Thursday, 16 May 2013


संभल  के  चल  मेरी  मौत  के  चाहने  वाले ,
तेरी  आँखों  में  जो  खौफ़ है , दिखता  है  मुझे ,
मेरे  सर  पे  कफ़न  का ,  ज़रा  रंग  भी  देख  ,
वतन  पे  फ़िदा होने  का  शौक़ , नहीं  दिखता  है  तुझे  ?
किसी  के  ख़ैर मक़दम  का  जुनूँ  ,  महंगा  पड़ा   उसे ,
अपनी  ही  जात  के  पैरों  तले  ,  कुचला  गया  वो   ,
उसने  तो  समझा  था  , समा जाना , आँखों  में  पैरोकार  के ,
पर  सब  अंधे  थे  जुनूँ  में ,  आँखों  की  जगह , पैरों  में  समा  गया  वो !!
चुभता  हूँ  इसलिए  कि  , तेज़  भी  हूँ  और  सख्त  भी ,
हर  किसी  की  किस्मत  में  कहाँ ,  काँटा   बनना  ,  और ,
किसी  और  के  हित ,  किसी  और  को , गलती  का  एहसास  दिलाना ,
और  बनना ,  बुरा ,  दुनियाँ  की  आँखों  में  , सदा  के  लिए !!

Tuesday, 14 May 2013

जो  भी  गुज़रा ,  वाहियात गुजरा  ,  यार , फिर  भी  देखो  नज़ारा ,
फुर्सत  से  घूमते  हुए  ,  पत्तों  को  झाड़ता  चला  जा  रहा  हूँ  मैं ,
अपनी  गलतियों  के  लिए ,  वक्त  को  लाताड़ता  जा  रहा  हूँ  मैं !!
जिंदगी  को  जाम  समझ  गटका  तो  पाया  ,
कड़वी  तो  है  , हाला , पर  रंगीन  बहुत है !!

तेरी  ज़ुल्फ़  के  घने  साए  से  गुज़रा , तो ,  याद  आया ,
ये  ठंडक  , ये  सुखचैन  कहीं  और  भी  देखा  है  ,
कहीं  और  भी  देखा  है  ,  सहलाता  हुआ   अहसास ,
इक  माँ जाई  बहन  ,  इक  दुलराती  माँ  को , पास से  देखा  है !!

मैं आज  फिर  शाम  , किसी  मंज्ज़र के  नाम  कर  आया ,
झुकी  कमर  , लकुटी टेक  ,  बेआसरा  माँ  को  ,  माँ कह  आया !!

थक  के  चूर  किसी  राही  को  , दो  पल  की  छाँव  तो  दे ,
ओ  बरगद  से घने  वजूद  , इंसान  होने  की पहचान तो  दे !!
हम  गुम हो  गये  चलते  चलते  ,  अपने  ही  ख्यालों  में ,  कभी ,
कितने  ही  जाने  पहचाने  चेहरे  ,  बन  गये  अजनबी अजनबी !

Sunday, 12 May 2013

जो ,  उजली करे  सब  को  ,  उसे  गंदा  करे  कौन  ?
ओ  गँगा  ,  तेरी  संताने  ,  तुझे  माँ  बोलें ,   पर माने  ?  कौन ?
उससे  पूछो  माँ  , होती  है  क्या  ?
जिसने  देखी , ही  नहीं  ,
या  उससे , जिसको  उसने पाला  पोसा ,
फिर  हट  के  जिसने  देखी  ही  नहीं  !!


हद  से  बाहर  भी  नहीं  और  ,  किसी  हद  में  भी  नहीं ,
मेरा  मौला  ,  मेरी  माँ  ,  मेरी  माँ  , किसी  ज़द  में  नहीं !!
हैराँ  हूँ  कि , माँ  का  का  भी  दिन , हो  गया  तय ,
कहाँ  समझता  था  , ममतामय  है  जगत , मैं जय !
रही  होगी  कोई  मजबूरी  ,  कि  याद  करलें  हम ,
वर्ना  माँ  तो  सब  में  बसी  , जैसे ह्रदय में  लय !!
लाल  सब  माँ  के  ,  और  सब  पे  माँ , निहाल ,
इस  माँ  को  मिले  जग  में  ,  जाने  कैसे  कैसे लाल ,
अपने  अपने  हिस्से  की  कसक  सबको  मिली ,
किसी  ने  बाँट  ली  सबसे  ,  किसी  ने  संजो  ली ,
किसी  का  उपहास  हुआ , किसी ने  दिल जलाया  अपना ,
किसी  ने  मथ के  कसक  को , जग  में  रचाई  रंगोली !!

Saturday, 11 May 2013

यादों  को  आगे  पीछे  कर  भी  दें , तो  क्या  ?
जिंदगी  तो  रहेगी  फिर  भी , सिलसिलेवार  ,
तू  चले  आगे  या  रहूँ  पीछे  मैं ,  हमदम  मेरे ,
हैं  मेरी  जिंदगी  के , हासिल  तुझे , सब  अख्तियार !!

Wednesday, 8 May 2013

इश्क  को  नचाते  रहे जो  सुविधानुसार ,
ऐसे  मजनू  को  ,  लैला  ,.... फटकार  !!

काश  कुछ  चलके  ,
सांस  लिए  हल्के  हल्के ,
छाया  को  पेड़  से  छलके ,
इस  तपती  धूप  से  कह  सकता  ,
क्यों  क्रोध  में  है  री  मतवाली ,
गर्मी  है  ,  मौसम  ये  तेरा  ही  है  री ,
क्या  झुलसा  के  ,
जतलाना ,  जरूरी  है  ?
थके  हारे  बदन  से  राही  के ,
ढेरों  ,
पसीना , बहाना , जरूरी  है  ?
नमन  है  तेरे  ओज  को  री  ,
सूरज  को  क्यों ,
अर्घ्य ,  जरूरी  री  ?
शांत , कुछ  शांत  ,  अब  हो लो  री ,
बादल  को  बूँदें  गिराने  दे  ,
धरती  कुछ  ठंडी  होने  दे  ,
इस  पेट  की  आग  से  जलते  को  ,
कुछ  भूख  का  साधन  करने  दे  ,
उसे  शांत  से  मन  से  चलने  दे !!
  

शमशान  की  मिटटी  से , जो  डरते  है  लोग ,
जाने  कैसे , इस  नश्वर जग  में ,
कुछ , कर  जानें  का  दम , भरते  हैं  लोग !!
हर  क्षण  मिटता  है  , कोई  जीवन  यहाँ ,
फिर  क्यों  ,  घर  में  ,  घट  में ,
धन  ,  पाप  ,  घृणा ,  संजोते  हैं  लोग  !!

Tuesday, 7 May 2013

परिंदे  चले  आये  अचानक  ,  देश  तेरे ,  इक  अनजान ,
छूटन  लागा  , जब  देश  वही  ,  जाने  लगी  तब  जान ,
जाने  लगी  तब  जान  ,  और  मोह  तब  न्यारा  हो  गया ,
जो  लगता  था  विदेश  ,  अब  देश  वही  प्यारा  हो  गया ,
कह  संतन को  ध्याय ,  जय  तो  मूरख  हो  गया  ,
जो  ज्ञानी  था  राम  का  ,  राम  से  सून  हो  गया  !!
चलो , तुम  अचानक  ही  सही  ,  मिल  तो  गये ,
यहाँ  रब  मुझको  बना ,  ग़ुम  हुआ ,  फिर  ,  न  मिला !!
ध्यान  मेरा  कहीं  भी  हो  ,  ध्यान  में  पर , गर  ये  रहे ,
कि  तू  है  मेरे  ध्यान  में ,  तो  ठोकर  का  क्या ?  लगती  रहे !!
जित  जाईये   उत  पूछिए , कौन  के  घर  सुख ? सर्व ,
जिस  मानुष  के  कोई  घर  नहीं , उसका  हर  पल  पर्व !!