Friday, 16 August 2013

दो  टांगों  पे  लड़खड़ाता  है  ,  पर  चाहता  है  चतुर्भुज  होना ,
दो  बूँद  हलक  में  जाते  ही  ,  धरा  चाहता  है  ,  इक  कोना !!

चले  हैं  तो  ,  हर  शै  से  ,  कुछ  ले  के  चलेंगे  ,
उन्हें  बख्शेंगे  इज्ज़त  ,  गुर ,  जिनसे  मिलेंगे !!

सैय्याद  ने  पर  काट  लिए  इसका  किसे  गम ?
हमको  तो  महज़  देखना  है  ,  किसके  लिए मरे  हम ?
समझते  ही  नहीं  सैय्याद  , तड़पना  क्या  है  ,
मौत  के  गलियारों  से  गुज़रना  क्या  है  ,
वो  तो  बस  जानता  है  ,  लुत्फ़  है  शिकार ,
नहीं  जानता  कि  वो  भी  है इक  शौक का शिकार !!

Thursday, 15 August 2013


उम्र  में  शामिल पल  पल , कहाँ  इक  दिन  जिया ?
कहाँ  मौत  आई  अभी , डर  से  काटे  जो  पल  ,
और  जो  कौतुहल  रहा  बीच  में  ?  उसको  किसने  जिया ?
फिर  क्यों  शकुन  अपशकुन  ?  क्यों  ज्योतिषी  के  दर हम ?
और  देखना  चाहे  खेल  का  अंत  खेल  से  पहले  ही  ?

Wednesday, 14 August 2013

बेरुखी  के  आलम  में  , खुशियाँ खुद से , दरकिनार  हुईं ,
ऐसी  नफरत  क्या ? सलवटें ललाट की , सदाबहार हुईं !!
मंजधार   में  फंसना  ,  और  बच  के  निकल  जाना  ,
जानता  है  वो , मुश्किल  से , हंस  के  निकल  जाना !!

निभा  लेना  इक  रीत  फिर ,
फिर  तिरंगा  फहरा  लेना  ,
वर्ष  में  आज  के  दिन  ,
देशभक्ति  के  गीत  सुन  लेना ,
बाँट  देना  फिर  कुछ  पदक ,
कुछ  सच्चे  ,  कुछ  झूठे ,
देशभक्तों  में  ,  नाम  लिखा  लेना ,
पर  दिल  में  जो  जज़्बा  है ,
दिखता  है  ,  बस  नाम  को ,क्योंकि  ,
राष्ट्र गीत , तरसता  है , सम्मान  को  ,
चुभता  हो  अपमान  तो ,  और  ,
कभी  मिले  फुर्सत , तुम , खड़े  हो  लेना !!
सताए हुए  किस्मत  के  सही , पर  जिंदगी  से  न  हारे  हैं ,
कुछ  ऐसे  भी  इंसान  हैं  , जुड़े  पेट  से , भूख  से  न  हारे  हैं !!

वो  चंचल , मृग  छौने , फुदकते  झुरमुटों  से  ,
मेरे  दिल  को  नचाने  निकले  ,
और  मैं  जानवर  बन  ,
प्रकृति  को  लूटने  का  मन  बना , निकला ,
छि ! मैं  कितना  जानवर  निकला  !!

Monday, 12 August 2013

ढूंढते  रहे , जीवन  भर  संकल्प  कोए  ,
बिना  साधन  भूख  , हिवड़े में  संजोये  ,
बीनते  रहे  कूड़ा  कर्कट  सड़क  से ,
और  झिड़कियों  का  दर्द  नयनों  को  भिगोये ,
नंगे  पैरों   में न कांटे , न  तपती  रेत ,
जलन  कोई  दे  गया  तो  , बस इंसानी  भेद !!

अब  तो  मंगल  पे  भी  अमंगल  हो  गया ,
इक  लाख  इंसान  ?   न  लौटने  का  इरादा  ले ,
टिकट , स्पेस  एजेंसी   में   लेने  गया  !!

कुछ  चर्चे  हैं  , सुना  तेरे  नाम  के ,
पर  चाल  धीमी  न  हो  , सुन  शान  से ,
न  दिमाग़  ऊपर ,  न  असर  हो  काम  पे ,
तो  ये  चर्चे  ,  सदा  रहेंगे  , तेरे  सुन्दर  काम के  !!


जो  कुछ  शहर  में  ख़ास  मेरे ,  सब  किया  है  आम  ने ,
और  उस  आम  को  रुतबा  ख़ास  ,  बख्शा  तो  बस  काम  ने  !!
कुछ  नया  करने  की  चाह  ,  और  उड़ , परिंदा  वो  गया  ,
परवाह  किसे  , हासिल  मंजिलें  होंगी  ?  या  घर से  गया  !!
भले  है  स्वप्न  , पर  है  स्वप्न  ,  तो  ये  भी  सही ,
कड़वे  हों  कितने  सच ,  सच , पर  बोलेंगे  हम वही !! 

Wednesday, 7 August 2013

काश  तेरे  पैमाने  , इस   मय   से  भी  हल्के , वज़न  होते ,
हाथ  मेरे  न  उठते , तो  पैमाने , होठों  से  मेरे , लगे  होते !!
उद्घाटन  के  बाद ,
सब  एक  रंग  हो  गये  ,
जैसे  ही  नेता  गये  , 
रंग ,  सब  इमारत  के  ,
फिर  बदरंग  हो  गये !!
 
फैसले   जीवन  के  कुछ  , अब  भी   नहीं  हुए  ,
कौन  अपना  ?  पराया  कौन  ? छंटनी  नहीं  हुए  ,
भ्रमित  ,  तब  भी  थे  ,  और  अब  भी  हैं  ,
स्वार्थ  मेरे  ,  परमार्थ  से  ,  कितने  अलग ? रौशन , नहीं  हुए !!
देखता  हूँ  बहुत  बढ़ा  चढ़ा  ,  सिखा  दो  मुझे  भी  मिनिमाइज़ करना ,
साइज़  को  बेसाइज़  करना  ,  और  बेकार  को  यूटीलाइज़  करना !
पत्नी  जब  चाहे  ,  सब  इलज़ाम  ,  मेरे  सर  कर  देती  है  ,
नौकरानी   ,  सब  आदेश  ,  औंधे  , उंडेल ,  पत्नी  को  नज़र  देती  है !
विरोध  चाहूँ , जब  करना  ,  सुनना  यही  पड़ता  है  ,   अफ़सोस  है  ,
देखते  हैं  हर  बात  ,  आप  बढ़ा  चढ़ा  ,  गवाह  सारा  ,  पड़ोस  है  !
अगर देखता  हूँ  बहुत  बढ़ा  चढ़ा  ,  सिखा  दो  मुझे  भी  मिनिमाइज़ करना ,
साइज़  को  बेसाइज़  करना  ,  और  बेकार  को  यूटीलाइज़  करना !!


कई  बार  ये  गुनाह  हुआ , मन  मसोस  के  रह  गया  ,
सोचा  था  जिनका  तिरस्कार  करना , स्वागतम बोला  गया !
घर  आये  को  इक  बार  तो ,  आओ  ,  बैठो , कहना  पड़ता  है ,
सदाचार  में  मेहमाँ  ,  जो  बोले  ,  सुनना पड़ता  है  ,
इस  अनचाहे  , निबाह  से  ,  नेता  का  कद  ,  तोला  गया ,
जिसे  हम  चाहते  थे  हराना  ,  उसी  का जयकार  ,  बोला गया !
मन  फिर  मसोस  के  रह  गया , क्यों  हम  इम्तिहान  में  ठुस्स  होते  है ?
जब  जो  करना  हो , नहीं  कर  पाते  हैं  , और भोगते  हैं  अगणित  संताप ,
उन्हीं  देवताओं  के  कोप  ,  जिन्हें  अनचाहे  ,  आसन  ,  हम  देते  हैं ,
और  नेता  बन  ,  चकरघिन्नी  सा  ,  जो  हम्हें  नचाते  हैं ,
बहुत  बार  ये  गुनाह  हुआ  ,  मन  मसोस  के  रह  गया ,
चाहते  थे  जिनका  तिरस्कार  करना ,  स्वागतम  बोला  गया !!

Tuesday, 6 August 2013

अब  तो  जड़  हुए  हम , 
शूल  भी  चुभन  नहीं  देते ,
मरते  सैनिक  हर  दिन  ,
हर  दिन  धमकाते  दुश्मन ,
पर  झंडाबरदार  हमारे  , 
वापिस  लड़ने  का  आदेश  नहीं  देते !!
चाहत  से  लदे  पेड़  पे  ,  चमगादड़  से  लिपटे  हम  ,
देख  रहे  हल  बाहर  से  ,  अंतर्मुख  से  अंधे   हम  !!
काश  मेरे  खाल  में  भी  पेड़ों  सी  होती  छाल ,
जिसे  छील  छील  कोई  पढ़ता मेरा  बीता  काल !
जिनपे  अंकित  होती  कुछ  वक्त  की  रीती घड़ियाँ ,
कुछ  उपजाती  जो ,  नयी  पीढ़ी  में  नये  सवाल !
मेरी  भूलों  को  कुरेद  कुरेद  , जूझना , सीखती  उनसे ,
और  दबे  सपनों  का  घुटा  देखती  झूठा  कंकाल  !
काम  आता  मैं  भी  किसी  भोजपत्र  की  किताब  सा ,
दे  जाता  पल  पल  के  इतिहास  का  दबा  पाताल !
पर  ये  सब  केवल  संभावनाएं  हैं  कोरी  , परछाई  सी ,
जो   मृत  हुआ  ,  मृतिका  सा  निश्चल , हुआ  युग  काल  !!

उन  छलावों  को  क्या  कहिये  ,  जो  भगाते  रहे  जीवन  को  ,
मंजिल  पे  खड़े  देखे  तो , राम  ,  जो  चलाते  रहे  जीवन  को !!
कभी  उन  पगडंडियों  को  निहारा  तो , हैरान  हुए  हम ,
बस  में  तो  नहीं  था  ,शुक्र  खुदा ,  पर , लांघ  आये  हम  !!

Monday, 5 August 2013

बूझो  तो  जानो  ,  कह  ,  पीड़ ,  मुखातिब  है ,
और  बेपीर  ,  जान  के  भी  अनजान  खड़ा   है  ,
हाथों    में  भूख    के ,  देख   भीख   कटोरा  , 
राही  फेर  के  मुख  ,  अंधों  सा  खड़ा  है  !!
चूम  लूं  अधरों  को , अये  वीणा , भुजंग  सम ,
पर  मालूम  है  मुझको  तेरे  सपेरे  की  मंशा ,
मुझे  गर्व  है  सच  में  ,  अपनी  चतुराई  पर  ,
पर  छल  बल  में  छलिया ,  तेरा  लेगा  सहारा !!
भला  ऐसे  भी  रूठा  है  कोई  ज़िद  करके ?
हमने  तो  सुना  है  ,  जो  रूठा  , रूठा ,  चाहत  में मनौव्वल  की  !!

Saturday, 3 August 2013

दबते  हैं  जो  ,  बहुत  शोर  करते  हैं ,
पर  तुम्हारे  कान  ,  पैरों  से  बहुत  दूर  होते  हैं  ,
सम्वेदना  हो ,  पाँव  में  तेरे  तो  ,
चीत्कार  ,  धमनियों  से  , दिल  तक  आते  हैं !!
चलते  हैं बेखबर  कभी , अपने  से  भी  हम ,
मन  कहीं  होता  है  अपना , और  कहीं , अपने  कदम !!
बहुत आजमाया  खुदा को ,  पर  खुदा  ,  खुदा  निकला !
और  मैं  उसकी  रियाया  में , उसके  रहम  का  करम  निकला !!