कई बार ये गुनाह हुआ , मन मसोस के रह गया ,
सोचा था जिनका तिरस्कार करना , स्वागतम बोला गया !
घर आये को इक बार तो , आओ , बैठो , कहना पड़ता है ,
सदाचार में मेहमाँ , जो बोले , सुनना पड़ता है ,
इस अनचाहे , निबाह से , नेता का कद , तोला गया ,
जिसे हम चाहते थे हराना , उसी का जयकार , बोला गया !
मन फिर मसोस के रह गया , क्यों हम इम्तिहान में ठुस्स होते है ?
जब जो करना हो , नहीं कर पाते हैं , और भोगते हैं अगणित संताप ,
उन्हीं देवताओं के कोप , जिन्हें अनचाहे , आसन , हम देते हैं ,
और नेता बन , चकरघिन्नी सा , जो हम्हें नचाते हैं ,
बहुत बार ये गुनाह हुआ , मन मसोस के रह गया ,
चाहते थे जिनका तिरस्कार करना , स्वागतम बोला गया !!