!"
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"अपनी  डगर  का  पता  नहीं  , नदिया  को  रास्ता  बता  रहा  हूँ  मैं  ,
खुद  खड़ा  गुमनाम  और  ,राह  चलतों  को  उपनाम  दे  रहा  हूँ  मैं  !!

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