Wednesday, 25 April 2012
"चाँद सवेरा ले आएगा , लगता है क्यूँ ,
.............."जलने दे जिया कुछ और अभी ,
............."चलने दे अभी , मस्त जहां को छलने दे अभी ,
............."ग़ज़ल के रंग दिल में , और दिल में ग़ज़ल तू ,
तेरी तस्वीर का रुख ,मेरी तरफ हो और तू हो तकदीर मेरी ,
नक़ल के भाव बढ़े इतने , के असल सस्ती लगे अब ,
"चला जा थोड़ी देर को तू , रंगे महफ़िल से ऐ खुदा ,
"चुभने लगे फिर प्यार के आंसू ,
इन अश्कों को भी मालूम है ,
"दिल के आईने में धुंध सी है ,
"किसके हिस्से में कौन आया न बता ,
"आराम से राम का ले नाम ,
सनम तो वैसे भी तुम्हारे हैं ,
"मजूरी करूँ दिल से , न कोई मजबूरी ,
जब मालिक मेरा सनम होवे ,
"दूध को दही बना आया ,
"अंदाज़ मेरे सब तुमसे शुरू और तुम पे ख़तम ,
"हर जन्म कोई , जिस्म मैं ढोता हूँ ,
"हमसे उम्मीद सितारों की रक्खे है जो ,
कैसे उससे कहदें के खाक भी हाथों में नहीं मेरे !
उनकी उम्मीद से जिंदा मैं भी हूँ ,
"सिर्फ उतनी दूर चलो साथ मेरे ,
किताबों से निकल बहार आये अक्षर ,थोड़ी हो जाए धूप ,
Sunday, 22 April 2012
"मैं वक्त का गुलाम हूँ , मुझे हर घड़ी नचाये वक्त ,
कभी डुस्कुओं रुलाये वक्त , कभी खिलखिला के हंसाये वक्त !!
.............."मयकदे में हालात अच्छे न अब ,
सूरते हालात अच्छे न अब ,
हर हलक को चाहिए , जाम अनगिनत ,
और गम का नशा , सब बिखरा सा है !!"
........."दिलकश हैं नज़ारे तो मुबारिक तुम्हें ,
अपना तो माज़ी है रूठा हुआ !!"
............बदला ज़माना और बदले हैं वो ,
हर कदम पर मरने की धमकी दें वो ,
उनको मालूम है मैं उनसे डरता नहीं ,
अब हालात की गर्मी में जलाने लगे वो !!"
............"कुछ तो होंगे हालात , बद से भी बदतर ,
यूँ ही शह्नयिओन की धुन , मातमी न हुई होगी !!"
........."मुझको गम दे के चले तो हो , बंदापरवर ,
पर ये गम मुझको परेशां नहीं करते ,
मैं तो हालात को पैमाना बना ,
गम का रोज़ नशा करता हूँ !!"
............"इक सितारा मेरी खुशियों का भी था दुनियां में ,
टूट के कब राख हुआ , देखा ही नहीं !!"
..........."मैं बिखर गया जहां में टुकड़ा , टुकड़ा ,
सहेज , समेट के रखना , कहीं मिल जाए अगर !!"
............मुझको कभी चाँद दिखाना मत ,
चांदनी दिन में ही छल गयी कई बार !!"
..........."किसी अजनबी को भी पीड़ा में देख चिंतित होना , स्वाभाव है मेरा , कोशिश नहीं ,
और इस स्वाभाव ने रुलाया बहुत , दुखाया बहुत , और धोखे भी बहुत खाए मैंने ,
पर संभव नहीं बदलूँगा मैं ,या स्वाभाव मेरा !!"
........."कौन सितारा है जो ,चमकना न चाहे ,
पर जल जाना चाह में , हर किस्मत में कहाँ !!"
.........."बटोही को , दो टुकड़ा , छांह से मतलब ,
जात क्या पूछूं , पेड़ कौन सा ?"
..........."मोहब्बत अगर दिमाग से होती तो दिल रोता ,
अब दिल से है तो भी रोता है दिल , सुभानल्लाह !!
.........."खानाबदोश को ज़मीं से क्या ,
जहाँ चल दिए , वहीँ वतन अपना !!"
.........."चलो जिंदगी की कश्मकश से निजात पा लें दो घड़ी ,
झूठ ही सही , पर खुदा को खुद बना दें दो घड़ी !!"
..........."दिल खोल हंस लिए , अपनी गल्तियों पे आज ,
अगर सदा होते सही तो , पछताते हम आज !!"
..........उनसे हमें थी झूमते आस्मां की उम्मीद ,
पल में गिरा ज़मीं पे हमें चल दिए !!"
...........बर्फानी आशाओं में इक चिंगारी छोड़ी ,
अब खुश हैं वो आग , तबाही से !!
Friday, 20 April 2012
"चलो चलके झील में हंसों से बतियाएं ,
चुने मोती कितने , कितना अलग किया पानी ,
कितना दूध मिला था , मानसरोवर में ,
जो नदियों में बहना भूल गया है अब ,
कौन थी गुजरिया , क्या नाम उसका था ,
जिसने नदिया का दूध बिलोया था ,
और नदी का दूध बन गया पानी ,
चलो हंसों से पूछें आज !!"
............."इस जहाँ में कुछ अकेले , जग से खेले ,
अब अकेले ही झुण्ड का अहसास देते हैं ,
और असंभव दिखने वाला कम ,
सहज में करके जाते हैं !!"
..............बहुत बोल लिए अब , कुछ मौन हो जाए ,
इक चुप बस इक चुप , समाधान हो जाए !!"
.............."खली हाथ चले आओ , किसने कहा ख़ाली है जहाँ ,
ख़ाली हाथ चले चलो , भरा वो जहाँ भी है !!"
............"बहुत बार किया मैंने कुछ ऐसा , अपनों को पराया कर आया ,
जिसको समझा था मैं दगा , वो निकला वफ़ा का साया !!"
............."सगरे जगत में तू तारणहार ,
जगत भी तू और नाव भी तू ,
सवार भी तू और पतवार भी तू ,
फिर क्यों झंझट में मन है ,
करता भी तू ,करतार भी तू !!"
.............."जड़ से जुडूं और उडूं आकाश ,
ऐसे हैं एक सहारे ,
माँ बाप हमारे पेड़ सामान !!"
............"सिर्फ मन है मेरे साथ , जो दिल को मना लेता है ,
बिगाडूँ उसे भी , मेरे बस में कहाँ ."
..........."दिल से खेलोगे और दाद मिलेगी ,
यार वहम ये कितना अच्छा है !!"
............."मैं नहीं कहता मुझे शायर मान ,
दिल का मारा तो कह ही सकते हो ,
तू तारीफ़ में न बोल , कुछ मीठे बोल ,
दारू सा कड़वा कुछ , हलक में तो घोल !!"
............."मुझे संदेशे कोई नहीं आते , और मैं उब भी गया हूँ मेलों से ,
जिन रिश्तों में नहीं अपनापन , उनको खींचने की ज़रुरत भी क्या है !!"
............."प्याला मेरा भर दे कोई , अंगूरी अंगूरी ,
तन्हाई के आलम में , शाम बने सिन्दूरी सिन्दूरी ,
अपने कहाँ मिलते हैं ज़माने में अब ,
इक जाम जिगर में हो तंदूरी तंदूरी !!
................."आओ चलो करलें तौबा , न तुम बोलो , न मैं बोलूँ ,
बस एक चांदनी की चादर , खामोश , शिकायत पे डालें !!"
.............."न कोई चाहने वाला फिर भी , इक आवाज़ लगाता हूँ , आये कोई !
अपना न कहे , हसरत से चाहे मुझे , पर पास बुला , बहला भर जाए कोई !!"
.........."घूँट दर घूँट , पीता ही गया कड़वे घूँट ,
अब न दिल ख़ाली न जिगर ख़ाली !!"
............"सूरज , पवन , आकाश , जल , पृथ्वी के बिना जीवन कहाँ ?
पर वो अपने कर्तव्यों का रोना कभी नहीं रोते ,
और एक हम , हर कदम एहसान जताए जाते हैं !!"
यूँ ही ऊंचाईयों पे जा बैठे परिंदे , आकाश अपना समझ बैठे हैं ,
रात ढलने पर आसरा मिलता है तो जमीं पे बस !!"
............."हर तरफ उम्मीद बस उम्मीद ,
और नासूर भरते नहीं देश के मेरे !!"
.............."इक घरौंदा , रोटी इक , और तन को कपडा न मिले सबको तो ,
आजादी किसका नाम और करनी भी क्या !!"
............."चारों तरफ ही है शोर , चोर चोर , चोर चोर ,
सिपाही इस खेल में अब कोई बचा ही नहीं !!"
............."जो भी बचा है देशप्रेमी इस देश में ,
है परीशां ,कौन है जिसको सुनाएं , दिल का हाल !!"
........."जो भी उठता आवाज , सुधरो और सुधारो ,
उसको बची बस इक जगह , बस , जेल जेल , जेल जेल !!"
..........."सब निवासी उदास हैं और बे - आस हैं , राजनीति में भरे सब ....................
Wednesday, 18 April 2012
"तरोताज़ा हो आना तुम , खामोश सुबह , शबनम की गली ,
मैं निहार घटाओं का आंचल , आ जाऊंगा सपनों में तेरे !!"
..........."जहाँ जीत लो जुबान में रस है भरा ,
शहद भी है इसमें और ज़हर भी भरा ,
युक्तिसंगत तुम इनका करलो प्रयोग ,
और क़दमों में करलो तुम वसुंधरा !!"
..........."अजब हालात में रिंद घर आया ,
मयकदा छोड़ सीधा घर चला आया ,
न गम का ख्याल न इज़हारे ख़ुशी ,
न रोना धोना न शेरोशायरी ,
न गिरना पड़ना , न माशूका का जिक्र ,
बस सीधे सीधे घर चला आया ,
या तो दिल पे लगी चोट ,या मय का है कसूर ,
मेरा यार यूँ कभी पैरों पे न आया !!"
............"निशानियाँ ख़त्म कर दल , दिल से बहारों की ,
फानी है जब जहाँ तो , सिर्फ खुदा को रख याद !!"
................."निकल के आएगा सच , कहाँ कहाँ से खुदा ,
झूठ का बुत , परदे में खुदा और जहाँ झूठा !!"
............."पत्तों को दर्द दिखा आया हूँ ,
अब ज़रा सी हवा लगते ही ,
नगमों का गुमान होता है !!
..........."हलके हलके से उतर आता है नशा चाँदनी पे सवार ,
और समंदर बहका बहका सा चाँद छूने , उछल पड़ता है !!"
............."शतरंज के मोहरों को सिर्फ पिटना है ,
हारेगा खिलाडी तो , जीतेगा भी इक दिन !
घबरा न किस्मत के मोहरों से तू हारा है आज ,
बाजी पलटेगी किस्मत इक दिन !!"
............"इक सफ़र तय नहीं ,दूजे की फिक्र होने लगी ,
ठहरता ही नहीं मन किसी मंजिल पे , खुदा !!
............."तबाही का सब सामान सजा ,
बंदा खुश है के मैं हूँ महफूज़ !!"
...............अगरचे दुनियां , दुनियां होती , और इंसान होता , खुदा ,
तब भी क्या मोहब्बत के यही मायने होते ?"
............."खुदा खुश तो मैं खुश ,
पर खुदा मुझसे खुश ,
होगा कभी क्या ?"
............"मैं हर गुनाह पे खुदा खैर करे कहता हूँ ,
अब खुदा की खुदा जाने !!"
..........."असर मुझपे दुआओं का क्या होगा ,
मौत पीछे लगी जब से , पैदा मैं हुआ !!"
............"वाजिब है तिलमिलाना , दर्द से गुज़रा है दिल ,
संभल जाएगा , हद हो जायेगी जब !!
......"इक पल को धरा छोड़ दे , अम्बर में मुझे ,
फिर मुझे माँ की , उछालती , बाहों की याद हो आएगी !!"
...........ये खोखली जिंदगी और ये खोखले वादे तेरे ,
कुछ भरी हैं तो मेरी आँखें ,
जो छलक आती हैं तन्हाई में !!"
...........कैसे कह्दूं तेरा ख्याल आता ही नहीं ,
कैसे अपने ही दिल को धोखा दे दूं !!"
..............."इक सितम फिर से मुझपे कर दो ,
फिर दो घड़ी अनजान बनों मेरे लिए !!"
............"चाँद को अपना चेहरा मत दिखा ,
उसको छुपने को बादल को बुलाना होगा !!"
.........."फिर मुझे अपनी बाहों में लेले माँ ,
आँखों में बरसात हुयी ,
और झुला झूलूँ बाँहों का , मन में है आज !!"
........."रहे घूम के आयीं मंजिल तक , मंजिल थी वहीँ ,
पर मंजिल पर ठहरा कौन ?
लुत्फ़ उठा , मंजिल को पा , घर वापिस लौटा कारवां ,
और राहें चलती रहीं घर से मंजिल और मंजिल से घर तक !!"
..........अनजान लोगों से पहचान बनाने को ,
मैं मन हारा , और जग सारा !!"
Tuesday, 17 April 2012
"बातें उनकी , जग को समझ नहीं आतीं , और पागल भी , उनको ही कहते लोग !!"
...........
"सितारों से दामन भरने का दम भरते हैं वो ,
पर चिंगारियों से डरते हैं वो ,
अजब सपने दिखा रहे हैं गुलिस्ताँ में बहार के ,
और उजड़े चमन के उल्लू के रिशतेदारां हैं वो !!"
.........."सिर्फ दूर रहो तुम इतना के पराया न लगे ,
और क़रीब आओ तो इतना ,की अपना कहूं और बुरा न लगे !!"
.........."समंदर पी लिया करते हैं कई बार , सूखे पत्ते भी , और कभी इक बूँद भी न समा पाती हलक में फलक के !!"
..........."सिर्फ इतना समझ आता है के मैं हूँ , था ? या हूँगा ? खुदा जाने !!"
................"अपनी डगर का पता नहीं , नदिया को रास्ता बता रहा हूँ मैं ,
खुद खड़ा गुमनाम और ,राह चलतों को उपनाम दे रहा हूँ मैं !!
"कसम उनको भी दो यार , जो सनम को बहका आये कि वो धोखे में हैं ,
मेरी ही जुबान क्यों बंद रहे , मौकाए इज़हार में !!"
.............
बस्तियां हसीं और बाशिंदे नौबहार ,
फिर गुलिस्ताँ में खिजाँ की नौबत क्यों है आज ?"
........
क्यों अहसास हुआ मैं चूका , क्यों जाना अब समय नहीं ,
क्यों आँखों में आंसू आये , इक उम्र गुज़र जाने के बाद !!
...............
"हरी सिमरन को बचा है क्या अब , पश्चाताप की अगन के बाद ,
अब तुम सोना , सोने सा दिल , हरी विराजे तुम में आज !!"
............
"रौनकें सदा बादशाहत में हैं , कभी जय जय करो अपनी भी तुम ,
कभी बाँट दो अपने हिस्से के सुख , और हासिल करो मन की शांति तुम !!"
.......
"तेरी शामों में मेरी इक शाम और मेरे छालों का दिल से मिट जाना ,
जैसे लू की जलन से चेहरे को , शबनम का मरहम मिल जाना !!"
...........
"फिर से गुज़र गया तूफ़ान , और हिंडोले डोलते रहे ,
घर में दुबके चेहरे , इक झूले को तरसते रहे !
मेरी ही जुबान क्यों बंद रहे , मौकाए इज़हार में !!"
.............
बस्तियां हसीं और बाशिंदे नौबहार ,
फिर गुलिस्ताँ में खिजाँ की नौबत क्यों है आज ?"
........
क्यों अहसास हुआ मैं चूका , क्यों जाना अब समय नहीं ,
क्यों आँखों में आंसू आये , इक उम्र गुज़र जाने के बाद !!
...............
"हरी सिमरन को बचा है क्या अब , पश्चाताप की अगन के बाद ,
अब तुम सोना , सोने सा दिल , हरी विराजे तुम में आज !!"
............
"रौनकें सदा बादशाहत में हैं , कभी जय जय करो अपनी भी तुम ,
कभी बाँट दो अपने हिस्से के सुख , और हासिल करो मन की शांति तुम !!"
.......
"तेरी शामों में मेरी इक शाम और मेरे छालों का दिल से मिट जाना ,
जैसे लू की जलन से चेहरे को , शबनम का मरहम मिल जाना !!"
...........
"फिर से गुज़र गया तूफ़ान , और हिंडोले डोलते रहे ,
घर में दुबके चेहरे , इक झूले को तरसते रहे !
Monday, 16 April 2012
"मैं देखता हूँ दरख्तों के साए , कभी लम्बे होते कभी छोटे होते ,
मैं देखता हूँ , बादल के टुकड़े , कभी घनघनाते , कभी छितराते ,
मैं देखता हूँ ,मौसम के तेवर , कभी ठन्डे ठन्डे ,कभी जलते शोले ,
यहाँ पर खड़ा कुछ भी नहीं , फिर मैं क्यों चाहता हूँ , जीवन को रोके रखना ,
चल रे चल , यहाँ कुछ भी न अचल !!"
........."गाँव अब खेत हुए शहरों के लिए ,
खेतों में बोते हैं अब , दुःख दर्द नए !
गाँव की बोली अब , बूढों के लिए ,
बच्चे अब गाँव के अँगरेज़ हुए !"
............"उपवन में वन की झलक मिलने लगी अब ,
माली अब उदासीन हुआ , सड़कों के किनारे बोता है फूल !!"
..........मुझ में कुछ , रहा न बाकी , सब गया ,
इक खुदा , इक उसकी याद , और बुत इक ,बन गया !!"
...........
"जो न थे मेरे उसूल , अब बन गये ,
इन ठोकरों ने , जग में रहना सिखा दिया !!"
..........."दवा की शीशी में सोना बिकता है अब ,
गरीब की पहुँच से बाहर हैं अब !!"
.............अजी क्या सुनाएं दिल्ली की बातें , दिल्ली में दिल रह गया ,
हुक्मरान कोई पागल न थे , दिल्ली को दिल , दर्ज़ा दिया !!"
................जुबान से दिल गया ,और दिल से जुबान ,
इस प्यार ने सब कर दिया है अस्त व्यस्त !
जिस्म में है रूह , या रूह है जिस्म बिना ,
इस प्यार ने जग को बनाया मस्त मस्त !!"
.............झरोखों से रौशनी आने तो दी ,
पर दिल जला , तब रूह ,रौशन हुई !!"
........"दिल उनका रूह पे कब्जाई हुआ ,
क्या करें जब दिमाग तमाशाई हुआ !!"
.............."ये तब्दीलियाँ , बचपन से बुढ़ापे तक की हैं ,
यूँ ही नहीं जय इक दिन में , सयाना हो गया !!"
..........."ये सयानापन मेरा बचपन में भी था ,
पर तब , बचपना , इसे कहते थे लोग !!"
...............सयानापन , जवानी , दो धुरे हैं दूर दूर ,
जो सयाना , जवान कैसे ? जो जवान तो अक्ल का क्या काम ?"
................"दिल खोल के हँसता है मलंग ,
रोने से दिन बदले हैं क्या ?"
................."जुल्मी हैं पिया , देखा भी , और अनदेखा भी किया !
बोझिल है जिया , धड़के भी और धधके भी हिया !!"
............."चलो फुर्सत के वक्त ,कुछ तारे गिनलें ,
ज़माना गुजरा है , अम्बर पे नज़र डाले हुए !!"
............"मलिन मुख से , दरिद्रता न हटेगी ,
कुछ हस बोल , रिझा अपने सनम को ,
वर्ना रोते रहोगे , सजन सौतन का हुआ ,
यूँ ही नहीं , अशर्फी बायीं का चले सिक्का जहां में !!"
.............."लफ़्ज़ों को तरतीब में रख , और दिल से बोल ,
वाह बोलेगा ख़ुदा , और ज़माना ग़ज़ल सुन लेगा !!"
............"अभी बस सुन ले तू , ख़ामियां बहुत हैं मेरी तक़रीर में ,
नुक्ताचीनी भी सुन लूँगा तेरी ,पर वक्त के पहले ही तू , मौत तो न दे !!"
............"सूरज को जलता देख ,
रौशनी देता है , खाक होने के लिए !!"
.............."मेरी रूह पे पर्दा है जिस्म ,
और इसको जलना भी है , मौत के बाद ,
तो क्यों न ,जिन्दा जी इससे अलग हो लूं मैं ,
असल क्या है उसका भी तो नज़ारा कर लें !!"
............"खुदा के गुनाहगारों में मैं भी हूँ ,
यूँ ही तो ख़ुदा मौत न देता होगा !!
..........."खुदा के पास है क्या मेरी फितरत के बाद ,
मैं भी तो उसकी फितरत का ही नज़ारा हूँ !
जो मैं हूँ ख़ुदा की फितरत से ,
तो वो भी ख़ुदा , मेरी फितरत से जनाब !!"
............"मैंने जिक्र कमाया है , होता है अब , सब जगह ,
पर फिक्र क्यों है अब , जिक्र अच्छा ही हो !!"
.............."हैराँ कर के मुझे चल दिए तुम कौन जहाँ ,
मैं समझा मज़ाक हो रहा है अभी , तुम हो वफादार अभी !!"
............"खुदा भी खुद से खेलता है कभी ,
कभी फैलता है , कभी सिमट आता है मुट्ठी में मेरी !!"
........."बस इस बहाने से सताले मुझे ,
मैं तेरा कुछ भी नहीं !!"
..........."बस मेरी नज़र भर दुनियां है ,
उस से ओझल कुछ भी नहीं !
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