Sunday, 17 February 2013

हे  री मन कब था मेरा ,जो, अब होगा  ,
घूमता  घर  बाहर चहुँ ओर , बन  चोर ,
अभी  चाँद  पर अब ,  सागर  में ,
अब बन हवा , बादल ओढ़े घनघोर ,
गिरा  बिजलियाँ छू मंतर  बन ,
पल में भागे , सजनी  आगे  , बन  मोर ,
हे री मन कब  था मेरा , जो अब होगा ,
घूमता घर बाहर चहूँ ओर , बन चोर  !!

Saturday, 16 February 2013

दो  कदम  चल , पूछता  राही  नया , है  कोई  मुझसा ? पहले भी क्या ?
गुनगुना  लेता  अगर दो  चार स्वर , पूछता ,  पहले  भी गाती थी  हवा ?
कूची  भी  थी  पहले  क्या  किसी  हाथ  में ? बहार भी  थी  इतनी क्या रंगज़दा ?
छुआ मुझसे  पहले ख्वाब ? क्या  किसी  रात ने , भीगी थी  पहले भी बरसात क्या ?
समेटा  शबनम को  था क्या ,  पहले भी क्या फूल ने ? पहले  भी  सूरज गर्म था क्या ?
अरे  मैं  ही  हूँ , मैं  ही  हूँ  पहला  कदम , मुझसे  पहले  रास्ता , इतना कम  था क्या ?

Friday, 15 February 2013

बिकती  हैं  बातें  ,  बिकते  हैं  सपने , बिकता  ज़मीर  और  बिकता शरीर ,
पिसता पसीना  ,  रिसता लहू , हुनर  बन गया अब  चापलूसी  का  गुलाम ,
ये  कैसा  है वक्त  और  कैसा  विकास  , क्या  होगा  भविष्य , और इतिहास ,
सोचते  हैं  जब  फुर्सत में झंडे  के आगे  , पूछता  है  मन , क्यों  नेता  को  सलाम ?
मेह्नत के  औजार छीने  जो तुमने  , दी भूख  , चोरी , डकैती , हमें ,
ये गति विकास की कैसी रे मन , इन  विकसित मशीनों  से पूछे कोई !!
बिखर गयी हाला , सिन्दूरी सिन्दूरी  , छलक गये समंदर भर जाम ,
पगलाई सी धरती ने , पर्वत और  घाटी में औटाये , फूलों के  रंग तमाम !!
महफ़िलें सजा  लेना  तू , मुझे वीराने  में  गुनगुनाने  दे ,
सहेज लेना तू सब चाँदी सोना , मुझे मिट्टी के रंग हो जाने दे !!
गर्दन  झुकी झुकी , गति  मंथर  मंथर , सोच  में डूबा लगता है ,
ये  देश  मेरा , अनजान मोड़  पर , अपनों से  सताया लगता  है !!
चौराहों पे खड़े दुविधा  में  , ऐसे भी हैं कुछ दीवाने ,
रस्ते चुने जो मजबूरी  में , अपनी  पसंद के अभाव में !
राम  ही की सेना  में ,  जब भरने  लगें राक्षस अविराम ,
हर  चेहरा  लगे जब रावण सा , क्या कर लेगा जग में इक राम!!

जो  बोलें  नयन  तेरे , अर्थ सभी  छुपा  लेना ,
पगला जाएगा मतवाला , पढ़ने जो चला  दीवाना !!