Monday, 16 April 2012


"मैं  देखता  हूँ  दरख्तों  के  साए  , कभी  लम्बे  होते  कभी  छोटे  होते  ,
मैं  देखता  हूँ  , बादल  के  टुकड़े  , कभी  घनघनाते  , कभी  छितराते  ,
मैं  देखता  हूँ  ,मौसम  के  तेवर  , कभी  ठन्डे  ठन्डे  ,कभी  जलते  शोले  ,
यहाँ  पर  खड़ा  कुछ  भी  नहीं  , फिर  मैं  क्यों  चाहता  हूँ  , जीवन  को  रोके  रखना  ,
चल  रे  चल  , यहाँ  कुछ  भी  न  अचल  !!"
.........
"गाँव  अब  खेत  हुए  शहरों  के  लिए  ,
खेतों  में  बोते  हैं  अब , दुःख  दर्द  नए  !
गाँव  की  बोली  अब  , बूढों  के  लिए  ,
बच्चे  अब  गाँव  के  अँगरेज़  हुए  !"
............
"उपवन  में  वन  की  झलक  मिलने  लगी  अब  ,
माली  अब  उदासीन  हुआ  , सड़कों  के  किनारे  बोता  है  फूल  !!"
..........

मुझ  में  कुछ  , रहा  न  बाकी  , सब  गया  ,
इक  खुदा  , इक  उसकी  याद  , और  बुत  इक  ,बन  गया  !!"

...........
"जो  न  थे  मेरे  उसूल  , अब  बन  गये  ,
इन  ठोकरों  ने  , जग  में  रहना  सिखा  दिया  !!"
...........


"दवा  की  शीशी  में  सोना  बिकता  है  अब  ,
गरीब  की  पहुँच  से  बाहर  हैं  अब  !!"
.............
अजी  क्या  सुनाएं  दिल्ली  की  बातें  , दिल्ली  में  दिल  रह  गया  ,
हुक्मरान  कोई  पागल  न  थे  , दिल्ली  को  दिल  , दर्ज़ा  दिया  !!"
................
जुबान  से  दिल  गया  ,और  दिल  से  जुबान  ,
इस  प्यार  ने  सब  कर  दिया  है  अस्त  व्यस्त  !
जिस्म  में  है  रूह  , या  रूह  है  जिस्म  बिना  ,
इस  प्यार  ने  जग  को  बनाया  मस्त  मस्त  !!"
.............
झरोखों  से  रौशनी  आने  तो  दी  ,
पर  दिल  जला  , तब  रूह  ,रौशन  हुई  !!"
........
"दिल  उनका  रूह  पे  कब्जाई  हुआ  ,
क्या  करें  जब  दिमाग  तमाशाई  हुआ  !!"
..............
"ये  तब्दीलियाँ  , बचपन  से  बुढ़ापे  तक  की  हैं  ,
यूँ  ही  नहीं  जय  इक  दिन  में  , सयाना  हो  गया  !!"
...........
"ये  सयानापन  मेरा  बचपन  में  भी  था  ,
पर  तब  , बचपना  , इसे  कहते  थे  लोग  !!"
...............
सयानापन  , जवानी  , दो  धुरे  हैं  दूर  दूर  ,
जो  सयाना  , जवान  कैसे  ? जो  जवान  तो  अक्ल  का  क्या  काम  ?"
................
"दिल  खोल  के  हँसता  है  मलंग  ,
रोने  से  दिन  बदले  हैं  क्या  ?"
.................
"जुल्मी  हैं  पिया  , देखा  भी  , और  अनदेखा  भी  किया  !
बोझिल  है  जिया  , धड़के  भी  और  धधके  भी  हिया  !!"
.............
"चलो  फुर्सत  के  वक्त  ,कुछ  तारे  गिनलें  ,
ज़माना  गुजरा  है  , अम्बर  पे  नज़र  डाले  हुए  !!"
............
"मलिन  मुख  से  , दरिद्रता  न  हटेगी  ,
कुछ  हस  बोल  , रिझा  अपने  सनम  को  ,
वर्ना  रोते  रहोगे  , सजन  सौतन  का  हुआ  ,
यूँ  ही  नहीं  , अशर्फी  बायीं  का  चले  सिक्का  जहां  में  !!"
..............
"लफ़्ज़ों  को  तरतीब  में  रख  , और  दिल  से  बोल  ,
वाह  बोलेगा  ख़ुदा  , और  ज़माना  ग़ज़ल  सुन  लेगा  !!"
............
"अभी  बस  सुन  ले  तू  , ख़ामियां  बहुत  हैं  मेरी  तक़रीर  में  ,
नुक्ताचीनी  भी  सुन  लूँगा  तेरी  ,पर  वक्त  के  पहले  ही  तू  , मौत  तो  न  दे  !!"
............
"सूरज  को  जलता  देख  ,
रौशनी  देता  है  , खाक  होने  के  लिए  !!"
..............
"मेरी  रूह  पे  पर्दा  है  जिस्म  ,
और  इसको  जलना  भी  है  , मौत  के  बाद  ,
तो  क्यों  न  ,जिन्दा जी  इससे  अलग  हो  लूं  मैं  ,
असल  क्या  है  उसका  भी  तो  नज़ारा  कर  लें  !!"
............
"खुदा  के  गुनाहगारों  में  मैं  भी  हूँ  ,
यूँ  ही  तो  ख़ुदा  मौत  न  देता  होगा  !!
...........
"खुदा  के  पास  है  क्या  मेरी  फितरत  के  बाद  ,
मैं  भी  तो  उसकी  फितरत  का  ही  नज़ारा  हूँ  !
जो  मैं  हूँ  ख़ुदा  की  फितरत  से  ,
तो  वो  भी  ख़ुदा  , मेरी  फितरत  से  जनाब  !!"
............
"मैंने  जिक्र  कमाया  है  , होता  है  अब  , सब  जगह  ,
पर  फिक्र  क्यों  है  अब  , जिक्र  अच्छा  ही  हो  !!"
..............
"हैराँ  कर  के  मुझे  चल  दिए  तुम  कौन  जहाँ  ,
मैं  समझा  मज़ाक  हो  रहा  है  अभी  , तुम  हो  वफादार  अभी  !!"
............
"खुदा  भी  खुद  से  खेलता  है  कभी  ,
कभी  फैलता  है  , कभी  सिमट  आता  है  मुट्ठी  में  मेरी  !!"
.........
"बस  इस  बहाने  से  सताले  मुझे  ,
मैं  तेरा  कुछ  भी  नहीं  !!"
...........
"बस  मेरी  नज़र  भर  दुनियां  है  ,
उस  से  ओझल  कुछ  भी  नहीं  !

No comments:

Post a Comment