काश कुछ चलके ,
सांस लिए हल्के हल्के ,
छाया को पेड़ से छलके ,
इस तपती धूप से कह सकता ,
क्यों क्रोध में है री मतवाली ,
गर्मी है , मौसम ये तेरा ही है री ,
क्या झुलसा के ,
जतलाना , जरूरी है ?
थके हारे बदन से राही के ,
ढेरों ,
पसीना , बहाना , जरूरी है ?
नमन है तेरे ओज को री ,
सूरज को क्यों ,
अर्घ्य , जरूरी री ?
शांत , कुछ शांत , अब हो लो री ,
बादल को बूँदें गिराने दे ,
धरती कुछ ठंडी होने दे ,
इस पेट की आग से जलते को ,
कुछ भूख का साधन करने दे ,
उसे शांत से मन से चलने दे !!