प्रथम अभिव्यक्ति हो मेरी तुम ,
अब तुम ही रहो मौन , तो क्या किस्मत ?
प्रथम संध्या हो मेरी तुम ,
अब तुम ही रहो गौण , तो क्या किस्मत ?
प्रथम दिवस हो तुम मेरा ,
अब तुम ही न जागो , तो क्या किस्मत ?
प्रथम रात्रि हो मेरी तुम ,
अब तुम ही बनो स्वप्न , तो क्या किस्मत ?
अब तुम ही रहो मौन , तो क्या किस्मत ?
प्रथम संध्या हो मेरी तुम ,
अब तुम ही रहो गौण , तो क्या किस्मत ?
प्रथम दिवस हो तुम मेरा ,
अब तुम ही न जागो , तो क्या किस्मत ?
प्रथम रात्रि हो मेरी तुम ,
अब तुम ही बनो स्वप्न , तो क्या किस्मत ?
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