Friday, 20 April 2012


यूँ  ही  ऊंचाईयों  पे  जा  बैठे  परिंदे  , आकाश  अपना  समझ  बैठे  हैं  ,
रात  ढलने  पर  आसरा  मिलता  है  तो  जमीं  पे  बस  !!"
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"हर  तरफ  उम्मीद  बस  उम्मीद  ,
और  नासूर  भरते  नहीं  देश  के  मेरे  !!"
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"इक  घरौंदा   , रोटी  इक  , और  तन  को  कपडा  न  मिले  सबको  तो  ,
आजादी  किसका  नाम  और  करनी  भी  क्या  !!"
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"चारों  तरफ  ही  है  शोर  , चोर  चोर  , चोर  चोर  ,
सिपाही  इस  खेल  में  अब  कोई  बचा  ही  नहीं  !!"
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"जो  भी  बचा  है  देशप्रेमी  इस  देश  में  ,
है  परीशां  ,कौन  है  जिसको  सुनाएं  , दिल  का  हाल  !!"
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"जो  भी  उठता  आवाज  , सुधरो  और  सुधारो  ,
उसको  बची  बस इक  जगह , बस , जेल  जेल  , जेल  जेल  !!"
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"सब  निवासी  उदास  हैं  और  बे - आस  हैं  , राजनीति  में  भरे  सब  ....................

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