Wednesday, 18 April 2012

प्रथम  अभिव्यक्ति  हो  मेरी  तुम ,
अब  तुम  ही  रहो  मौन , तो  क्या  किस्मत ?
प्रथम  संध्या  हो  मेरी  तुम ,
अब  तुम  ही  रहो  गौण , तो  क्या  किस्मत ?
प्रथम  दिवस  हो  तुम  मेरा  ,
अब  तुम  ही  न  जागो , तो  क्या  किस्मत ?
प्रथम  रात्रि  हो  मेरी  तुम ,
अब  तुम  ही  बनो  स्वप्न , तो क्या  किस्मत ?

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