संस्मरण जालंधर शहर के 1
#संस्मरणजालंधरशहरके
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बात सत्तर के दशक की है , मैं जालँधर में जी ए एम एस कर रहा था , कबीर नगर में डीएवी काॅलेज के बिल्कुल बाहर धर्मपाल किराना मरचैंट के मकान में किराए पर रहते थे । कबीर नगर में अधिकतर या तो श्री मद्दयानंद आयुर्वैदिक कालेज या फिर मेहरचंद पालिटैक्निक कालेज या डीएवी कालेज के छात्र किराए पर रहा करते थे । धर्मपाल के कमरों में मैं Dr Harmesh Banyal का रूम मेट था । एक दिन हम कालेज से अपनें किराए के कमरे में वापिस आ रहे थे कि देखा एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति काँटेदार तारों से पोल छुड़ाकर किसी हट्टे कट्टे लड़के को पीटनें लगा ।
वो साथ में चिल्ला रहा था , " हरामज़ादे , कुत्ते साले , तैन्नूं शर्म नी आऊँदी , कुट्ट खाके जिंदा खड़ा ऐत्थे , हराम दे , साले , या ते मर जाँदा या मार देंदा , मेरा ताँ नाँ ही डुबोत्ता । जाणे केड़ी घड़ी मैं तेरी माँ नूँ व्याह्या , ते केड़ी घड़ी तैंन्नूँ उसने जाया , कुत्ती दा पुत्त न होवे कित्थे , साला "
उसका पीटना जारी रहा ।
लड़के नें ज़ोर से बिजली का खँबा पकड़ा हुआ था और चिल्ला रहा था , " बापू , मैंन्नूँ इक बार शड दे ( छड दे ) , मैं उन्हानूँ ज़िंदा नीं शड्डाँ गा , मैं हूणें ई पिस्तौल लिया के उन्हानूँ माराँ गा , ओए तू मैंन्नू जाण दे । "
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क्रमशः :-